एजेंसी। आधुनिक चिकित्सा के बढ़ते कदमों में एंटीबायोटिक की खोज निःसंदेह लंबी छलांग है। विश्व की पहली एंटीबायोटिक Penicillin की खोज अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने 1928 में की थी। अलेक्जेंडर फ्लेमिंग का जन्म हुआ था 6 अगस्त 1881 को।
प्रथम विश्व युद्ध के समय फ्लेमिंग बैक्टीरियोलाजिस्ट Almroth Wright को असिस्ट कर रहे थे। उन्होंने पाया कि एण्टीसेप्टिक जख्म के बाहरी हिस्से के लिए तो करगर होते हैं, लेकिन शरीर के भीतरी हिस्सों के लिए हानिकारक होते हैं। क्योंकि ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को समाप्त कर देते हैं। एक एक्सपेरीमेन्ट के द्वारा फ्लेमिंग ने दिखाया कि एण्टीसेप्टिक किस तरह रोग प्रतिरोधक क्षमता को रोग से भी ज्यादा तेजी से खत्म करते हैं। आल्मरथ राइट ने फ्लेमिंग की खोज की पुष्टि की लेकिन इसके बावजूद सेना के चिकित्सकों ने एण्टीसेप्टिक का प्रयोग जारी रखा जबकि घायलों की दशा इससे बिगड़ती गयी।
उसी समय फ्लेमिंग ने क्रान्तिकारी खोज की। वह उस समय Staphylococcus Bacteria पर शोध कर रहे थे थे । एक सुबह जब वह लैब में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि बैक्टीरिया कल्चर की प्लेट पर थोड़ी सी फंफूंदी लगी चुकी है। और खास बात यह थी कि जितनी दूर यह फंफूदी उगी हुई थी उतनी दूर बैक्टीरिया का नामोनिशान नहीं था। उसने इस फफूंदी पर और रिसर्च की और पाया कि यह बैक्टीरिया को मारने में पूरी तरह कारगर थी। शुरूआत में फ्लेमिंग ने इसका नाम दिया मोल्ड जूस, जो बाद में पेनिसिलीन में परिवर्तित हो गया। यही थी विश्व की पहली एण्टीबायोटिक यानि बैक्टीरिया किलर।
उन्होंने पाया कि पेनिसिलीन Scarlet Fever, Pneumonia,Meningitis और Diphtheria जैसी बीमारियों में काफी कारगर है। शुरूआत में पेनिसिलीन की ओर चिकित्सा जगत का आकर्षण कम ही रहा। इसके पीछे कई कारण थे। एक तो इसके प्लांट यानि फफूंदी को उगाना बहुत मुश्किल था, और इससे एण्टीबायोटिक कारक अलग करना और भी दुष्कर था। तो इस वजह से इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन खर्चीला और कठिन था। दूसरी दुश्वारी पेनिसिलीन के साथ यह थी कि यह मानव शरीर में बहुत थोड़ी देर टिकती थी और अधिकतर मूत्र के साथ निकल जाती थी। उस समय के चिकित्सक इसकी कीमत को देखते हुए मूत्र से निकली दवा पुनः उपयोग में ले आते थे।
फ्लेमिंग ने इन कमियों को दूर करने की कोशिश कि किन्तु वह अधिक कामयाब नहीं हो पाया। अतः उसने उसमें रुचि लेनी छोड़ दी किन्तु लैब में उसने अपना शोध जारी रखा और उसके अनेकों गुण धर्म ज्ञात किये। साथ ही उसने उन वैज्ञानिकों को भी पूरा सहयोग दिया जो पेनिसिलीन के बारे में शोध करना चाहते थे।
बाद में 1940 के आसपास Arnest Chan तथा उसकी टीम ने पेनिसिलीन का स्ट्रक्चर ज्ञात किया और उसका औद्योगिक उत्पादन संभव बनाया। तब अलेक्जेंडर फ्लेमिंग की खोज की महत्ता को पूर्ण रूप से दुनिया ने पहचाना। इन्हें 1945 के नोबुल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
बाद में अनेकों तरह के एण्टीबायोटिक के आविष्कार हुए। फ्लेमिंग ने यह भी ज्ञात कर लिया था कि बैक्टीरिया एण्टीबायोटिक के खिलाफ प्रतिरोध क्षमता भी पैदा कर लेते हैं। अतः उन्होंने इसके प्रयोग में सावधानी बरतने को कहा और बताया कि जब तक बहुत जरूरी न हो इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए। आज अच्छे चिकित्सक इसका प्रयोग कम ही करते। 11 मार्च 1955 में इस महान वैज्ञानिक का देहांत हो गया था ।