नरेश दीक्षित। प्रेस क्लब लखनऊ में आयोजित प्रकासकों की एक बैठक सम्पन्न हुई । उपस्थित समाचार पत्र प्रकासकों ने एक स्वर से डी ए वी पी विज्ञापन पालिसी 2016 को समाप्त करने, लघु एवं मध्यम समाचार पत्र पत्रिकाओ से जी एस टी हटाने के लिए संघर्ष का एलान किया । यदि ऐसा एलान विज्ञान पालिसी के खिलाफ तब किया गया होता जब डी ए वी पी द्वारा नई पालिसी घोषित की गई थी तो आज लघु एवं मध्यम समाचार पत्र पत्रिकाओ को यह दिन न देखने न होते, और लाखों परिवार बेरोजगार होने से बच जाते ।
वष॔ 2016 में विज्ञापन पालिसी के विरुद्ध कई पत्रकार संगठनो ने विरोध तो किया लेकिन उनका साथ देने के लिए कोई मैदान में नही आया ।
सरकार के गैर कानूनी, असंवैधानिक विज्ञापन पालिसी को संशोधित करने / समाप्त करने के लिए लिए सव॔ प्रथम राष्ट्रीय पत्रकार एसोसिएशन की ओर से नरेश दीक्षित द्वारा लखनऊ हाईकोर्ट बैंच में रिट डाली गई तत्पश्चात आल इण्डिया स्माल न्यूज पेपर एसोसिएशन की ओर से श्री अशोक नवरत्ना ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की बेंच में पालिसी को समाप्त करने के लिए याचिका प्रेषित की थी । यह वह समय था जब प्रदेश एवं देश के सभी प्रकासको ने यदि सैकड़ो की संख्या में रिट दाखिल कर दी होती तो कोर्ट / सरकार असंवैधानिक विज्ञापन पालिसी समाप्त करने पर मजबूर हो जाती ।
लखनऊ हाईकोर्ट बैंच में दाखिल रिट संख्या 22379/ 2016 में मांग की गई थी कि पालिसी पी आई बी एक्ट एवं लघु मध्यम समाचार पत्रो के विरुद्ध है इसे समाप्त किया जाए बैंच ने इसे गम्भीरता से सुनते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को आदेश दिया कि याची को दो माह के अदंर पॉलिसी को संशोधित / समाप्त करने के लिए बताए । उक्त आदेश संबंधित को रिसीव कराने के बाद जब निर्धारित समय पर काय॔वाही नही हुई तो पुनः लखनऊ बेंच में रिट संख्या 4005/ 2017 दाखिल की जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। इस आदेश के विरुद्ध रिव्यू पिटीशन संख्या 33072 / 2017 डाली गई लेकिन कोर्ट ने इसे भी खारिज कर दिया, तत्पश्चात हाईकोर्ट के आदेशो के विरुद्ध मा उच्चतम न्यायालय में पी आई एल संख्या 16932 व 16933/ 2017 दाखिल की गई जिस पर चीफ जस्टिस श्री दीपक कुमार मिश्र व जस्टिस खानवेलकर की बैच ने अपील को गंभीरता पूर्वक सुन कर सूचना-प्रसारण मंत्रालय को दिनांक 21, 8, 2017 को इश्यू नोटिस जारी कर दिया । अभी फाइनल बहस नही हुई है अगली सुनवाई दिनांक 26 अक्टूबर 2018 को होनी है लेकिन डी ए वी पी से काउंटर एफिडेविट लग गया है । यह अदालती लड़ाई सिर्फ दो ही प्रकासक लड़ रहे है कोई भी प्रकासक संघर्ष में साथ देने नही आया । अब जब भारत सरकार ने लघु एवं मध्यम समाचार पत्रो पर जी एस टी धोप कर समाचार पत्रो को बन्द करने पर उतारू है तो अब पुनः संघर्ष की बात होने लगी है? यदि प्रकासक वास्तव में गंभीर है तो सब को मिलकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल रिट पर अच्छा वकील कर बहस कराना चाहिए ।
जहां तक रही जी एस टी की बात तो मेरे विचार से सभी प्रकासको को अपने अपने समाचार पत्रो से जी एस टी हटाने के लिए पुरे देश से जब तक कोट॔ में रिटे डाली नही जायेगी तब तक कोई सुनने वाला नही है ।मैंने जी एस टी के खिलाफ रिट तैयार कर ली थी लेकिन डाली इस लिए नही कि अकेला चना कभी भाड़ नही फोड़ता? नरेश दीक्षित संपादक समर विचार