मुबारक साल गिरह
सुरेंद्र साम्भाणी
अरुणा ईरानी का जन्म का जन्म बम्बई (अब मुंबई) में 3 मई, 1952 को हुआ था अरुणा ईरानी ने डांस, कॉमेडी, वैम्प, हिरोइन, मां, बहन… हर किरदार और रंग में खुद को साबित किया.उनके पिताजी की थिएटर कंपनी थी.उनके दो भाई इंद्र कुमार और आदि ईरानी हैं,जो फिल्म उद्योग से जुड़े हुए हैं.अरुणा ईरानी का बचपन का प्यार भी था.वह स्कूल में उनके लिए चॉकलेट्स लाता था,उनकी फीस भरता था.अरुणा उसे बहुत पसंद करती थीं. लेकिन अचानक वह गायब हो गया.कई साल बाद अरुणा बचपन के प्यार से मिलीं.तब वह फिल्मों में नाम बना चुकी थीं. इस प्यार से उन्हें विनोद खन्ना ने मिलवाया था और वह और कोई नहीं, विनोद खन्ना के भाई प्रमोद थे.अरुणा ईरानी ने डायरेक्टर कुकु कोहली से 1990 में शादी की. एक फिल्म में साथ काम करने के दौरान दोनों का रोमांस हुआ था.तब अरुणा 40 की उम्र पार कर चुकी थीं और कुकु भी शादीशुदा और बाल बच्चेदार थे.सत्तर-अस्सी के दशक की फिल्मों के एक दर्शक वर्ग का हमेशा से यह मानना रहा है कि अरुणा में हीरोइन बनने के सारे गुण मौजूद थे, लेकिन कुछ खराब किस्मत,कुछ स्वयं के गलत फैसलों और कुछ फिल्म उद्योग की राजनीति के चलते उनकी पहचान मुख्यतः चरित्र अभिनेत्री के रूप में ही बन पाई।
उन्होंने दिलीप कुमार के साथ 1961 में सर्वकालिक महान क्लासिक फिल्म ‘गंगा जमुना’ से बतौर बाल कलाकार अपने अभिनय करियर की शुरुआत की,उस वक्त वह सिर्फ 9 साल की थी.फिल्म ‘गंगा जमुना’ (1961) में उन्होंने चरित्र अभिनेत्री अजरा के बचपन की भूमिका निभाई थी और हेमंत कुमार के गीत ‘इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चलके’ में अपने गुरुजी के साथ गा रहे बच्चों में भी वह शामिल हुईं.इसके बाद उन्होंने ‘जहांआरा’, ‘फर्ज’, ‘उपकार’ जैसी फिल्मों में छोटे-मोटे किरदार निभाए.अरुणा के करियर में महत्वपूर्ण मोड़ आया 1971 में “कारवाँ” के साथ।इस सुपरहिट म्यूजिकल फिल्म में उन्होंने तेज-तर्रार बंजारन की यादगार भूमिका निभाते हुए अपने अभिनय कौशल के साथ-साथ नृत्य की प्रतिभा का भी का भी प्रदर्शन किया.इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में डांस नंबर किए”दिलबर दिल से प्यारे” और “चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी” जैसे गीतों से उन्होंने अपना लोहा मनवा लिया.निर्माताओं ने उन्हें ऐसी भूमिकाओं के लिए माकूल पाया जिनमें कुछ नकारात्मकता का पुट हो और जिनमें एकाध डांस का भी स्कोप हो.
1972 में अरुणा ने अमिताभ बच्चन के साथ ‘बॉम्बे टू गोवा’ में काम किया था.इस फिल्म में महमूद भी थे. अरुणा का नाम उस वक्त महमूद के साथ जोड़ा जाता था’ उन्होंने महमूद के साथ ‘औलाद’ (1968), ‘हमजोली’ (1970), ‘नया जमाना’ (1971), ‘गरम मसाला’ (1972) और ‘दो फूल’ (1973) में काम किया.हालांकि, अरुणा को जब इस बात का अहसास हुआ कि महमूद उनके प्रति जुनूनी हो रहे हैं, तो उन्होंने महमूद को छोड़ सारा ध्यान अपने फिल्मी करियर पर फोकस किया.‘बॉबी’ में एक संक्षिप्त मगर दिलचस्प भूमिका में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी. इसके बाद वह लगातार सशक्त चरित्र अभिनेत्री के तौर पर अपनी विशेष ख्याति बनाती चली गईं.”खेल-खेल में”, “मिली”, “लैला मजनू”, “शालीमार” आदि उनकी महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। “कुर्बानी” में उन्होंने बदले की आग में धधकती स्त्री के रोल में फिरोज खान, विनोद खन्ना, जीनत अमान, अमजद खान जैसे कलाकारों बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.”लव स्टोरी” में वे “क्या गजब करते हो जी” गाते हुए कुमार गौरव को रिझाती नजर आईं, तो “कुदरत” में मंच पर शास्त्रीय अंदाज में “हमें तुमसे प्यार कितना” गाते हुए दिखाई दीं.गुलजार की क्लासिक कॉमेडी “अंगूर” में देवेन वर्मा की पत्नी के रूप में वे अपने किरदार में पूरी तरह डूबी हुई थीं।
1984 में “पेट, प्यार और पाप” के लिए उन्हें फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री अवॉर्ड मिला. अरुणा ईरानी ने नब्बे के दशक से ‘बेटा’ और ‘राजा बाबू’ जैसी फिल्मों से मां का किरदार निभाना शुरू किया. ‘बेटा’ में उन्होंने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और फिल्मफेयर अवार्ड जीता2012 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है.अरुणा ने इंडस्ट्री में आने वाले नए अभिनेता और अभिनेत्रियों की काफी मदद की.उन्होंने ‘फर्ज’ में जितेंद्र, ‘बॉबी’ में ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया, ‘सरगम’ में जयाप्रदा, ‘लव स्टोरी’ में कुमार गौरव और ‘रॉकी’ में संजय दत्त की काफी हेल्प की थी, लेकिन उनका दुर्भाग्य ये रहा कि ये सभी सुपरस्टार बन गए और अरुणा सपोर्टिंग एक्ट्रेस बनकर रह गईं.
अरुणा कई मराठी फिल्में भी कर चुकी हैं.इतना ही नहीं उन्होंने बड़े पर्दे के साथ छोटे पर्दे पर भी किस्मत आजमाई.2000 में उन्होंने धारावाहिक ‘जमाना बदल गया’ से छोटे पर्दे पर अभिनय की शुरुआत की. ‘कहानी घर घर की'(2006-2007), ‘झांसी की रानी’ (2009-2011), ‘देखा एक ख्वाब’ (2011-2012), ‘परिचय’ (2013-2013), ‘संस्कार धरोहर अपनो की’ (2013-14) जैसे कई टीवी शोज में अरुणा अहम किरदार निभा चुकी हैं.इसके अलावा उन्होंने टीवी के क्षेत्र में धारावाहिक निर्माण किया है कई गुजराती फिल्मों में भी उन्होंने काम किया है.
सई परांजपे की “साज” (1998) अरुणा की यादगार फिल्मों में से है, हालाँकि बॉक्स ऑफिस पर वह नहीं चली.वे फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी उतर चुकी हैं.बरेली विश्विविद्यालय में आयोजित दीक्षांत समारोह में चरित्र अभिनेत्री अरूणा ईरानी को डॉक्टरेट (2017) की डिग्री से नवाजा गया।