-मुस्लिम देशों में भारत को लेकर बढ़ रही है नाराज़गी
पवन सिंह। देश में फैली या फैलाई जा रही नफरत का हर सौदा बहुत मंहगा होता है। यह कितना डैमेज करेगा इसके नतीजे तुरंत नहीं आते बल्कि वक्त लेते हैं लेकिन सिम्टम्स छोड़ते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कैंसर के सिम्टम्स होते हैं। जो लोग सतर्क होते हैं वो स्टेज वन में ही इलाज आरंभ कर देते हैं लेकिन 90% लोग ग्रेड थर्ड व फोर्थ तक चले जाते हैं और फिर कोई इलाज नहीं रह जाता केवल मौत के सिवा। मौत देह की भी होती है और मौत किसी हंसते-खेलते देश की भी हो सकती है। बहुत सारे उदाहरण हैं दिखाई दे जाएं और सबक बन सकें तो ठीक है वरना तो विनाश और फिर पुर्ननिर्माण प्रकृति का नियम है। कीमत तो आपको और आपके अपनों को अदा करनी पड़ेगी..क्योंकि नेचर की डिक्शनरी में क्षमा नाम का शब्द ही नहीं है। जब आप नफरत को दिमाग में बसा लेते हैं तो आज आप मुसलमानों से नफ़रत कर रहे हैं कल आप बौद्धों से फिर जैनियों से फिर ईसाईयों से फिर दलितों से फिर पिछड़ों से फिर तमिलों से उडियों से असमियों से, केरलाईट्स से….मतलब नफरत का कोई ओर-छोर नहीं है। ये नफरत एक दिन आपके ही अस्तित्व को मिटा देगी।
अब मैं भूमिका या अखबारी भाषा में इंट्रो से बाहर आकर बात कर रहा हूं कि इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन ने सोमवार को भारत को लेकर गहरी नाराज़गी जताई। यह भारत के संदर्भ में अच्छी खबर नहीं है। ओआईसी ने हरिद्वार में धर्म संसद, कर्नाटक में हिजाब विवाद और मुसलमानों के ख़िलाफ़ कथित नफ़रत को लेकर चिंता जताते हुए बयान जारी किया है। ”ओआईसी के महासचिव ने भारत के हरिद्वार में हिन्दुत्व के झंडाबरदारों की ओर से मुसलमानों के जनसंहार की अपील और सोशल मीडिया पर मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि कर्नाटक में मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध भी चिंताजनक है। ओआईसी के महासचिव ने इन मामलों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ख़ास कर संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार परिषद से ज़रूरी क़दम उठाने की अपील की है।”ओआईसी के महासचिव ने भारत से आग्रह किया है कि वह मुस्लिम समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करे। इसके साथ ही मुसलमानों की जीवन शैली की भी रक्षा होनी चाहिए। मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा और नफ़रत फैलाने वालों को न्याय के कटघरे में खड़ा करना चाहिए।”विदेश मंत्रालय के मुताबिक, लगभग आठ मिलियन से अधिक भारतीय पश्चिम एशिया में रहते और कार्य करते हैं, जिनमें से अधिकांश भारतीय, खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्य देशों जैसे-, बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और यूएई में रहते हैं, और 40 बिलियन डॉलर से अधिक की धनराशि प्रेषण के माध्यम से भारत को भेजते हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारतीय समुदाय के तीन करोड़ दस लाख से ज़्यादा लोग दुनिया के 134 देशों में बसे हुए हैं। इनमें से 80 लाख से ज़्यादा भारतीय खाड़ी देशों में हैं। इतनी बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में बसे भारतीयों के कारण भारत के खाड़ी देशों से बेहतर सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रिश्ते ज़रूरत रहे हैं और समय के साथ मज़बूत होते गए हैं।
