पुण्य तिथि पर विशेष।
स्वप्निल संसार। बेकल उत्साही का असल नाम शफ़ी खाँ लोदी था। वे शायर कवि, लेखक और राजीनीतिज्ञ थे। उत्साही हिंदी-उर्दू और अवधी भाषा से जुड़े थे। इन्ही भाषाओं करके उन्होंने कविताएँ और गीत लिखे हैं।
शफ़ी खाँ लोदी के पिता का नाम ज़फ़र खां लोदी और माँ का नाम बिस्मिल्ला था। इनका बलरामपुर 1928 में बलरामपुर में हुआ। शुरूआती पढ़ाई अपने गाँव की और हाईस्कूल के पढ़ाई बलरामपुर के ऍस॰सी॰ कॉलेज से की।
1952 के चुनाव प्रचार में जवाहरलाल नेहरू गोंडा के दौरा पर आए थे। इसी समय इनकी कविता “किसान भारत का” सुनकर इनके उत्साह की प्रशंसा की, जिसके बाद शफ़ी खाँ लोदी बेकल ने “उत्साही” को अपने हिस्सा बनाया।
बेकल उत्साही कांग्रेस से जुड़े रहे और इंदिरा गाँधी के करीबी बने। राष्ट्रीय अखंडता के खातिर काम करने के कारण इनको राज्य सभा के लिए नामांकित किया गया। वे राष्ट्रीय एकता परिषद के सदस्य भी रहे, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं। बेकल उत्साही को हिंदी और उर्दू के बीच की दूरी कम करनेवाला साहित्यकार मानल जाता है। इनकी कुछ प्रमुख रचनाओं हैं:नगमा-ओ-तरन्नुम (1958) बिगुलविजय लहके बगिया महके खेत सरवरे जाविदाँ (1960) अपनी धरती चाँद का दर्पन पुरवाईयाँ (1976) कोमल मुखड़े बेकल गीत शुआमजी (1984) चल गोरी दोहापुरम्अनुवाद-नेपाल के शाह महेंद्र के गीत संग्रह बसई को लोग का अनुवाद फिलिस्तीनी कवि महमूद दरवेश की रचना का अनुवाद।
सम्मान
1976 में बेकल उत्साही को पद्मश्री सम्मान मिला। इसके अलावा इनको उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यश भारती से सम्मानित किया गया। कांग्रेस पार्टी के पूर्व सांसद और मशहूर शायर बेकल उत्साही का मष्तिकाघात के कारण 3 दिसंबर 2016 को राष्ट्रीय राजधानी के निजी अस्पताल में निधन हो गया था । जहाँ वो मष्तिष्क में रक्तस्राव के बाद एक दिसंबर 2016 को उन्हें राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया था।