हमारे यहां ऐसा उसको कहा जाता है जो जो मन में होता है उसे मूंह पर कह देता है अगले को चाहे अच्छा लगे या बुरा वैसे ज्यादातर बुरा ही लगता है क्यों की कहने वाला बुरा ही कहता है।
मोरारजी भाई आजादी के बाद बने पहले मंत्रीमंडल के सदस्य थे स्वतंत्रता सेनानी थे प्रखर गांधी वादी थे नेहरू जी के निधन के काफी समय बाद उनके निजी सचिव एम ओ मथाई एक बार कुतुंब मीनार घुमने गए तो एक पत्रकार ने पूछा मोरारजी कैसे शख्स है तो मथाई ने जवाब दिया सामने जो लोहे का खंबा है उस पर अगर गांधी टोपी रख दी जाये तो बिल्कुल उस जैसे। ईमानदार अपनी बात पर अडिग रहने वाले पर बोलने में भी बिल्कुल खड़ी व बद् बात बोल देना सिर्फ उनके बस की बात है एकदम सच कहा था मथाई ने आइये। इस सच को जाने इसे समझे।
1937 में अंग्रेजों ने जो प्रजा परिषद के चुनाव करवाये थे उसमें बंबई में कांग्रेस की सरकार बनी थी उसमें मोरार जी कोई वरिष्ठ मंत्री भी नहीं थे पर उनकी अकड़ फूं के कारण सब उन्हें व्यंग्य में सर्वोच्च कहते थे और मोरार जी भाई को इस बात पर गुस्सा नहीं आता था बल्कि खुश होते थे।
1964 में पंडित नेहरु की जब अंतेयेष्ठी हो रही थी तब जलती चिता के सामने मोरार जी ने एक साथी को कहा था की अब प्रधानमंत्री का पद उनकी जेब में है।
इसी समय जब दूसरा नाम लालबहादूर शास्त्री का आया तो उनके बेटे कांति देसाई ने पत्रकार कुलदीप नैयर से कहा कि शास्त्री को कह देना ना खड़ा हो मेरे पिता के आगे उनका कुछ बंटना नहीं है। पत्रकार कुलदीप नैयर ने इसे अखबार में इस शीर्षक के साथ प्रकाशित किया कि प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव मे रिंग में पहली टोपी मोरारजी देसाई ने फैंकीं और ललकारा की है कोई माई का लाल जो मेरा सामना करे। कुलदीप नैयर की ये बात शास्त्री जी को प्रधानमंत्री बनाने की मुहिम में लगे कांग्रेस के चाणक्य के कामराज को बहुत पसंद आई उन्होने कहा तुमने अपना काम कर दिया अब बाकी मैं संभाल लू़गां कुलदीप धन्यवाद ।
कामराज को सबसे ज्यादा नफरत मोरारजी देसाई के अक्खड़ स्वभाव और बोलने में अभद्रता से थी
1966 में शास्त्री जी के निधन के बाद मोरारजी भाई एक बार फिर प्रधानमंत्री पद के मुख्य दावेदारों में से थे । तब के कामराज ने ने एक बार फिर मध्यस्थ के तौर पर कुलदीप नैयर को भेजा मोरारजी के दोस्त बहुत कम थे पर वो कुलदीप नैयर की बहुत मानते थे । इस बार कुलदीप नैयर ने मोरार जी से कहा कि कामराज ने संदेश भेजा है कि वो संसदीय दल के नेता का चुनाव ना हो इसके लिए जयप्रकाश नारायण व इंदिरा गांधी में से एक को चुन ले और देसाई को उपप्रधानमंत्री बना दिया जायेगा । देसाई ने जवाब दिया इंदिरा तो … गर्ल है और जयप्रकाश साभ्रांत व्यक्ति है पर राजनिती से कोरा है । मेरा उन दोनों से क्या मुकाबला इस बार तो प्रधानमंत्री मैं ही बनूंगां इस पर के कामराज ने उनके मुकाबले के लिए इंदिरा गांधी को तैयार किया कुलदीप नैयर एक बार फिर मोरारजी भाई के पास गए और कहा कि उनके मुकाबले में इंदिरा गांधी खड़ी हो रही है तो मोरार जी देसाई ने कहा जो औरत खड़े खड़े मूत नहीं सकती पेशाब नहीं कर सकती वो मोरारजी के सामने क्या खड़ी रह पायेगी । अब इससे भद्दा इससे घटिया कमेंट महिलाओं पर हो ही नहीं सकता । आज के जमाने में कोई नेता वो भी प्रधानमंत्री पद का दावेदार ऐसा कह दे तो देश में कोहराम मच जायेगा और कहने वाले उस नेता को जेल तक जाना पड़ेगा।
इंदिरा गांधी ने फिर भी उन्हें उपप्रधान मंत्री बनाया तब एक बार संसद में किसी सवाल का जवाब दे रही थी तब मोरारजी ने बीच में कहा कि इससे अच्छा जवाब मैं दे सकता हूं । इस उद्दंडता के कारण उन्हें मंत्रीमंडल से हठा दिया गया तो जो 1964 से वरिष्ठ कांग्रेसी मोरार जी के साथ थे उन्हें लेकर देसाई ने कांग्रेस तोड़ दी और संगठन कांग्रेस का जन्म हुआ ।
