1985 में 23 जून को रविवार था, लेकिन वो रविवार दुनिया के इतिहास के बेहद वीभत्स और मनहूस दिनों में गिना जाता है क्योंकि एयर इंडिया फ्लाइट कनिष्क-182 जो टोरंटो से उड़ान भरने के बाद लंदन होते हुए कुछ घंटों में नई दिल्ली पहुंचने वाली थी, लेकिन सुबह होने से पहले यूरोप की सीमा में दाखिल होने के बाद 31 हजार फीट की ऊंचाई पर इस विमान में जोरदार धमाका हुआ और उसमें सवार सभी 329 लोग मारे गए।
एयर इंडिया का बोइंग विमान कनिष्क हवाई जहाज में 307 यात्री और 22 क्रू मेंबर्स सवार थे और टोरंटो से इन लोगों को लेकर विमान यूरोप की सीमा में दाखिल होने के बाद आयरलैंड की ओर पहुंचा ही था कि उसमें धमाका हो गया जिससे हजारों फीट की ऊंचाई पर विमान में आग लग गई और जलता हुआ विमान अटलांटिक सागर में गिर गया, साथ ही सवार सभी यात्रियों की मौत हो गई।
हादसे में मारे गए कुल 329 लोगों में से 268 कनाडा, 27 इंग्लैंड, 10 अमेरिका और 2 भारत के नागरिक थे. साथ ही जहाज की क्रू में शामिल सभी भारतीय (22 लोग) भी मारे गए। इन यात्रियों में शामिल थे इन्द्र ठाकुर ,इन्द्र ठाकुर ने देवेन वर्मा की चटपटी से की थी। नदिया के पार ने उनको मशहूर कर दिया था। नदिया के पार के वी वो सचिन के बड़े भाई बने थे। इस फिल्म में उनकी नायिका थीं मिताली। हीरो और तुलसी में थे। इन्द्र ठाकुर के खाते में सिर्फ 4 फ़िल्में ही थीं। इन्द्र ठाकुर बीते दौर के अभिनेता हीरा लाल के बेटे थे। 131 यात्रियों के शव महासागर से बरामद किए जा सके।
एयर इंडिया के इस विमान का नाम प्राचीन भारत के महान सम्राट कनिष्क के नाम पर रखा गया था. इस हादसे को कनिष्क विमान हादसा के नाम से भी जाना जाता है. जहाज में ‘एम सिंह’ के नाम के यात्री को विमान में चढ़ना था, लेकिन वो नहीं चढ़ा. बस उसका सूटकेस जहाज तक पहुंचा दिया गया था. उस संदिग्ध ‘एम सिंह’ का न आज तक कोई पता चला और न ही उसे पकड़ा जा सका।
इस हमले को 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में छिपे अलग खालिस्तान की मांग कर रहे सिख आतंकियों को मारने के लिए केंद्र सरकार की ओर से ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के तहत की गई कार्रवाई का बदला माना गया।
6 जून 1984 को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार किया गया. भारतीय सेना का यह मिशन स्वर्ण मंदिर को जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों के चंगुल से छुड़ाना था. इस ऑपरेशन में बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे. ऑपरेशन ब्लूस्टार में 83 सैन्य कर्मी और 492 नागरिक मारे गए।
कनाडा और भारत की ओर से जांच में इस हादसे के लिए सिख आतंकी संगठन बब्बर खालसा को जिम्मेदार ठहराया गया और कहा गया कि उसी ने हवाई जहाज में बम रखने की योजना को अंजाम दिया. बब्बर खालसा के अलावा हमले की इस साजिश में कनाडा का भी एक ग्रुप शामिल था. कनाडा की जांच समिति की ओर से यह आशंका जताई कि इसके पीछे इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन भी शामिल था. किसी उड़ते हवाई जहाज को बम से उड़ाने की यह पहली घटना थी।
इस विमान हादसे के 55 मिनट बाद टोक्यो के नारिटा हवाई अड्डे पर भी एक बम धमाका हुआ था. जहां एयर इंडिया के दूसरे प्लेन को उड़ाने के लिए सामान में बम रख चेक इन कराया गया था. उस धमाके में एयरपोर्ट के सामान उठाने वाले 2 कर्मचारी मारे गए. इन दोनों ही घटनाओं में सामान्य बात यह थी कि बम को सूटकेस में छिपा कर जहाज तक पहुंचाया गया था।
जांच की प्रक्रिया पूरे 20 साल चली, जिसमें कनाडा सरकार के 130 मिलियन कनाडाई डॉलर खर्च हो गए, लेकिन आरोपी पकड़ में नहीं आए. यह कनाडा में किसी केस की सबसे महंगी जांचों में से एक है. लंबे जद्दोजहद के बाद एक आरोपी गिरफ्त में आया. धमाके के इकलौते दोषी इंद्रजीत सिंह रेयात को 10 साल की जेल हो गई, लेकिन वह 2016 में 28 जनवरी को कनाडा की जेल से रिहा हो गया. इंद्रजीत सिंह रेयात पर आरोप लगा कि धमाके के लिए उसने डेटोनेटर, डायनामाइट और बैटरीज खरीदी थी।
