भारत की अर्थ व्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। अभी आयात और निर्यात का समीकरण सुधारना है। गाय हमें दूध ही नहीं देती बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था को सुधारने में भी मदद देती है। हमारे भारत की कुछ प्रमुख समस्याएं हैं किसानों की आत्महत्या इसका कारण हर चीज बाहर से खरीदना जैसे-बीज, खाद, कीटनाशक, ट्रैक्टर और उपज के समय मंडी में भाव न मिलना।
बढ़ती महंगाई, पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमत, रुपये की गिरावट, अत्यधिक टैक्स समय से कर्ज अदा न करना। बढ़ती गरीबी, बिजली, पानी की कमी। इन सबका मुख्य कारण है सब कुछ बाहर से खरीदना जैसे बीज, खाद, कीटनाशक, दवाइयां पेट्रोल, गैस। इसी तरह भारत सरकार अपने देश में मौजूद पशुधन का इस्तेमाल न करके, जब पेट्रोल, खाद, कीटनाशक, गैस इत्यादि बाहर से रोज-रोज खरीदेगी तो देश का रुपया सुधारने से तो रहा, उल्टा गर्त में ही जायेगा।
मीथेन गैस का उत्पादन ही तेल के बढ़ते दामों का सही जवाब और विकल्प है। आज नहीं तो कल तेल के भण्डार खाली हो ही जायेंगे, तब भी हमको मीथेन गैस के उत्पादन की तरफ ही आना पड़ेगा। मीथेन गैस बनती है जैविक कचरे से अथवा पशु के गोबर से, जैसे देसी गाय का गोबर। भारत जैसे विकासशील देशों को चाहिए कि वह मीथेन गैस का उत्पादन करके अपनी ऊर्जा की जरूरत को पूरा करे। भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा पशुधन लगभग 50 करोड़ का है, जो 25 करोड़ टन गोबर उत्पादन करता है। इसको इस्तेमाल करके हम न सिर्फ रसोई गैस, बल्कि पेट्रोल के विकल्प में भी आत्मनिर्भर हो सकते हैं। एलपीजी, केरोसिन, पेट्रोल इन तीनों की पूरी तरह से निर्भरता को मीथेन गैस से कम किया जा सकता है। मीथेन गैस से बिजली भी बनती है जोकि भारत के सारे गांवों की बिजली की जरूरत को पूरा कर सकती है। मीथेन गैस बनने के बाद जो गोबर बचेगा, वह खेती के लिए एक उपयुक्त खाद का भी काम करेगा जोकि रासायनिक फर्टिलाइजर पर भारत की खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा भी बचाएगा। उत्तर प्रदेश में गोबर गैस अनुसंधान स्टेशन ने साबित किया है कि एक गाय एक साल में पेट्रोल की 225 लीटर के बराबर मीथेन गैस का उत्पादन करने के लिए गोबर देती है।
आम तौर पर मिट्टी का तेल ग्रामीण भारत में मुख्य ईंधन है जबकि बाहरी शहरी क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए एलपीजी प्रयोग किया जाता है। एक 15 किलो एलपीजी सिलेंडर छह लोगों के एक परिवार के लिए दो महीने तक रहता है। यही बात मिट्टी के तेल के लिए सच है। पूरे एलपीजी और मिट्टी के तेल की हमारे 121 करोड़ की आबादी की आवश्यकता की 9.2 करोड़ गायांे के गोबर से उत्पादित मीथेन गैस पूरी करा सकती है। सीएनजी की तरह मीथेन गैस पेट्रोल की जगह में आॅटोमोबाइल इंजन चलाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। हमारी पेट्रोल की खपत (2002-04) में आठ टन थी। एक गाय पेट्रोल की 225 लीटर के बराबर मीथेन गैस पैदा करती है। इस धारणा पर हमें पेट्रोल की आठ करोड़ टन जरूरत को पूरा करने के लिए लगभग 4 करोड़ गायों की आवश्यकता होगी। अगर अब 2012-2013 में पेट्रोल की खपत 5 गुना (40 लाख टन) भी हो गयी हो तो भी 20 करोड़ गाय ही इसके लिए काफी हैं। गोबर गैस संयंत्र 20,000 रुपये से 1,00,000 रुपये के बीच लागत में और तीन घन मीटर से 270 क्यूबिक मीटर कैपेसिटी, और विभिन्न आकारों में उपलब्ध है। एक कंप्रेसर पोर्टेबल सिलेंडर में इस मीथेन गैस को निकालने और भरने के लिए चाहिए। ये मीथेन गैस सिलेंडरों से खाना पकाने के लिए या आटोमोबाइल और दो पहिया वाहन में इस्तेमाल की जा सकती है। यानी कुल मिलाकर 10 करोड़ गाय रसोई गैस, 20 करोड़ गाय पेट्रोल और 10 करोड़ गाय ग्रामीण बिजली के लिए काफी होंगी। सिर्फ 50 करोड़ गाय से ही भारत स्वावलंबी बन सकता है।
कृषि खाद (फर्टिलाइजर) और कीटनाशक किसानों की सारी समस्या का समाधान है सिर्फ देसी गाय। बीज सिर्फ देसी ही खरीदें (पहली बार) खेती करने के लिए देसी बीज खरीदने होंगे। दूसरी बार किसान अपने बीजों से ही खेती करेगा, बीज का खर्चा बचेगा। संकर यानि हाइब्रिड बीज से बीज नहीं बनते। आजकल जीएम (जेनेटिकली माडिफाइड) बीज बाजार में उपलब्ध हैं, जो कि न सिर्फ सेहत के दुश्मन हैं, बल्कि इन बीजों से आप बीज पैदा नहीं कर सकते, इन बीजों को बनाने वाले अपनी दुकान निरंतर चलाना चाहते हैं इसलिए वह नहीं चाहते कि आप अपने बीज खुद बनायें जो ये हाइब्रिड बीज अपने खेत में डालते हैं उन्हें हर हाल में यूरिया, डीएपी जैसे जहरीले रसायन भी खरीदने पड़ेंगे, नहीं तो कुछ भी पैदा नहीं होगा। सिर्फ देसी बीज ही लें। दूसरी फसल से किसान का बीज का खर्चा खत्म। यूरिया, डीएपी की जगह डालें देसी गाय के गोबर और गोमूत्र की खाद। 1 एकड़ खेत में सिर्फ 10 किलो देसी गाय का गोबर, 5.7 लीटर गोमूत्र 1 किलो गुड़, 1 किलो आटा (बेसन) 1 मुट्ठी पुराने पेड़ की मिट्टी चाहिए। इन सबको 200 लीटर पानी में मिलायें, 48 घंटे छांव में रखे। उसके बाद सिंचन के पानी के साथ 1 एकड़ खेत में लगाएं। यूरिया, डीएपी का खर्चा पहली फसल से ही खत्म। थोड़ा सा खर्चा गुड़ और बेसन लाने में होगा। कीटनाशक के लिए गोमूत्र 5 लीटर 100 लीटर पानी में मिलाकर 1 एकड़ खेत में छिड़क सकते हैं। इसी तरह से अलग-अलग बीमारियों या कीटों के लिए अलग-अलग देसी प्राकृतिक दवाएं हैं। जहर और केमिकल रहित खाने से लोगों का स्वास्थ्य सुधरेगा, जिससे कैंसर, ब्लड प्रेशर, शुगर और हार्ट अटैक जैसी गंभीर जानलेवा बीमारियों से बचाव होगा। मतलब गाय है तो भारत है और भारत है तो विश्व है। इसलिए भारतीय समाज और संस्कृति की प्रतीक गाय को घर ले आएं। (हिफी)