1977 में जब जेपी ने सभी विपक्षी दल को मिलाकर जनता पार्टी बनाई तो चुनाव में कम समय के कारण पार्टी बनने की शर्तें पूरी नहीं हुई तब चुनाव चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय लोकदल व उसके चुनाव चिन्ह हलधर पर लड़ा तब चुनाव में भारतीय लोकदल को 295 सीट व कांग्रेस को 154 सीट मिली । तब सबसे ज्यादा सांसदों का समर्थन स्वभाविक रूप से चौधरी चरण सिंह के साथ था पर पूर्व जनसंघ के सांसदों ने उनके सामने बाबू जगजीवन राम का नाम आगे कर दिया तब मामला लोकनायक जयप्रकाश नारायण के पास गया और जेपी ने बीच का रास्ता निकालते हुए कहा तो मैं मोरारजी भाई देसाई का नाम रखता हूं जो आप सब में वरिष्ठ भी है इस तरह आखिरकार मोरारजी भाई की प्रधानमंत्री बनने की इच्छा पूरी हुई इसके कुछ समय बाद जेपी बीमार हो गए और पटना के होस्पीटल में भरती थे तब मधु लिमये और कुलदीप नैयर ने मोरारजी देशाई जो तब प्रधानमंत्री थे से कहा कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण से आप मिल आइये इस पर मोरारजी देसाई ने कहा मैं अपने आप चल कर कभी महात्मा गांधी से मिलने नहीं गया तो ये जेपी वेपी क्या चीज है ? बना फिरता है लोकनायक उसे कह देना मैं नहीं मानता उसे लोकनायक ये एक वाक्य में दो महामानवों लोकतंत्र के दो वटवृक्षों का अपमान था। ये केवल अहसान फरामोसी ही नहीं थी मानसिक दिवालियापन खुदगर्जी और स्वंयभू अकड़ की पराकाष्टा थी पता नहीं ऐसे घटिया आदमी को इतने वर्ष तक इतने बड़े पद कैसे मिलते रहे।
ऐसे और भी कई मामले थे पर अब सिर्फ एक वाक्या और आप में से कई मित्रों ने मोहनलाल भास्कर की पुस्तक
” मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था “
पढी होगी भास्कर पाकिस्तान की जेलों में लंबी सजा काटकर यातना सह कर बड़ी मुश्किल से पाकिस्तान के सदर भुट्टो की कौशिशों से जब भारत पाकिस्तान ने एक दूसरे के जो कैदी लंबी सजा बिना अपराध सिद्ध ना होने के बावजूद को छोड़ने का फैसला किया तो उन रिहा हो कर अपने देश वापिस आने वालों में मोहनलाल भास्कर भी थे वे पढे लिखे थे ये 1978 की बात है तब एक बार उनका अन्य छूटे हुए कैदियों के साथ प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से मिलना हुआ तब भास्कर ने मोरारजी से कहा । हमारे जैसे देश के लिए जान हथेली पर लेकर दूसरे देश में जाकर जासूसी करने वालों के लिए सरकार ने कोई बड़े ईनाम बड़ी नौकरी देने जमीन देने व उनके परिवार को हर तरह की सुविधा का प्रावधान करना चाहिए आखिर हम इस काम में अगर मर जायें तो हमारे परिवार का क्या होगा ये सोचना सरकार का काम होना चाहिए । ये सरकार की जिम्मेदारी है उसे निभानी चाहिए । इस पर मोरार जी देसाई ने जवाब दिया सरकार की इसमें क्या जिम्मेदारी है भाई तुम लोगों को तुम्हारें काम की तनख्वाह मिलती है और जब तुम काम पर जाते हो तो तुम्हें और तुम्हारें परिवारों को इन सब खतरों की जानकारी होती है तब तुम लोगों और तुम्हारें परिवारों को किस बात का अलग से कोई लाभ दिया जाये जैसी नौकरी होती है उसी तरह के खतरे पर तनख्वाह भी तो ज्यादा मिलती है ऐसा कर के तुम देश पर और सरकार पर कोई अहसान नहीं करते हो तनख्वाह लेकर जो काम करते हो उसे देश सेवा कहते हो और उसका भी तुम्हें पारितोषक और चाहिए । इस फटकार के बाद मोहनलाल भास्कर ने पुस्तक के अंत में लिखा किसी भी प्रकार गलती किसी प्रकरण से किसी भी बात से किसी का दिल दुखा हो तो क्षमाप्रार्थी हूं सिवाय मोरारजी देसाई के ।
अंत में मोरारजी भाई देसाई का जन्मदिन है 29 फरवरी वे जब प्रधानमंत्री बने तब 81 साल के थे सबसे उम्रदराज प्रधानमंत्री तब पत्रकार द्वारा ये कहने पर की आप सबसे उम्रदराज प्रधानमंत्री हो मोरारजी भाई ने कहा मेरा जन्मदिन चार साल में एक बार आता है इस तरह मैंने सिर्फ 20 जन्मदिन मनाये है जिसके मात्र बीस जन्मदिवस आये हो वो तो युवा होता है । मोरारजी भाई देसाई की तरह चिरयुवा जिनका जन्मदिन 29 फरवरी है उन सबको भी बधाई। सोशल मीडिया से