नवरात्र पर विशेष
वैज्ञानिकों का भी मानना है कि सिर्फ एक ही तत्व है ऊर्जा इसी से सृष्टि का निर्माण हुआ है। यही ऊर्जा शक्ति के रूप में हमारे देश में आदिकाल से पूजी जाती रही है। नवरात्र में हम शक्ति की उपासना करते हैं। दुर्गा सप्तशती के अनुसार राजा सुरथ ने दुर्गा जी की उपासना कर अपना राजपाट प्राप्त कर लिया था और समाधि नामक वैश्य ने माया-मोह से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त किया था। नवरात्र में घरों से लेकर मंदिरों तक श्रद्धालु कलाश स्थापन करके माँ की उपासना करते हैं और अर्गला स्त्रोत कवच का पाठ कर दुर्गा सप्तशती में माँ के पराक्रम की कथा के 12 अध्याय पढ़ते हैं। प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ अथवा नियमित रूप से नौ दिन तक पाठ कर हवन किया जाता है। नवरात्र की नवमी को कन्याओं को देवी स्वरूप मानकर भोजन कराया जाता है।
हिंदू धर्म में नवरात्र वर्ष में चार बार होती है लेकिन दो बार मनायी जाती है। पहली चैत्र नवरात्र और दूसरी शारदीय नवरात्र। 10 अक्टूबर से नौ दिनों का शारदीय नवरात्र शुरू हो रहा है। महाअष्टमी 17 अक्टूबर, महानवमी 18 अक्टूबर और विजयादशमी 19 अक्टूबर को है। दो नवरात्र गुप्त होते हैं। इनमें आषाढ़ और माघ महीने के नवरात्र हैं।
नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की उपासना की जाती है। नवरात्र पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और मां दुर्गा के भक्त व्रत रककर मां की उपासना कर कृपा र्पाप्त करते हैं। आमतौर पर सभी घरों में लोग कलश स्थापित करके मां दुर्गा की अराधना करते हंै लेकिन यदि कलश की स्थापना सही तरीके से और सही मुहूर्त में की जाए तभी यह फलदायी होता है।
कलश स्थापना का मुहूर्त
10 अक्टूबर यानि नवरात्र के पहले दिन सुबह छह बजकर 18 मिनट से दस बजकर ११ मिनट के बीच कलश स्थापित करें। माना जा रहा है कि सात बजकर 56 मिनट पर कलश स्थापित करना ज्यादा शुभ होगा। यह कलश स्थापित करने के लिए सबसे उपयुक्त समय है इसलिए ध्यान रखें कि शुभ मुहूर्त के अंदर ही कलश स्थापित करें।
कलश की स्थापना की विधि
घर के उत्तर पूर्व दिशा में किसी स्थान को अच्छी तरह से साफ कर लें और इसी जगह पर कलश स्थापित करें। उत्तर पूर्व पूजन के लिए सर्वोत्तम दिशा मानी जाती है।
कलश स्थापित करने के लिए जब सही मुहूर्त हो तब पहले श्रीगणेश की पूजा करके कलश स्थापित करें। जहां कलश स्थापित करना है वहां एक साफ लाल कपड़ा बिछाएं और नारियल में मौली बांधें एवं कलश पर रोली या चंदन से स्वास्तिक बनाएं। कलश के अंदर गंगा जल भरें और इसमें आम के पत्ते, सुपारी, हल्दी की गांठ, दुर्वा, पैसे, सर्व औषधि, जायफल और लौंग डालें।
यदि कलश के ऊपर ढक्कन रखना चाहते हैं तो ढक्कन में चावल भर दें, यदि कलश खुला है तो उसमें आम के पत्ते डाल दें। इसके बाद कलश के बीच में नारियल रखें और दीप जलाकर पूजा करें।
ज्योतिषियों के अनुसार चौंसठ योगिनियों की पूजा करने से सभी देवियों की पूजा हो जाती है। इन योगिनियों में दशमहाविद्याओं के अलावा, अम्बिका, पार्वती, काली आदि शक्ति की सभी देवियों के स्वरूप समाए हुए हैं। चौंसठ योगिनियां आदिशक्ति मां काली का अवतार हैं। घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने ये अवतार लिए थे। यह भी माना जाता है कि ये सभी माता पार्वती की सखियां हैं। इन चौंसठ देवियों में से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है। ये सभी आद्या शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतारी अंश हैं। कुछ लोग कहते हैं कि समस्त योगिनियों का संबंध मुख्यत: काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं। समस्त योगिनियां अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न हैं तथा इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, स्तंभन इत्यादि कर्म इन्हीं की कृपा द्वारा ही सफल हो पाते हैं।
प्रमुख रूप से आठ योगिनियां हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं:- 1-सुर-सुंदरी योगिनी,2-मनोहरा योगिनी,3- कनकवती योगिनी, 4-कामेश्वरी योगिनी,5- रति सुंदरी योगिनी, 6- पद्मिनी योगिनी,7- नतिनी योगिनी और 8- मधुमती योगिनी।
चौंसठ योगिनियों के नाम-1-बहुरूप, 2-तारा, 3-नर्मदा, 4-यमुना, 5-शांति, 6-वारुणी 7-क्षेमंकरी, 8-ऐन्र्दी, 9-वाराही, 10-रणवीरा,11-वानर-मुखी,12-वैष्णवी,13-कालरात्रि,14-वैद्यरूपा,15-चर्चिका,16-बेतली,17-छिन्नमस्तिका,18-वृषवाहन, 19-ज्वाला कामिनी,20-घटवार,21-कराकाली,22-सरस्वती,23-बिरूपा,24-कौवेरी,25-भलुका,26-नारसिंही,27-बिरजा,28-विकतांना,29-महालक्ष्मी,30-कौमारी,31-महामाया,32-रति,33करकरी,34-सर्पश्या,35-यक्षिणी, 36-विनायकी,37-विंध्यवासिनी,38- वीर कुमारी,39- माहेश्वरी,40-अम्बिका,41-कामिनी,42-घटाबरी,43-स्तुती,44-काली,45-उमा, 46-नारायणी,47-समुर्द,48-ब्रह्मिनी,49-ज्वाला मुखी,50-आग्नेयी,51-अदिति,52-चन्र्दकान्ति,53-वायुवेगा,54-चामुण्डा,55-मूरति,56-गंगा,57-धूमावती,58-गांधार,59-सर्व मंगला,60-अजिता, 61-सूर्यपुत्री 62-वायु वीणा,63-अघोर और 64- भर्दकाली कही जाती हैं। इन 64 योगिनियों के भारत में कई प्रमुख मंदिर है। दो मंदिर उड़ीसा में भुवनेश्वर के निकट हीरापुर तथा बोलनगीर के निकट रानीपुर में स्थित हैं जबकि मध्यप्रदेश में एक मुरैना जिले के थाना रिठौराकलां में ग्राम पंचायत मितावली में है। इसे इकंतेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा एक दूसरा मंदिर खजुराहो में स्थित है। 875-900 ई. के आसपास बना यह मंदिर खजुराहो के मंदिरों के पश्चिमी समूह में आता है। इसके अलावा मध्य प्रदेश में जबलपुर के निकट भेड़ाघाट, ग्वालियर के निकट मितावली में भी योगिनियों के मंदिर स्थित हैं। (हिफी)