पवन सिंह।भारतीय न्यूज चैनलों से वो चाहे हिंदी भाषाई हों, रीजनल हों या अंग्रेजी..इन सभी से दूरी बनाने का वक्त आ चुका है। जैसे ट्रकों के पीछे लिखा होता है कि “कृपया उचित दूरी बनाए रखें” या “सटिले त गईले भैया”…कुल मिलाकर यही सुरक्षात्मक पंक्तियां भारतीय न्यूज चैनलों पर सटीक बैठती हैं। हालांकि, न्यूज चैनलों ने भारतीय जनमानस में अधिकांश लोगों को पहले ही दंगाई बना दिया है लेकिन अब आंच देश के सम्मान और उसकी अस्मिता पर आ रही है, ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो गया है न्यूज चैनलों से उचित दूरी बनाई जाए। इसके लिए बतौर एक भारतीय नागरिक स्वयं को भी तैयार करें और अपने बच्चों को।
न्यूज़ चैनलों ने लोगों के दिलोदिमाग में धर्म, संप्रदाय, जाति के नाम पर जिस तरह का जहर भरा है उसने लोगों के सोचने-समझने की शक्ति छीन ली है। जब आप कोई न्यूज़ चैनल देख रहे होते हैं दरअसल वो न्यूज चैनल नहीं होता वह प्रोपोगंडा प्रसारण होता है…जब आप अखबार पढ़ रहे होते हैं तो दरअसल वह अखबार नहीं होता बल्कि सत्ता का पैम्फलेट होता है…। एक ताजा उदाहरण है एक माह पहले ही पूरे देश में विद्युत तापीय संयंत्रों यानी थर्मल पावर सेक्टर के लिए कोयले की कमी का जमकर प्रसार किया गया। मीडिया काम पर लगा दिया गया और आज से तीन दिन पूर्व खबर आई कि अडानी को 6000 करोड़ का कोयला सप्लाई का ठेका दिया गया है..। अडानी ने कुछ साल पहले आस्ट्रेलिया में कोयले की खदानें खरीदी थीं अब वहां खनन आरंभ हो गया है। कोयला मंहगे दामों पर खरीदा जा रहा है और इसकी वसूली आपसे की जाएगी। एक और छोटा सा उदाहरण है कश्मीर फाइल्स के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की सुरक्षा पर सरकार हर महीने 15 लाख खर्च करती है। मीडिया के जरिए सत्ता ने इस फिल्म को प्रमोट किया। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू देखिए कि एक कश्मीरी शिक्षिका रजनी बाला ने सुरक्षा हवाला देते हुए कुछ दिनों की छुट्टी मांगी लेकिन सरकार ने नहीं दी और उन्हें आतंकवादियों ने मार दिया। मीडिया को जिस काम का टारगेट दिया गया उसने बखूबी किया। एक बड़े तथाकथित राष्ट्रवादी न्यूज चैनल का मालिक राज्यसभा भेजा जा रहा है जबकि वह 1300 करोड़ की बैंक रकम डकार गया है। रूचि सोया कंपनी की पूर्णतया गलत डील पर मीडिया ख़ामोश रह गया लेकिन बैंक छटपटा कर रह गया, जिसमें हमारे आप जैसे चिंदी टाइप नागरिक पाई-पाई जोड़कर भविष्य के लिए बचाते हैं और अब ब्याज दर घटकर 4.9 पर आ गई। अरबों का कारपोरेट टैक्स माफ कर दिया गया और भरपाई जनता से लेकिन मीडिया खामोश है।
जिस मीडिया को आप अपना समझ रहे हैं दरअसल वह सत्ता संचालित एक गिरोह है जो लूट की बंदरबांट और देश की बर्बादी में पूरी तरह से खुलकर हिस्सा ले रहा है। जनता के सरोकारों के सारे विषय पर चर्चा बंद हो चुकी है। जब नैतिक मूल्य जिंदा होते हैं तो रूस के एक चैनल जैसे कालजई उदाहरण बनते हैं। युक्रेन पर हमले के विरोध में रूस के एक बड़े न्यूज चैनल के एडिटोरियल व टेक्निकल स्टाफ ने लाइव इस्तीफा यह कहकर दे दिया कि जो मालिक और सत्ता कहेगी उस हिसाब से वो खबरें नहीं चला पाएंगे। भारत के तलुआचंटुओं से आप इस तरह की क्रांति की उम्मीद नहीं कर सकते। देश का 80% मीडिया उन पूंजीपतियों के कब्जे में है जो सत्ता के संग देश की लूट में सहभागी हैं। ऐसी स्थिति में क्या आपको लगता है कि आप खबरें देखते हैं?
देश के बड़े उद्योगपतियों और व्यापारियों को भी अब यह तय करने का वक्त आ गया है कि वो नफरती न्यूज चैनलों व अखबारों को विज्ञापन देना बंद करें। यह कदम न केवल देश हित में होगा बल्कि स्वयं उनके व्यावसायिक हित में भी होगा..क्योंकि अराजकता में फंसे और आर्थिक रूप से टूटे हुआ देश में जनता कितनी सक्षम रह जाएगी जो उत्पाद खरीदेगी और अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संबंध बिगड़े तो भी व्यापार का चौपट होना सुनिश्चित है। इसलिए बेहतर यही है समय रहते न्यूज चैनलों व अखबारों से आप अपने को और अपने बच्चों को अलग कर लें। विपक्ष के लोगों को भी अब एक मंच पर आकर यह तय करना होगा कि अगर चैनल की डिबेट धर्म आधारित होगी तो वे अपने प्रवक्ताओं को नहीं भेजेंगे। बहस अगर जन सरोकारों के मुद्दों को लेकर होगी तभी वे हिस्सा लेंगे। फिलहाल, समय बहुत कम है और जितनी जल्दी आप लश्करे न्यूज चैनलों से दूर भाग सकें भाग लें। क्योंकि ये समाचार चैनल नहीं एक खासवर्ग व खास मानसिकता के बारूद से लोडेड तोपें हैं जिसकी नाल जब भटेगी तब भटेगी लेकिन सबसे पहले आप और आपके बच्चे और आपका-हमारा यह मुल्क दरक चुका होगा।