जयन्ती पर विशेष। इलाचन्द्र जोशी ( 13 दिसम्बर, 1903 – 1982) हिन्दी में मनोवैज्ञानिक उपन्यासों के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। जोशी जी ने अधिकांश साहित्यकारों की तरह अपनी साहित्यिक यात्रा काव्य-रचना से ही आरम्भ की। पर्वतीय-जीवन विशेषकर वनस्पतियों से आच्छादित अल्मोड़ा और उसके आस-पास के पर्वत-शिखरों ने और हिमालय के जलप्रपातों एवं घाटियों ने, झीलों और नदियों ने इनकी काव्यात्मक संवेदना को सदा जागृत रखा।
जोशी जी बाल्यकाल से ही प्रतिभा के धनी थे। उत्तरांचल में जन्मे होने के कारण, वहाँ के प्राकृतिक वातावरण का इनके चिन्तन पर बहुत प्रभाव पड़ा। अध्ययन में रुचि रखन वाले इलाचन्द्र जोशी ने छोटी उम्र में ही भारतीय महाकाव्यों के साथ-साथ विदेश के प्रमुख कवियों और उपन्यासकारों की रचनाओं का अध्ययन कर लिया था। औपचारिक शिक्षा में रुचि न होने के कारण इनकी स्कूली शिक्षा मैट्रिक के आगे नहीं हो सकी, परन्तु स्वाध्याय से ही इन्होंने अनेक भाषाएँ सीखीं। घर का वातावरण छोड़कर इलाचन्द्र जोशी कोलकाता पहुँचे। वहाँ उनका सम्पर्क शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय से हुआ।
जोशी जी उपन्यासकार के रूप में ही अधिक प्रतिष्ठित हैं। उनके कवि, आलोचक या कहानीकार का रूप बहुत खुलकर सामने नहीं आया। इनके उपन्यासों का आधार मनोवैज्ञानिक यथार्थवाद की संज्ञा पाता है। मनोवैज्ञानिक उपन्यासों पर ‘फ़्रायड’ के चिन्तन का अधिक प्रभाव पड़ा, किन्तु इलाचन्द्र जोशी के साथ यह बात पूरी तरह से लागू नहीं होती। जोशी जी ने पाश्चात्य लेखकों को भी बहुत पढ़ा था, पर रूसी उपन्यासकारों-टॉल्स्टॉय और दॉस्त्योवस्की का प्रभाव अधिक लक्षित होता है। यही कारण है कि उनके औपन्यासिक चरित्रों में आपत्तिजनक प्रतृत्तियाँ होती हैं, किन्तु उनके चरित्र नायकों में सदगुणों की भी कमी नहीं होती। उदारता, दया, सहानुभूति आदि उनके अन्दर यथेष्ट रूप में पाए जाते हैं। ये नायक इन्हीं कारणों से असामाजिक कार्य भले कर बैठते हैं, किन्तु बाद में वे पश्चाताप भी करते हैं।
उपन्यास के अतिरिक्त इन्होंने हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में भी योगदान दिया है। इन्होंने कहानियाँ भी लिखीं। इनके चर्चित कहानी संग्रह निम्नलिखित हैं- कहानी धूपरेखा आहुति खण्डहर की आत्माएँ जीवनी रवीन्द्रनाथ शरद: व्यक्ति और साहित्यकार
जीवन का महान् विश्लेषक विराटवादी कवि गेटे आलोचनात्मक ग्रन्थ साहित्य सर्जन साहित्य चिन्तन विश्लेषण उपन्यास
जोशीजी ‘कोलकाता समाचार’, ‘चाँद’, ‘विश्ववाणी’, ‘सुधा’, ‘सम्मेलन पत्रिका’, ‘संगम’, ‘धर्मयुद्ध’, और ‘साहित्यकार’ जैसे पत्रिकाओं के सम्पादन से भी जुड़े रहे। इन्होंने बाल-साहित्य में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। कुछ अनुवाद कार्य भी किए। इलाचन्द्र जोशी के प्रमुख उपन्यास इस प्रकार हैं- घृणामयी – बाद में यही उपन्यास ‘लज्जा’ नाम से प्रकाशित हुआ। घृणामयी 1929 में प्रकाशित हुई।
लज्जा 21 वर्षों के बाद 1950 में। संन्यासी परदे की रानी प्रेत और छाया मुक्तिपथ जिप्सी जहाज़ का पंछी भूत का भविष्य
सुबह निर्वासित ऋतुचक्र ।
‘साहित्य सर्जना’, ‘विवेचना’, ‘साहित्य चिन्तन’, ‘रवीन्द्रनाथ’, ‘उपनिषद की कथाएँ’, ‘सूदखोर की पत्नी’ आदि समालोचना और निबन्ध के ग्रन्थ हैं। इन्होंने कुछ समय तक आकाशवाणी में भी काम किया और रवीन्द्र की रचनाओं का हिन्दी में अनुवाद किया। जोशीजी ने बंगला और अंग्रेज़ी में भी कुछ रचनाएँ की हैं।