जयंती पर विशेषः
रामानन्द सागर हिन्दी फ़िल्मों के निर्देशक थे। दूरदर्शन पर रामायण लोकप्रिय धारावाहिक के कारण वे बहुत प्रसिद्ध हुए। रामानंद सागर का जन्म लाहौर के नजदीक असल गुरु में 29 दिसम्बर 1927 को धनाढ्य परिवार में हुआ था। उन्हें अपने माता पिता का प्यार नहीं मिला, क्योंकि उन्हें उनकी नानी ने गोद ले लिया था। पहले उनका नाम चंद्रमौली था लेकिन नानी ने उनका नाम बदलकर रामानंद रख दिया। 16 साल की अवस्था में उनकी गद्य कविता श्रीनगर स्थित प्रताप कालेज की मैगजीन में प्रकाशित होने के लिए चुनी गई। युवा रामानन्द सागर ने दहेज लेने का विरोध किया जिसके कारण उन्हें घर से बाहर कर दिया गया।
इसके साथ ही उनका जीवन संघर्ष आरंभ हो गया। उन्होंने पढ़ाई जारी रखने के लिए ट्रक क्लीनर और चपरासी की नौकरी की। वे दिन में काम करते और रात को पढ़ाई। मेधावी होने के कारण उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय [पाकिस्तान] से स्वर्ण पदक मिला और फारसी भाषा में निपुणता के लिए उन्हें मुंशी फज़ल के खिताब से नवाजा गया। इसके बाद रामानन्द सागर पत्रकार बन गए और जल्द ही वह अखबार में समाचार संपादक के पद तक पहुंच गए। इसके साथ ही उनका लेखन कार्य भी चलता रहा।
बंटवारे के समय 1947 में वे भारत आ गए। उस समय उनके पास संपत्ति के रूप में महज पांच आने थे। रामानंद सागर का झुकाव फ़िल्मों की ओर 1940 के दशक से ही था। लेकिन उन्होंने फ़िल्म जगत में उस समय एंट्री ली, जब उन्होंने राज कपूर की सुपरहिट फ़िल्म ‘बरसात’ के लिए स्क्रीनप्ले और कहानी लिखी। 1950 में रामानन्द सागर ने एक प्रोडक्शन कंपनी “सागर आर्ट कॉरपोरेशन” शुरू की थी और ‘मेहमान’ फ़िल्म के द्वारा इस कंपनी की शुरुआत की। बाद में उन्होंने इंसानियत, कोहिनूर, पैगाम, आँखें, ललकार, चरस, आरज़ू, गीत और बग़ावत हिट फ़िल्में बनाईं। 1985 में वह छोटे परदे की दुनिया में उतर गए। फिर 80 के दशक में रामायण टीवी सीरियल के साथ रामानंद सागर का नाम घर-घर में पहुँच गया।रामानन्द सागर ने उस समय इतिहास रचा जब उन्होंने टेलीविज़न धारावाहिक “रामायण” बनाया और जो भारत में सबसे लंबे समय तक चला और बेहद प्रसिद्ध हुआ। जो भगवान राम के जीवन पर आधारित और रावण और उसकी लंका पर विजय प्राप्ति पर बना था।
रामानन्द सागर ने कुछ फ़िल्मों तथा कई टेलीविज़न कार्यक्रमों व धारावाहिकों का निर्देशन और निर्माण किया। इनके द्वारा बनाए गए प्रसिद्ध टीवी धारावाहिकों में रामायण, कृष्णा, विक्रम बेताल, दादा-दादी की कहानियाँ, अलिफ़ लैला और जय गंगा मैया आदि बेहद प्रसिद्ध हैं। धारावाहिकों के अलावा उन्होंने आंखें, ललकार, गीत आरजू आदि अनेक सफल फ़िल्मों का निर्माण भी किया। 50 से अधिक फ़िल्मों के संवाद भी उन्होंने लिखे। कैरियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने पत्रकारिता भी की। पत्रकार, साहित्यकार, फ़िल्म निर्माता, निर्देशक, संवाद लेखक आदि सभी का उनके व्यक्तित्व में अनूठा संगम था। और तो और, रामायण धारावाहिक की प्रत्येक कड़ी में उनके द्वारा रामचरित मानस की घटनाओं, पात्रों की भक्तिपूर्ण, सहज-सरस और मधुर व्याख्या ने उन्हें एक लोकप्रिय प्रवचनकर्ता के रूप में भी स्थापित किया।उन्होंने 22 छोटी कहानियां, तीन वृहत लघु कहानी, दो क्रमिक कहानियां और दो नाटक लिखे। उन्होंने इन्हें अपने तखल्लुस चोपड़ा, बेदी और कश्मीरी के नाम से लिखा लेकिन बाद में वह सागर तखल्लुस के साथ हमेशा के लिए रामानंद सागर बन गए।
2001 में रामानन्द सागर को उनकी इन्हीं सेवाओं के कारण पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें फ़िल्म ‘आँखें’ के निर्देशन के लिए फ़िल्मफेयर पुरस्कार और ‘पैग़ाम’ के लिए लेखक का फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला।
देश में शायद ही कोई ऐसा फ़िल्म निर्माता-निर्देशक हो जिसे न केवल अपने फ़िल्मी कैरियर में भारी सफलता मिली वरन् जिसे करोड़ों दर्शकों, समाज को दिशा देने वाले संतों-महात्माओं का भी अत्यंत स्नेह और आशीर्वाद मिला। डा. रामानन्द सागर ऐसे ही महनीय व्यक्तित्व के धनी थे। सारा जीवन भारतीय सिने जगत की सेवा करने वाले रामानन्द सागर शायद भारतीय फ़िल्मोद्योग के ऐसे पहले टी.वी. धारावाहिक निर्माता व निर्देशक थे, जिनके निधन की खबर सुनते ही देश के कला प्रेमियों, करोड़ों दर्शकों सहित हजारों सन्त-महात्माओं में शोक की लहर दौड़ गई। 12 दिसम्बर 2005 को मुंबई, के अस्पताल में उनका निधन हो गया था। उनकी जनप्रियता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हरिद्वार में आयोजित धर्मसंसद में शोकाकुल संतों, देश के चोटी के धर्माचार्यों ने उनकी स्मृति में मौन रखा था। एजेंसी।