मुबारक साल गिरह ।
एजेंसी। ब्रिटिश काल में 22 मई 1940 को कर्नाटक के मैसूर में पैदा हुए ई. प्रसन्ना का पूरा नाम इरापल्ली अनंतराव श्रीनिवास प्रसन्ना है। मैसूर में प्रसन्ना के पिता ब्रिटिश सेवा में सिविल सर्वेंट थे। उन दिनों साउथ में माता-पिता अपने बच्चों को खेल से दूर ही रखते थे। जब प्रसन्ना बड़े हो रहे थे, उस दौर में क्रिकेट का बहुत ज़्यादा क्रेज़ नहीं था। सिर्फ एक जुनून के तौर पर क्रिकेट खेला जाता था। प्रसन्ना के पापा का भी ख्वाब था कि उनका बेटा इंजीनियर बने और एक अच्छी नौकरी पाए, लेकिन प्रसन्ना को तो क्रिकेट का भूत सवार था। वह दोस्तों के साथ मैसूर के मैदान और गलियों में क्रिकेट खेला करते थे। जब 1960-61 में यूनिवर्सिटी में प्रसन्ना की इंजीनियरिंग का पहला साल चल रहा था, तो उनका इंग्लैंड टीम के खिलाफ इंडियन टीम के लिए स्पिन गेंदबाज़ के तौर पर चयन हो गया। मगर प्रसन्ना के पिता उन्हें क्रिकेट खेलने देने के लिए ज़रा भी राज़ी नहीं थे। बहरहाल, 10 जनवरी, 1962 को प्रसन्ना ने इंग्लैंड के खिलाफ अपने करियर का आगाज किया। प्रसन्ना के चयन के समय उनके पिता उनसे काफी नाराज़ हो गए।इसके बाद जब टीम वेस्टइंडीज के दौरे पर जाने वाली थी, तो पिता ने साफ-साफ प्रसन्ना से कह दिया कि “क्रिकेट छोड़ो, और पढ़ाई करो।”तब बीसीसीआई सचिव एम चिन्नास्वामी ने प्रसन्ना के पिता को मनाया कि अपने लड़के को वेस्टइंडीज़ जाने दो। जिसके बाद यह फैसला हुआ कि प्रसन्ना वेस्टइंडीज़ तो जाएंगे लेकिन वहां से आने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करेंगे। बीसीसीआई सचिव एम चिन्नास्वामी ने प्रसन्ना के पिता को राज़ी तो कर लिया था। जिसके बाद प्रसन्ना को वेस्टइंडीज़ जाने की इजाज़त मिल गई। वह वेस्टइंडीज़ दौरे ये सोचकर गए कि वहां से वापस आने के बाद अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई को मुकम्मल कर लेंगे। मगर जब वे वापस आए तो जिंदगी ने उनके लिए कुछ और ही सोच रखा था। उनके पिता दुनिया से गुज़र चुके थे. जिसके बाद प्रसन्ना के हाथ से क्रिकेट बॉल भी छूट गई। प्रसन्ना को क्रिकेट छोड़ इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी करनी थी और खुद के लिए नौकरी ढूंढ़नी थी। उस दौर में क्रिकेट में बिल्कुल भी पैसा नहीं था। घरेलू रणजी मैच खेलने के लिए खिलाड़ियों को रोज़ सिर्फ 5 रुपए मिला करते थे। यही कारण था कि प्रसन्ना क्रिकेट छोड़ कर पढ़ाई करने में जुट गए। हालांकि क्रिकेट के फेर के चलते उनकी पढ़ाई कभी पूरी नहीं हो सकी और वह डिग्री पूरी नहीं कर पाए. जिसका मलाल उन्हें आज भी है। प्रसन्ना अपनी इंजीनियरिंग पूरी करने में लग गए, लेकिन किस्मत का चक्र ऐसा घूमा कि उन्हें वापस क्रिकेट का रुख करना पड़ा। शायद वह क्रिकेट के लिए ही बने थे। पांच साल तक प्रसन्ना क्रिकेट से दूर रहे और फिर अचानक उनकी वापसी क्रिकेट मैदान पर हुई। यह महज़ संयोग ही था कि जहां से ई. प्रसन्ना ने अपने क्रिकेट करियर का आगाज़ किया था। वह दोबारा उसी ज़मीन यानी वेस्टइंडीज़ पहुंच चुके थे। 