अभी-अभी सम्पन्न हुए तीन लोकसभा और दो विधान सभा क्षेत्रों के उपचुनाव नतीजों ने बिहार और उत्तर प्रदेश के लिए अलग-अलग संदेश दिये हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य अपनी-अपनी लोकसभा सीटों पर भाजपा को विजय नहीं दिलवा पाये। इसका कारण उत्तर प्रदेश की दो प्रमुख विपक्षी पार्टियां सपा और बसपा का त्वरित गठबंधन माना जाता है। हालांकि इसके पीछे कई और भी कारण हैं जिनको राजनीतिक जानकार बता भी रहे हैं और भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व उनकी समीक्षा करने की बात कह रहा है। इन्हीं उपचुनावों के साथ बिहार में एक लोक सभा सीट और दो विधान सभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे। इन उपचुनावों की पृष्ठभूमि उत्तर प्रदेश से ज्यादा महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता लालू प्रसाद यादव ने भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाया था जिसमें उनके धुरविरोधी नीतीश कुमार का जनता दल (यू) भी शामिल था। कांग्रेस व वामपंथी दलों को भी जोड़ा गया और उस महागठबंधन ने विधान सभा चुनाव में प्रचण्ड बहुमत से सरकार बनायी। लालू यादव की पार्टी राजद सबसे ज्यादा विधायक लायी थी। इसके बाद बिहार में नाटकीय घटनाक्रम में नीतीश कुमार ने महागठबंधन को छोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनायी। इधर, लालू यादव चारा घोटाले के आरोपों में जेल भेज दिये गये और उनके बेटे-बेटी पर भी घोटालों के मामलें चल रहे हैं। ऐसे हालात में बिहार की अररिया लोकसभा सीट और जहानाबाद विधान सभा की सीट पर तेजस्वी यादव की राजद ने विजय हासिल की है। इन उपचुनावों में श्री लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने ही पूरी तरह से कमान संभाली थी।
बिहार के इन उपचुनावों के बारे में यह कहा जा सकता है कि राजद ने अपनी दोनों सीटें बचा ली हैं लेकिन यह क्या कोई कम महत्व की बात है? उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री अपनी सीटें नहीं बचा पाये तो बिहार में तेजस्वी ने अररिया और जहानाबाद की सीटें जीत कर निश्चित रूप से यह साबित कर दिया कि वह लालू यादव की विरासत को अच्छी तरह से संभाल सकते हैं। उत्तर प्रदेश में जैसे सपा और बसपा का गठजोड़ हुआ है, उससे कहीं ज्यादा मजबूत गठजोड़ बिहार में भाजपा और जद(यू) का है। इसलिए भाजपा और जद(यू) का मिलकर अररिया में चुनाव हार जाना भविष्य की राजनीति में मायने रखता है। यह बात भाजपा के लिए विशेष रूप से चिंता की है। उत्तर प्रदेश में भाजपा को 2014 में 80 में से 71 सीटें मिली थी। उसके सहयोगी दल (अपना दल) की दो सीटें मिलाकर उसके पास ७३ सांसद यूपी से थे। अब तीन सांसद यहां से कम हो गये हैं। एक सीट भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन से रिक्त हो गयी। भाजपा ने 2014 में 282 सीटों पर जीत हासिल की थी और सरकार बनाने के लिए २७२ सांसदों की ही जरूरत होती है। इस प्रकार भाजपा अपने दमपर सरकार चला रही थी। यह बात अलग है कि अकालीदल, तेदेपा (जो सरकार से हटचुकी है लेकिन राजग के साथ है) और शिवसेना केन्द्रसरकार के साथ है और सरकार को कोई खतरा नहीं है लेकिन भाजपा के पास सिर्फ 274 सांसद ही रह गये है। इससे सहयोगी दलों का दबाव बढ़ सकता हैं। इसलिए बिहार की अररिया लोकसभा सीट भाजपा हर कीमत पर चाहती थी क्योंकि राजस्थान में दो लोकसभा सीटों पर भी भाजपा चुनाव हार चुकी है।