भारतीय विदेश नीति में इन भारतीयों की ताकत गजब की है। प्रवासी भारतीयों की खाड़ी में इतनी तादाद को भारत के राजनीतिक दर्शन में तो जगह हासिल है ही, भारत की विदेश नीति में भी इन प्रवासियों को सॉफ्ट पावर के तौर पर देखा जाता है। हालांकि 1950 और 1960 के दशक में ऐसा नहीं था, लेकिन 1970 के दशक से बदलाव शुरू हुआ। अब तो भारत नीतिगत तौर पर अपने मूल के लोगों के प्रवासियों को लेकर एक्टिव रहता है। इन प्रवासी भारतीयों को भारत में वोट करने तक के अधिकार दिए जा चुके हैं। इसका सबसे बड़ा कारण इस समुदाय से जुड़ी भारी अर्थव्यवस्था है.भारत का विदेशी मुद्रा का खज़ाना यहीं से भरता है। भारत सहित कई विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा का काफी महत्व है क्योंकि इससे जीडीपी विकास दर सीधे तौर पर जुड़ी हुई है। साल 2018 में दुनिया के जिस देश को विदेशों से भेजा गया धन सबसे ज़्यादा मिला, 79 अरब डॉलर के साथ वह देश भारत ही था। आज भी भारत को सऊदी अरब, कुवैत, कतर, ओमान और यूएई से अरबों डालर मिलते हैं लेकिन भारत में मुसलमान विरोधी भावनाओं के कारण अरब देशों ने भारतीय कामगारों को किनारे लगाने पर विचार करना आरंभ कर दिया है। भारत की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के लिहाज से यह खबर कतई अच्छी नहीं है और वह तब जब चीन गिद्ध की तरह समूचे नार्थ ईस्ट पर नजर गड़ाए बैठा हो। नफ़रत का यह सारा हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद “तशरीफ़” में सरक जाएगा अगर खाड़ी देशों में यह नाराजगी और बढ़ती है।दोहा में बाकायदा भारत के विदेश मंत्रालय को भी तलब कर लिया गया। बीजेपी से निलंबित नुपुर शर्मा के पैगंबर मोहम्मद साहब पर दिए गए कथित विवादास्पद बयान की मुस्लिम वर्ल्ड में निंदा हो रही है। इस संबंध में रविवार को कतर के विदेश मामलों के मंत्रालय ने भारतीय राजदूत दीपक मित्तल को तलब किया। मंत्रालय ने भारतीय राजदूत को एक आधिकारिक नोट सौंपा, जिसमें नुपुर शर्मा के बयान पर निराशा और पूर्ण अस्वीकृति के साथ-साथ पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ की गई विवादास्पद टिप्पणी की निंदा की गई है। कतर के विदेश मामलों के मंत्रालय ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा, कतर इस बात पर जोर देता है कि ये अपमानजनक बयान जो धार्मिक घृणा को भड़काते हैं, विश्व स्तर पर मुसलमानों का अपमान करते हैं, और भारत सहित दुनिया के विकास और सभ्यताओं में इस्लाम द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के प्रति अज्ञानता का संकेत देते हैं। मंत्रालय ने कहा, कतर ने सहिष्णुता, सह-अस्तित्व और सभी धर्मों और राष्ट्रीयताओं के सम्मान के मूल्यों के लिए अपने समर्थन का नवीनीकरण किया। ये मूल्य कतर की वैश्विक मित्रता और अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को मजबूत करने में योगदान करने के लिए उसके अथक कार्य की विशेषता है।” एक तरह से भारत को पूरे अरब देशों में शर्मिंदा होना पड़ा है।
मोदी हमारे प्रधानमंत्री हैं और हमारे देश की गरिमा और सम्मान का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन विदेशों के कूड़ेदानों पर उनकी फोटो का चस्पा होना मैं इसे देश का अपमान मानता हूं। ऐसा भारत के इतिहास में पहली बार हुआ है। बतौर नागरिक मेरी बहुत सी शिकायतें भारत के प्रधानमंत्री से हो सकती हैं लेकिन विदेशों में जब उनके सम्मान पर आंच आती है तो व्यक्तिगत तौर पर अच्छा नहीं लगता है। मुझे पता है इस देश की जाहिल, जातिवादी और घटिया सोच वालों को कोई फर्क अभी नहीं पड़ता लेकिन पड़ेगा जब नफरत का यह कैंसर ग्रेड तीन तक पहुंचेगा। नूपुर शर्मा को छह साल के निकाल कर तो ठीक किया लेकिन जाहिलों की जो फौज खड़ी की गई है उसका क्या होगा?