1966-67 के दौर में टीम इंडिया फिर वहां गई थी। इन पांच सालों में ई. प्रसन्ना की कलाई और उंगलियां काफी बदल गई थीं। वापसी के बाद प्रसन्ना ने 20 मैचों में 100 विकेट लेने का कारनामा कर इतिहास रच दिया। ये किसी भी इंडियन स्पिन बॉलर की ओर से सबसे तेज लिए गए 100 टेस्ट विकेट थे। ये रिकॉर्ड टीम इंडिया के स्पिनर रविचंद्रन अश्विन ने 18 टेस्ट खेलकर 100 विकेट पूरे कर तोड़ा था।
प्रसन्ना का जादू टेस्ट मैच के पहले दिन ही दिखा। प्रसन्ना ने उस दिन 87 रन देकर 8 विकेट लिए. इसके बाद वे नहीं रुके। उन्होंने घूमती स्पिन गेंदों का जादू ऐसे देशों में दिखाना शुरू कर दिया। जहां कभी टीम इंडिया जीतती ही नहीं थी। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के खिलाफ 16 टेस्ट मैचों में 23.50 की इकॉनमी से उन्होंने 95 विकेट चटकाए थे। 1970 का दशक आते-आते प्रसन्ना दुनिया के बेस्ट बॉलर बन चुके थे। उनकी बॉलिंग के कारण 1968 में इंडियन टीम विदेशी ज़मीन पर अपनी पहली टेस्ट सीरीज जीतने में कामयाब हुई थी। उस सीरीज के चार टेस्ट मैचों में प्रसन्ना ने 24 विकेट लिए थे।
मैदान पर धीरे-धीरे ई. प्रसन्ना अपनी स्पिन बॉलिंग से ज़्यादा अपनी चतुराई के लिए मशहूर हो गए। कहा जाता है कि मैदान पर बॉलिंग करने के दौरान ई. प्रसन्ना क्रिकेट नहीं बल्कि दिमागी खेल शतरंज खेलते थे। प्रसन्ना अपनी अटैकिंग बॉलिंग के लिए जाने जाते थे। उनका मानना है कि क्रीज़ पर बल्लेबाज़ जितना आक्रामक खेलेगा, गेंदबाज़ के लिए उसे आउट करना उतना ही आसान होगा। उनका मानना था कि बल्लेबाज़ शॉट खेलने के चक्कर में कोई न कोई गलती ज़रूर करता है। जब बल्लेबाज़ डिफेंसिव होकर खेलेगा, उसका विकेट लेना स्पिन गेंदबाज़ के लिए उतनी ही चुनौती होगी। प्रसन्ना की बॉलिंग में बल्लेबाज़ एक-एक करके जाल में फंसते जाते थे। गैरी सोबर्स से लेकर क्लाइव लॉयड और इयान चैपल तक ने इस गेंदबाज़ की जमकर तारीफ की है। चैपल ने प्रसन्ना को लेकर कहा था कि “मैंने प्रसन्ना से बेहतरीन स्लो स्पिन गेंदबाज़ अपने पूरे करियर में नहीं खेला।” प्रसन्ना ने कुल 49 टेस्ट मैचों में 189 विकेट लिए थे. इसमें इनका करियर बेस्ट 76 रन देकर 8 विकेट रहा था। 1978 के दौर में वनडे मैच आने के बाद प्रसन्ना ने क्रिकेट से दूरी बना ली। तब उनकी उम्र 38 हो गई थी। बाद में वह टीम के साथ बतौर मैनेजर जुड़े रहे। क्रिकेट में अहम योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड और क्रिकेट अचीवमेंट अवार्ड से भी नवाज़ा गया।