मुगल सल्तनत के इतिहास में 27 अप्रैल का खास महत्व है। इस दिन मुगल शासकों से जुड़ी तीन बड़ी घटनाएं इतिहास का हिस्सा बनीं। 1526 में 27 अप्रैल के दिन ही बाबर ने दिल्ली का तख्तो-ताज संभाला था। वहीं, 1606 में बादशाह जहांगीर ने आज ही के दिन बगावत पर उतरे अपने पुत्र खुसरो को गिरफ्तार किया था। खुसरो मिर्ज़ा, जहांगीर का ज्येष्ठ पुत्र था. उसने अपने पिता और वर्तमान शासक जहाँगीर के खिलाफ 1606 में विद्रोह कर दिया था.इसके अलावा, 1748 में एक बार फिर वह 27 अप्रैल का ही दिन था जब मुगल बादशाह मोहम्मद शाह का निधन हुआ था।
मुहम्मदशाह रौशन अख़्तर ( 7 अगस्त, 1702, फ़तेहपुर- 27 अप्रैल, 1748, दिल्ली) मुग़ल वंश का 14वाँ बादशाह था। उसने लम्बे समय 1719 से 1748 तक मुग़ल साम्राज्य पर शासन किया। रफ़ीउद्दौला की मृत्यु के बाद सैय्यद बन्धुओं ने उसको गद्दी पर बैठाया था। वह जहानशाह का चौथा बेटा था।
मुहम्मदशाह के शासन काल में बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में मुर्शिद कुली ख़ाँ, अवध में सआदत ख़ाँ तथा दक्कन में निजामुलमुल्क ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर लीं। इसके अतिरिक्त इसके काल में गंगा तथा दोआब क्षेत्र में रोहिला सरदारों ने भी अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली थी।
मुहम्मदशाह अयोग्य शासक था। वह अपना अधिकांश समय पशुओं की लड़ाई देखने तथा वेश्याओं और मदिरा के बीच गुजारता था। इसी कारण उसे ‘रंगीला’ के उपनाम से भी जाना जाता था।
दरबार में सैय्यद बन्धुओं के बढ़ते हुए प्रभुत्व के कारण एक रोष उत्पन्न हुआ तथा उन्हें समाप्त करने का षडयंत्र किया गया। इस षडयंत्र में ईरानी दल का नेता मुहम्मद अमीन ख़ाँ, मुहम्मदशाह तथा राजमाता कुदसिया बेगम शामिल थीं। 8 अक्टूबर, 1720 को हैदर बेग़ ने छुरा घोपकर हुसैन अली की हत्या कर दी।
अपने भाई का बदला लेने के लिए अब्दुल्ला ख़ाँ ने विशाल सेना लेकर मुहम्मदशाह के विरुद्ध चढ़ाई कर दी।
13 नवम्बर, 1720 को हसनपुर के स्थान पर अब्दुल्ला ख़ाँ हार गया, उसे बन्दी बना लिया गया और विष देकर मार डाला गया। इस प्रकार मुहम्मदशाह के शासनकाल में सैय्यद बन्धुओं का पूरी तरह से अन्त हो गया।
फ़ारस के शासक नादिरशाह ने 1739 में मुहम्मदशाह के समय में ही दिल्ली पर आक्रमण किया था। बाजीराव प्रथम के नेतृत्व में 500 घुड़सवार लेकर मार्च, 1737 में उसने दिल्ली पर चढ़ाई की, परन्तु सम्राट ने इसका कोई विरोध नहीं किया।एजेंसी।