1991 में आरोपी रेयात को सामान उठाने वाले 2 कर्मचारियों की मौत के मामले में दोषी करार दिया गया. उसे इसके लिए 10 साल की सजा दी गई. वहीं एयर इंडिया विमान हादसे में नरसंहार के एक अन्य आरोप में 5 वर्ष की सजा दी गई. रेयात को झूठी गवाही देने के लिए 9 वर्ष की सजा मिली. यह अभी तक कनाडा में दी गई ऐसी सबसे लंबी सजा है. हालांकि सुनवाई के दौरान रेयत द्वारा जेल में गुजारे गए वक्त को इसमें जोड़ा गया. उसकी सजा सात जनवरी 2011 से शुरू हुई।
17 जून, 2010 को कनाडा की ओर से जारी जांच रिपोर्ट में इसके लिए कनाडा पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी बताया गया. कहा यह भी जाता है कि कनाडा खुफिया एजेंसियों को अलगाववादी सिख संगठनों की ओर से आतंकी वारदात को अंजाम देने की जानकारी थी. फिलहाल गुजरते वक्त के साथ इस हादसे को साढ़े 3 दशक गुजर गए हैं, लेकिन इसे साजिशकर्ताओं की कोई जानकारी नहीं मिल सकी. इस दिन को आज भी मनहूस हवाई सफर के मामले में काले दिन के रूप में गिना जाता है।
हादसे में मारे गए कुल 329 लोगों में से 268 कनाडा, 27 इंग्लैंड, 10 अमेरिका और 2 भारत के नागरिक थे. साथ ही जहाज की क्रू में शामिल सभी भारतीय (22 लोग) भी मारे गए. 131 यात्रियों के शव महासागर से बरामद किए जा सके।
एयर इंडिया के इस विमान का नाम प्राचीन भारत के महान सम्राट कनिष्क के नाम पर रखा गया था. इस हादसे को कनिष्क विमान हादसा के नाम से भी जाना जाता है. जहाज में ‘एम सिंह’ के नाम के यात्री को विमान में चढ़ना था, लेकिन वो नहीं चढ़ा. बस उसका सूटकेस जहाज तक पहुंचा दिया गया था. उस संदिग्ध ‘एम सिंह’ का न आज तक कोई पता चला और न ही उसे पकड़ा जा सका। इस हमले को 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में छिपे अलग खालिस्तान की मांग कर रहे सिख आतंकियों को मारने के लिए केंद्र सरकार की ओर से ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के तहत की गई कार्रवाई का बदला माना गया।
किसी उड़ते हवाई जहाज को बम से उड़ाने की यह पहली घटना थी। इस विमान हादसे के 55 मिनट बाद टोक्यो के नारिटा हवाई अड्डे पर भी एक बम धमाका हुआ था. जहां एयर इंडिया के दूसरे प्लेन को उड़ाने के लिए सामान में बम रख चेक इन कराया गया था. उस धमाके में एयरपोर्ट के सामान उठाने वाले 2 कर्मचारी मारे गए. इन दोनों ही घटनाओं में सामान्य बात यह थी कि बम को सूटकेस में छिपा कर जहाज तक पहुंचाया गया था।
जांच की प्रक्रिया पूरे 20 साल चली, जिसमें कनाडा सरकार के 130 मिलियन कनाडाई डॉलर खर्च हो गए, लेकिन आरोपी पकड़ में नहीं आए. यह कनाडा में किसी केस की सबसे महंगी जांचों में से एक है. लंबे जद्दोजहद के बाद एक आरोपी गिरफ्त में आया. धमाके के इकलौते दोषी इंद्रजीत सिंह रेयात को 10 साल की जेल हो गई, लेकिन वह 2016 में 28 जनवरी को कनाडा की जेल से रिहा हो गया. इंद्रजीत सिंह रेयात पर आरोप लगा कि धमाके के लिए उसने डेटोनेटर, डायनामाइट और बैटरीज खरीदी थी।
1991 में आरोपी रेयात को सामान उठाने वाले 2 कर्मचारियों की मौत के मामले में दोषी करार दिया गया. उसे इसके लिए 10 साल की सजा दी गई. वहीं एयर इंडिया विमान हादसे में नरसंहार के एक अन्य आरोप में 5 वर्ष की सजा दी गई. रेयात को झूठी गवाही देने के लिए 9 वर्ष की सजा मिली. यह अभी तक कनाडा में दी गई ऐसी सबसे लंबी सजा है. हालांकि सुनवाई के दौरान रेयत द्वारा जेल में गुजारे गए वक्त को इसमें जोड़ा गया. उसकी सजा सात जनवरी 2011 से शुरू हुई।
17 जून, 2010 को कनाडा की ओर से जारी जांच रिपोर्ट में इसके लिए कनाडा पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी बताया गया. कहा यह भी जाता है कि कनाडा खुफिया एजेंसियों को अलगाववादी सिख संगठनों की ओर से आतंकी वारदात को अंजाम देने की जानकारी थी. फिलहाल गुजरते वक्त के साथ इस हादसे को साढ़े 3 दशक गुजर गए हैं, लेकिन इसे साजिशकर्ताओं की कोई जानकारी नहीं मिल सकी. इस दिन को आज भी मनहूस हवाई सफर के मामले में काले दिन के रूप में गिना जाता है।एजेंसी।