निपाह वायरस की दहशत इस वक्त पूरे देश में फैली हुई है। पिछले कुछ दिनों से निपाह नाम की नई उभरती हुई बीमारी ने पूरे स्वास्थ्य तंत्र को सकते में डाल दिया है। कहना गलता नहीं होगा कि निपाह के खतरनाक वायरस की दस्तक से पूरा भारत हलकान हो गया है। फिलहाल यह बीमारी हमारी पूरी चिकित्सा व्यवस्था के लिए इस समय चुनौती बनी हुई है। कहा जाता है कि निपाह वायरय जिस तैजी से फैलता है, उसे रोक पाना बहुत मुश्किल होता है। फिलहाल भारत के लिए यह बीमारी एकदम नई है। इसलिए हमारे स्वास्थ्य महकमे के पास इसे रोकने के लिए मुकम्मल इंतजाम नहीं है। हालांकि कोशिशें हर संभव की जा रही है। हिंदुस्तान में निपाह वायरस ने अपनी पहली दस्तक पिछले सप्ताह केरल के कोझीकोड जिले में दी है, जहां कुछ ही घंटों में कई लोग इसकी चपेट में आ गए। चपेट में आए करीब दर्जन भर लोगों की मौतें भी हो चुकी हैं। करीब इससे ज्यादा मरीज विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं।
इस वायरस के प्रकोप में आए करीब चालीस से ज्यादा बीमार लोग टाॅप चिकित्सकों की निगरानी में हैं। निगरानी इसलिए की जा रही है ताकि उनके संपर्क में आकर दूसरे लोग भी बीमार न हों। चिकित्सकों की मानें तो तेज हवा की गति की भांति यह वायरस फैलता है। जो व्यक्ति ठीक से इस वायरस की चपेट में आ जाता है, वह कुछ ही घंटों के भीतर कोमा में चला जाता है। इस स्थिति के चलते पूरा देश भयभीत हो गया है। केरल के बाद आसपास के कुछ और राज्यों से भी केस सामने आए हैं। पुणे स्थित विरोलॉजी इंस्टीट्यूट ने कुछ मरीजों के खून से तीन नमूनों में निपाह वायरस होने की पुष्टि की है। स्थिति और न बिगड़े इसके लिए केरल सरकार ने इस पर केंद्र सरकार से तत्काल मदद मुहैया कराने की गुहार लगाई है। उनकी गुहार को गंभीरता से लेते हुए केंद्र ने तुरंत एनसीडीसी की टीम को केरल भेज दिया है। टीम वायरस प्रभावित इलाकों का दौरा कर रही है। फिलहाल स्थिति काबू में है। हालात और खराब न हों इसके लिए विदेशी तंत्र का भी सहयोग लिया जा रहा है। केंद्र सरकार ने मलयेशिया सरकार से भी संपर्क किया है। मलयेशिया दो दशक पहले इस बीमारी का भुक्तभोगी है।
लिनी पुतुसेरी को नमन
निपाह वायरस ने दहशत तो पैदा कर दी है लेकिन देश में उसे इलाज के अंदर कैद करने का जज्बा भी साफतौर पर दिख रहा है। केरल में सरकारी अस्पताल में उपचार करते हुए निपाह वायरस से संक्रमित होने के बाद लिनी पुतुसेरी साहसी नर्स ने अपनी जान की बाजी लगा दी। उसका पति राजेश बहरीन में काम करता है उसे अपनी पत्नी की बीमारी के बारे में पता चला तो वह स्वदेश लौटा और सिर्फ दो मिनट के लिए अपनी पत्नी को देख पाया। राजेश ने अपनी पत्नी पर गर्व महसूस किया जो संक्रमण फैलाने वाली इस बीमारी से रंचमात्र भी नहीं घबड़ाई। इसी तरह देश में कितने ही चिकित्सक इस बीमारी का सफल इलाज तलाश करने मे जुट गये है। और उम्मीद की जाती है कि शीघ्र ही बीमारी का इलाज भी तलाश कर लिया जाएगा।
