मुहम्मद अज़मल आमिर क़साब, को ताज़ होटल मुंबई पर वीभत्स हमला करने वाला आतंकवादी था। मुहम्मद आमिर क़साब उसके बाप का नाम था। साधारणतया लोग उसे अज़मल क़साब के नाम से ही जानते थे। अज़मल क़साब पाकिस्तान में पंजाब प्रान्त के ओकरा जिला स्थित फरीदकोट गाँव का मूल निवासी था और पिछले कुछ साल से आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त था। हमलों के बाद चलाये गये सेना के अभियान के दौरान यही मात्र ऐसा आतंकी था जो जिन्दा पुलिस के हत्थे चढ़ गया। इस अभियान में इसके सभी नौ अन्य साथी मारे गये थे। इसने और इसके साथियों ने इन हमलों में कुल 166 निहत्थे लोगों की बर्बरतापूर्ण हत्या कर दी थी।
पाकिस्तान सरकार ने पहले तो इस बात से इनकार किया कि अज़मल क़साब क़साब पाकिस्तानी नागरिक है किन्तु जब भारत सरकार द्वारा सबूत पेश किये गये तो जनवरी 2009 में उसने स्वीकार कर लिया कि हाँ वह पाकिस्तान का ही मूल निवासी है। 3 मई 2010 को न्यायालय ने उसे सामूहिक ह्त्याओं, भारत के विरुद्ध युद्ध करने तथा विस्फोटक सामग्री रखने अनेक आरोपों का दोषी ठहराया। 6 मई 2010 को उसी न्यायालय ने साक्ष्यों के आधार पर मृत्यु दण्ड की सजा सुनायी। 26/11/2008 को मुम्बई में ताज़ होटल पर हुए हमले में 9 आतंकवादियों के साथ कुल १६६ निरपराध लोगों की हत्या में उसके विरुद्ध एक मामले में 4 और दूसरे मामले में 5 हत्याओं का दोषी होना सिद्ध हुआ था। इसके अतिरिक्त नार्को टेस्ट में उसने 80 मामलों में अपनी संलिप्तता भी स्वीकार की थी। 21 फ़रवरी 2011को मुम्बई उच्च न्यायालय ने उसकी फाँसी की सजा पर मोहर लगा दी। 29 अगस्त 2012 को उच्चतम न्यायालय ने भी उसके मृत्यु दण्ड की पुष्टि कर दी। बाद में गृह मंत्रालय, भारत सरकार के माध्यम से उसकी दया याचिका राष्ट्रपति के पास भिजवायी गयी।तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा उसे अस्वीकार करने के बाद पुणे की यरवदा केन्द्रीय कारागार में 21 नवम्बर 2012 को उसे फाँसी दे दी गयी।
अज़मल क़साब ने सितम्बर 2012 में राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी थी। इससे पहले 29 अगस्त 2012 को उच्चतम न्यायालय ने भी मामले को बेहद ‘दुर्लभ’ बताकर क़साब की फाँसी की सजा पर मुहर लगा दी थी। न्यायमूर्ति आफताब आलम और सी० के० प्रसाद ने मुम्बई हमले में पकड़े गये एक मात्र जिन्दा आतंकी कसाब के बारे में कहा था कि कारागार में उसने पश्चाताप या सुधार के कोई संकेत नहीं दिये। वह खुद को नायक (हीरो) और देशभक्त पाकिस्तानी बताता था। ऐसे में न्यायालय ने माना था कि अज़मल क़साब के लिये फाँसी ही एकमात्र सजा है। एजेंसी।