चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म 09 जनवरी 1927 को देवों की भूमि संयुक्त प्रान्त ( उत्तर प्रदेश ) अब उत्तराखंड के ‘मरोडा हुआ। प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बी.ए. किए। 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी किए। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया। सुंदरलाल बहुगुणा चिपको आंदोलन के अलावा अपने जीवन में कई अन्य आंदोलनों में भी सक्रिय रहे। उन्होंने पर्यावरण खासकर हिमालय के क्षेत्रों के लिए जीवन के आखिरी पल तक काम किया। सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण का भी विरोध किया था। 84 दिन लंबा अनशन भी रखा था। एक बार उन्होंने विरोध स्वरूप अपना सिर भी मुंडवा लिया था। टिहरी बांध के निर्माण के आखिरी चरण तक उनका विरोध जारी रहा। उनका घर भी टिहरी बांध के जलाशय में डूब गया था।
अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना भी की। 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। आंदोलन का असर पूरे देश में देखने को मिला। सरकार को अपने कदम वापस लेने पड़े। हालात ऐसे ,बने की तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार को वन संरक्षण कानून लाना पड़ा। इस इलाके में पेड़ों की कटाई पर 15 साल के लिए बैन लगा दिया गया। सरकार ने अलग से पर्यावरण मंत्रालय बनाने का फैसला लिया। पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाला यह महापुरुष आज ‘पर्यावरण गाँधी’ बन गया है।
सुन्दरलाल बहुगुणा के ‘चिपको आन्दोलन’ का घोषवाक्य है-क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है। सुन्दरलाल बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर संस्था ने 1980 में इनको पुरस्कृत भी किया। इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।सुन्दरलाल बहुगुणा कोविड निमोनिया से पीड़ित थे। मृत्यु 21 मई 2021 को हुई।