हिंदुस्तान में निपाह बीमारी की पहचान पहली बार की गई है। दरअसल ये जानवरों में पाई जाने वाली बीमारी बताई जा रही है। विशेषकर चमगादड़ और सूअर से फैलने वाली बीमारी है। इन जानवरों से होती हुई ये बीमारी इंसानों में समा जाती है। शुरूआत में इसका पता नहीं चलता लेकिन जब पता चलता है तो बहुत देर हो जाती है। इस बीमारी पर नियंत्रण के लिए फिलहाल अभी हमारे चिकित्सकों के पास कोई कारगर चिकित्सा विधि भी नहीं है जो वह प्रकोपित मरीजों को मुहैया करा सकें। बचाव व रोकथाम ही मात्र एक इलाज है। गंदे जानवरों से दूर रहें और उन्हें पास न आने दें। केंद्र द्वारा भेजी गई नेशनल सेंटर फॉर डीसीज कंट्रोल की टीम केरल में निपाह वायरस प्रभावित इलाकों का जायजा ले रही है। उनकी प्राथमिक रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि बच्चों को पालतू जानवरों से एकदम दूर रखा जाए क्योंकि निपाह वायरस बच्चों को सबसे पहले और आसानी से अपनी गिरफ्त में लेता है। उनकी रिपोर्ट के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से पूरे देश में चेतावनी के तौर संदेश प्रसारित किया है कि गंदे जानवरों के संपर्क से दूर रहे हैं। इसके अलावा अपने बचाव के लिए जरूरी सावधानियां बरतनी चाहिए।
भारत से पहले निपाह बीमारी ने जून 2004 में पड़ोसी राज्य बांग्लादेश में भी खलबली मचाई थी। उस समय जानवरों में नहीं बल्कि वहां खजूर की खेती करने वाले किसानों में यह बीमारी फैली थी। तब भी कई लोग मारे गए थे। बांग्लादेश में करीब दो माह तक आपात स्थिति बनी रही थी। बीमारी से बचने के लिए लोगों ने पलायन शुरू कर दिया है। खुद के बचाव के लिए लोगों ने अपने घरों को छोड़कर जंगलों में डेरा डाल लिया था। सरकार ने सभी पालतू जानवरों को पालने के लिए कुछ माह तक प्रतिबंध भी लगा दिया था। निपाह वायरस को लेकर ऐसी ही स्थिति आज से करीब बीस साल पहले मलयेशिया के कांपुंग सुंगई शहर में भी उत्पन्न हो गई थी। जहां निपाह वायरस ने सैकड़ों लोगों को अपने आगोश में ले लिया था। बीमारी का जबतक पता चला तबतक कई लोग मर चुके थे। उसी दौरान इस बीमारी को निपाह का नाम दिया गया था।
खैर, हमारे देश में निपाह को नेस्तनाबूद करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही है। हर संभव कोशिशें की जा रही हैं। टाॅप चिकित्सक इस बीमारी से लड़ने के लिए कमर कस चुके हैं। दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के सुप्रसिद्व चिकित्सक डाॅक्टर अनिल अरोड़ा की मानें तो भारत में इस तरह के वायरस को पता करने की अतिआधुनिक सुविधाएं हैं लेकिन फिर भी सटीक जानकारी नहीं हो पाती है। उनके मुताबिक निपाह वायरस चमगादड़ से फलों में और फलों से इंसानों और जानवरों पर आक्रमण करता है। उनका मानना है कि वायरस का पता वैसे आसानी से लग जाता है। वायरस प्रभावित इलाकों में जब इंसान को सांस लेने में दिक्कत होने लगे तो तुरंत जांच करवानी चाहिए। इस वायरस से प्रभावित शख्स को सांस लेने की दिक्कत होती है फिर दिमाग में जलन महसूस होती है। वक्त पर इलाज नहीं मिलने पर मौत हो जाती है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी इस संबंध में एक कमेटी गठित की है, जो बीमारी की तह तक जाने में जुटी है। इसके साथ वायरस की जद में ज्यादा लोग न आ सकें इसके लिए उपाय किए जा रहे हैं। यह बहुत ही अच्छी बात कि कोई समस्या आने पर सभी की एकजुटता सामने आए। सामूहिक एकता ही बड़ी समस्या को परास्त करती है। ऐसा ही इस वक्त निपाह के लिए किया जा रहा है। एहतियातन के तौर पर सभी हवाई अड्डों पर अर्लट जारी किया गया है। जितने भी विदेशी मेहमान आएं उनकी स्वास्थ्य जांच की जाए। अगर कोई निपाह वायरय से पीड़ित पाया जाए तो उसे जरूरी चिकित्सा मुहैया कराने के लिए अस्पताल भेजा जाए। (हिफी)