#11वींशरीफ की मुबारकबाद
#अब्दुलक़ादिरजीलानी -अल-सय्यद मुहियुद्दी अबू मुहम्मद अब्दल क़ादिर जीलानी अल-हसनी वल-हुसैनी (जन्म: 11 रबी उस-सानी, 470 हिज्री, नाइफ़ गांव, जीलान जिला, इलम प्रान्त, तबरेस्तान, पर्शिया। देहांत – इराक़ 8 रबी अल अव्वल, 561 हिज्री शहर बग़दाद, ईरान से थे।
#सच्चाबालक
हज़रत शेख़ जीलानी के पिता सय्यद वंशावली से थे। हज़रत शेख जीलानी ने अपने प्रारंभिक जीवन को अपने जन्मस्थान शहर जीलान में बिताया। 1095 में, 18 साल की उम्र में, वह बगदाद गए। वहां, उन्होंने अबू सईद मुबारक मखज़ुमी और इब्न अकिल के तहत हनबाली कानून का अध्ययन किया। उन्हें अबू मोहम्मद जाफर अल-सरराज द्वारा हदीस पर सबक दिए गए थे। उनका सूफी आध्यात्मिक प्रशिक्षक अबू-खैर हम्मा इब्न मुस्लिम अल-डब्बा थे।अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद,हज़रत जिलानी ने बगदाद छोड़ दिया। उन्होंने इराक के रेगिस्तानी में पच्चीस वर्ष बिताए।
-#बड़ेपीरसाहब
-बड़े पीर साहब की कहानी कक्षा 4 में पढ़ी थी-कई बरस पहले यह कहानी उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा परिषद से हटा ली गई थी , हज़रत अब्दुल जिलानी बड़े पीर साहब के नाम से दुनिया में जाने जाते हैं। बड़े पीर साहब को उनकी मां ने सच्चाई पर चलने की बचपन से ही सीख दी थी। जब यह 10 वर्ष के थे, उस समय यह काफिले के साथ जा रहे थे। रास्ते में डाकुओं ने सभी को लूट लिया। डाकुओं के सरदार ने छोटा बालक समझकर कहा तेरे पास कितना माल है। अब्दुल कादिर ने कहा मेरे पास चालीस अशर्फियां हैं। डाकू ने पूछा कहां हैं तो बालक ने कहा मेरी सदरी में मेरी मां ने अशर्फियां छिपा दी हैं। बालक ने कहा कि चलते समय मेरी मां ने कहा था बेटा कभी भी झूठ मत बोलना, इसलिए मैंने बता दिया है। बालक की सच्चाई का डाकुओं के सरदार पर बहुत असर हुआ और साथियों सहित उसने उसी समय से बुराई का रास्ता छोड़ दिया। आगे चलकर अब्दुल कादिर दुनिया में बड़े पीर साहब के नाम से मशहूर हुए। इनका मकबरा बगदाद के शहर जीलान में है।