राजद नेता तेजस्वी यादव ने भाजपा के इस मंसूबे को पूरा नहीं होने दिया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उनकी कोई मदद नहीं कर पाये। राजद प्रत्याशी सरफराज आलम ने 61 हजार 788 मतों से भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह को पराजित किया है। यह सीट सरफराज आलम के पिता तसलीमुद्दीन आलम के विधान से खाली हुई थी। तेजस्वी यादव के लिए यह प्रतिष्ठा का सवाल था और उन्होंने यादव-मुस्लिम वोट बैंक को उसी तरह संगठित किया जैसे उनके पिता लालू प्रसाद यादव किया करते थे। 2014 में भाजपा और जद(यू) अलग-अलग चुनाव लड़े थे। इसके बावजूद तसलीमुद्दीन 146504 वोटों के अंतर से जीते थे। यह सही है कि उनके बेटे सरफराज अपनी जीत के उस अंतर को नहीं बना पाये, फिर भी भाजपा और जद (यू) के एक होते इतना अंतर भी राजद की मजबूती का ही संकेत देता है। सरफराज आलम ने पिछला विधान सभा चुनाव जद(यू) के टिकट पर जोकीहाट से जीता था लेकिन बाद में उन्होंने जद(यू) को छोड़कर राजद को ज्वाइन कर लिया। वह इस उपचुनाव से ठीक पहले ही राजद में शामिल हुए। इसी तरह जहानाबाद विधान सभा सीट भी राजद के पास थी। यहां से राजद प्रत्याशी कुमार कृष्ण मोहन ने जद(यू) प्रत्याशी अभिराम शर्मा को पहले से ज्यादा मतों के अंतर से पराजित किया है। इस सीट पर भी तेजस्वी यादव को कड़ा मुकाबला करना था और इसमें उनको मदद की पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने जो हाल ही में राजग को छोड़कर राजद के साथ महागठबंधन में शामिल हो गये हैं।
बिहार में महा गठबंधन टूटने के बाद लालू प्रसाद यादव ने अपने साथियों को एकजुट करने का प्रयास जरूर शुरू किया था लेकिन उनके सामने जिस तरह जटिल परिस्थितियां आती गयीं, उससे लग रहा था कि राजद को अब कोई संभाल नहीं पाएगा क्योंकि श्री लालू यादव की पत्नी और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी में भागदौड़ करने की क्षमता नहीं बची है। उनके पुत्र तेजस्वी यादव, जो नीतीश कुमार की सरकार में उपमुख्यमंत्री भी थे, उनपर भी सम्पत्ति घोटाले के गंभीर आरोप चल रहे हैं। ये उपचुनाव तेजस्वी की राजनीति की परीक्षा साबित हुए हैं। राज्य की तीसरी विधानसभा सीट भाभुआ पर भी उपचुनाव हुआ लेकिन वहां महागठबंधन की साथी कांग्रेस का प्रत्याशी था और भाजपा की पुरानी सीट थी। इसलिए भाजपा की रिंकी रानी पाण्डेय ने कांग्रेस प्रत्याशी शंभू पटेल को 14866 मतों से पराजित करने में सफलता प्राप्त की हैं। बिहार के उपचुनावों में राष्ट्रीय जनता दल की शानदार सफलता पर तेजस्वी यादव ने अपने विरोधियों पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि जो लोग कहते थे कि लालू यादव खत्म हो गये हैं, आज हम उनसे यही कह सकते हैं कि लालू यादव जी एक विचारधारा है और विचार धारा कभी खत्म नहीं होती है। तेजस्वी ने उपचुनावाों में जीत के लिए पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को भी धन्यवाद दिया है और बिहार की जनता को भी। इन उपचुनावों से पहले तेजस्वी यादव ने उस समय सोशल मीडिया पर एक संदेश दिया था जब लालू यादव को चारा घोटाले में जेल भेजा गया था। इस ट्वीट में तेजस्वी ने कहा था कि आपने लालू को नहीं एक विचार धारा को कैद किया है। यही विचार और धारा आपके अहंकार कों चूर-चूर कर देगी।
क्रिकेट के खिलाड़ी तेजस्वी यादव ने इन उपचुनावों के माध्यम से लालू यादव की अनुपस्थिति में पहला टेस्ट मैच खेला है और उन्हें शानदार सफलता भी मिली है। अररिया लोकसभा उपचुनाव ने तेजस्वी को एक बड़े विपक्षी नेता के रूप में खड़ा कर दिया है। विपक्षी दलों के नेताओं को जोडऩे की क्षमता भी उनमें दिखाई पड़ रही है। भाजपा के नेताओं में इससे घबड़ाहट भी स्पष्ट देखी जा सकती हैं। अपने विवादास्पद बयानों के लिए मशहूर भाजपा नेता गिरिराज सिंह ने कहा है कि अररिया क्षेत्र अब आतंकवादियों का गढ़ बन सकता है। बहरहाल, अररिया आतंकवाद का गढ़ बने या न बने लेकिन बिहार में तेजस्वी यादव के रूप में भाजपा और जद(यू) के सामने एक मजबूत चुनौती जरूर खड़ी हो गयी हैं। (हिफी)