- राजनीतिक गलियारों में पूछा जा रहा है सवाल
सौरभ जैन “अंकित़”
भोपाल (ईएमएस)। एक बार फिर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान नरेन्द्र सिंह तोमर को सौंपने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। दरअसल, तोमर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का वैसा ही साथी माना जाता है, जिस तरह से भाजपा की केंद्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के साथी अमित शाह हैं। बता दें कि इससे पहले के दो विधानसभा चुनावों में तोमर-शिवराज की जोड़ी ने सार्थक परिणाम दिए हैं। दोनों ने प्रदेश की सत्ता में सिर्फ भाजपा की वापसी ही नहीं कराई, बल्कि राज्य में पार्टी की जड़ें भी बहुत गहरी कर दीं। इसीलिए कहा जा रहा है कि केन्द्रीय नेतृत्व में एक बार फिर २०१८-१९ के लिए नरेन्द्र सिंह तोमर को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपने का मन बना लिया है। आखिर नरेन्द्र सिंह तोमर में ऐसा क्या है कि तीसरी बार उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी जा रही है?
जो लोग प्रदेश की राजनीति से परिचित हैं, उन्हें पता है कि नरेंद्र सिंह तोमर में अनके खूबियां हैं? मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को नरेन्द्र सिंह तोमर से कोई गुरेज नहीं है। मुख्यमंत्री को उनकी कार्यशैली और सामंजस्य बनाने की क्षमता से बखूबी परिचित है। नरेन्द्र सिंह तोमर पर उनका पूरा विश्वास है। अकसर कहा जाता है कि प्रदेश सरकार में ऐसे कई मंत्री हैं, जो मुख्यमंत्री की कार्यशैली की आलोचना करते रहते हैं। तोमर इन सभी को अपने साथ जोड़ने की क्षमता रखते हैं। उनकी खास विशेषता यह है कि वह कांग्रेस की कमजोरियों को अच्छी तरह से जानते हैं। उन्हें पता है कि कांग्रेस की कमजोरियों को भाजपा के पक्ष में किस तरह से भुनाना है। आखिर वह ग्वालियर-चंबल संभाग के सिंधिया घराने के गढ़ में पिछले तीन दशक से राजनीति कर रहे हैं और एक कामयाब नेता बनकर उभरे हैं। उन्होंने आम आदमी की राजनीति की है, सत्ता की राजनीति कभी नहीं की। इसलिए भाजपा आलाकमान का भी उन पर गहरा विश्वास है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार में उन्हें अहम जिम्मेदारियां ही हैं, जिन पर वह खरे उतरे हैं। सबसे खास है, नरेंद्र सिंह तोमर की कार्यशैली। तोमर की पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच खासी पैठ के साथ-साथ आम जन के बीच भी उनकी अच्छी खासी लोकप्रियता है। उनकी कार्यशैली को पार्टी हाईकमान से लेकर निचले स्तर तक के कार्यकर्ता सराहते हैं।
विगत दो विधानसभा चुनावों में नरेन्द्र ङ्क्षसह तोमर ने जिस तरह पार्टी के अंदर उठी बगावत को शांत कर निश्चित परिणाम हासिल किए हैं। जब कोई पार्टी किसी प्रदेश की सत्ता में आती है, तो उसके कार्यकर्ताओं की अपेक्षाएं भी बढ़ जाती हैं। सभी की अपेक्षाएं पूरी करना किसी भी सरकार के वश में नहीं होता। इसीलिए पार्टियों में असंतोष बढ़ जाता है। यही असंतोष चुनाव के दौरान भारी पड़ता है। वर्तमान में भी सरकार के मंत्री और संघठन के कई बड़े नेता मुख्यमंत्री और पार्टी के खिलाफ काम कर रहे है। जिसकी भनक पार्टी हाईकमान को भी है। भाजपा के भीतर उठने वाली असंतोष की आवाजों को थामने में नरेंद्र सिंह तोमर को महारत हासिल है, जिसका फायदा भाजपा विधानसभा चुनावों में उठाना चाहती है।
इन्हीं सब बातों के मद्देनजर पार्टी हाईकमान ने तीसरी बार नरेंद्र सिंह तोमर को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपने का निर्णय लिया है। तोमर ने भारतीय जनता युवा मोर्चा के रास्ते से राजनीति में प्रवेश करके केन्द्रीय मंत्री तक का सफर तय किया है। वह उन चंद नेताओं में शुमार हैं, जो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं। प्रदेश के हर कोने में भाजपा कार्यकर्ताओं से उनका सीधा संपर्क रहा है। हर कार्यकर्ता की सीधी पहुंच नरेन्द्र सिंह तोमर तक है। युवा कार्यकर्ता, जिन पर पार्टी को चुनाव जिताने की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी रहती है, वे तोमर को अभिभावक जैसा मानते हैं। तोमर भी उनसे घुलते-मिलते हैं। उनकी यही खूबी उन्हें विशिष्ट बनाती है।
वर्तमान में प्रदेश भाजपा संगठन और सरकार में आंतरिक असंतोष फैला हुआ है। सूत्रों की मानें तो कई वरिष्ठ कार्यकर्ता और मंत्रिमंडल के सदस्य शिवराज सिंह चौहान से नाराज बताए जा रहे हैं। संभावना जताई जा रही है कि चुनाव आते ही बड़े पैमाने पर ये सरकार के खिलाफ काम कर सकते हैं। कुछ नेता तो इतने मुखर हैं कि वे अपनी सरकार के खिलाफ खुलकर भी बोलने लगते हैं। यह असंतोष अगर नहीं रोका गया तो विस चुनाव में पार्टी पर भारी पड़ेगा। इस असंतोष को थामने और भितरघात को रोकने के लिए इस समय नरेन्द्र सिंह तोमर से योग्य कोई व्यक्ति नहीं हैं।