देश के जाने माने फिल्म निर्माता और निर्देशक सुबोध मुखर्जी की उन फिल्मकारों में होती है जिनके नाम पर लोग सिनेमाघरों में आया करते थे। संयुक्त प्रांत अब उत्तर प्रदेश के झांसी में जन्मे सुबोध मुखर्जी के परिवार ने हिंदी सिनेमा को कई नामचीन निर्देशक और कलाकार दिए हैं। उनकी जयंती पर आइए जानते इस महान फिल्मकार के बारे में कुछ रोचक जानकारियां।
सिनेमा के वटवृक्ष
निर्माता निर्देशक सुबोध मुखर्जी के खानदान में कई जाने माने फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता हुए हैं। फिल्म निर्माता शषधर मुखर्जी उनके भाई थे और प्रसिद्ध अभिनेता जॉय मुखर्जी उनके भतीजे। जॉय फिल्मी दुनिया में विशेष संगीत और ग्लैमर के लिए जाने जाते थे। हिंदी सिनेमा के जाने माने चेहरे देब मुखर्जी, रानी मुखर्जी, काजोल और तनीषा मुखर्जी भी इसी खानदान से ताल्लुक रखते है।
टेनिस का शौक लखनऊ लाया
सुबोध मुखर्जी को स्कूल के दिनों से ही खेलों का बहुत शौक रहा। खेलों में रुचि के कारण ही लिए वे झांसी से लखनऊ आ गए। लखनऊ आकर सुबोध ने टेनिस सीखा। सिनेमा में आने के बाद भी वह खेलों से जुड़े रहे।
स्वतंत्रता संग्राम में हुई जेल
फिल्म निर्माता होने के साथ साथ सुबोध एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। इस संग्राम में वर्ष 1942 में उन्हें तीन महीने जेल में भी काटने पड़े। उसके बाद पारिवारिक दबाव से और दैनिक आजीविका की पूर्ति हेतु सुबोध मुंबई आ गए। मुंबई आकर सुबोध अपने भाई शषधर के साथ काम करने लगे जो उस वक्त फिल्मिस्तान स्टुडियो से जुड़े थे।
पहली फिल्म में ही सिक्सर
फिल्मिस्तान स्टूडियो में सहायक निर्देशक के तौर पर काम करने वाले सुबोध को पहली फिल्म निर्देशित करने का मौका मिला फिल्म पेइंग गेस्ट से। लेकिन सुबोध ने यह फिल्म बीच में ही छोड़ दी और इन्होंने 1955 में आई फिल्म मुनीमजी का निर्देशन शुरू कर दिया। शषधर मुखर्जी के प्रोडक्शन में बन रही यह यह फिल्म पेइंग गेस्ट से पहले रिलीज हुई। देव आनंद, निरूपा रॉय और प्राण जैसे सितारों से सजी फिल्म ‘मुनीमजी’ बॉक्स आफिस पर सुपरहिट रही।
सुपरहिट फिल्ममेकर
मुनीमजी और लव मैरिज के बाद सुबोध ने 1961 में शम्मी कपूर और सायरा बानो को लेकर एक फिल्म बनाई जिसका नाम है जंगली। यह फिल्म उस समय की सबसे बड़ी हिट फिल्म रही और इस फिल्म ने शम्मी कपूर को रातोंरात सुपरस्टार बना दिया। इस फिल्म के लिए सायरा बानो को फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर फीमेल का पुरस्कार भी दिया गया। इसके बाद सुबोध ने फिल्म शागिर्द में भी सायरा बानो को मुख्य अभिनेत्री के तौर पर जगह दी।
संगीत के सुरताज
सुबोध मुखर्जी की फिल्मों के गाने बड़े कमाल के होते थे। इनकी फिल्मों के गाने फिल्म रिलीज होते ही लोगो के दिलो पर छा जाते थे। इन गानों में उनकी पहली फिल्म मुनीमजी का गाना ‘जीवन के सफर में राही’ फिल्म पेइंग गेस्ट का गाना ‘माना जनाब ने पुकारा नही’ और फिल्म जंगली का शंकर जयकिशन के संगीत और मोहम्मद रफ़ी के आवाज से सजा गाना ‘चाहे कोई मुझे जंगली कहे’ प्रमुख हैं।
आखिरी फिल्म
लगभग दो दशकों तक हिंदी सिनेमा को नई राह दिखाते हुए सुबोध मुखर्जी ने फिल्म निर्माण और निर्देशन में कई नए आयाम गढ़े। इन दो दशकों में उन्होंने अपनी फिल्म निर्माण की कला से हिंदी सिनेमा को एक नए मुकाम तक पहुचाया। लेकिन 70 के दशक की असफलता से सुबोध दोबारा उबर नही सके और 1985 में फिल्म उल्टा सीधा बनाकर उन्होंने फिल्मी दुनिया से संन्यास ले लिया।
जब रोया हिंदी सिनेमा
हिंदी सिनेमा में लगभग दो दशकों तक राज करने और हिंदी सिनेमा में कई नामचीन अभिनेताओं और अभिनेत्रियों को पहचान दिलाने वाले सुबोध कई सालो तक ब्लड कैंसर से पीड़ित रहे। 84 साल के सुबोध मुखर्जी का निधन 21 मई 2005 को मुंबई के एक अस्पताल में हुआ। Amar Ujala से