उत्तर प्रदेश में भाजपा के चार प्रमुख स्तम्भ हुआ करते थे। अब इनमें इजाफा हो गया है और उन चार प्रमुख नेताओं को पार्टी में गुटबंदी के लिहाज से याद किया जाता था। आज भाजपा में एकता है और दिल्ली तक 71 सांसद उसके पहुंचे हैं। प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है और चारों प्रमुख नेताओं को अपने परिश्रम का फल भी मिल गया। चार प्रमुख नेताओं में कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, लालजी टण्डन और ओमप्रकाश सिंह हुआ करते थे। इनमें राजनाथ सिंह, लखनऊ से सांसद हैं और केन्द्र सरकार में गृहमंत्री का दायित्व संभाल रहे थे। श्री कल्याण सिंह राज्यपाल हैं अब लालजी टण्डन को भी राज्यपाल बनाकर बिहार भेजा जा रहा है।
श्री टण्डन लखनऊ में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रतिनिधि का दायित्व निभाते थे। उनके बेटे आशुतोष टण्डन उर्फ गोपाल जी प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। बिहार जैसे राज्य में इस समय एक सुलझे हुए राज्यपाल की जरूरत थी और श्री लालजी टण्डन इस पद के सर्वथा अनुकूल हैं। अटल जी की सेवा का यह प्रतिफल है।
नरेन्द्र मोदी की सरकार ने तीन नये राज्यपाल नियुक्त किये हैं। इन राज्यपालों में लालजी टण्डन, वेबी रानी मौर्य और सत्यदेव नारायण आर्य शामिल हैं। इसके साथ ही चार राज्यपालों के स्थानान्तरण भी किये गये हैं। त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत राय ने अभी हाल में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को समय पूर्व श्रद्धांजलि अर्पित कर दी थी। हालांकि बाद में उन्होंने इसके लिए क्षमा याचना की। राज्यपाल तथागत राय की चर्चा हो रही थी और अकेले उनका ट्रांसफर किया जाता तो यही लगता कि तथागत राय को सजा दी जा रही है। इसलिए उनके साथ तीन अन्य राज्यपालों का भी स्थानांतरण किया गया है। राज्यपालों के मामले में सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व उत्तर प्रदेश को ही दिया गया है। तीन नये राज्यपालों में दो उत्तर प्रदेश के हैं। श्री कल्याण सिंह और श्री केशरीनाथ त्रिपाठी पहले से ही राज्यपाल पद को सुशोभित कर रहे हैं। चार राज्यपाल अकेले उत्तर प्रदेश से हैं। राष्ट्रपति भी उत्तर प्रदेश के हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी उत्तर प्रदेश की ही वाराणसी सीट से प्रतिनिधित्व करते हैं। लालजी टण्डन बिहार के राज्यपाल होंगे और बिहार के मौजूदा राज्यपाल सत्यपाल मलिक को जम्मू-कश्मीर भेजा गया है। हालांकि जम्मू कश्मीर में पहली बार कोई राजनेता राज्यपाल बन रहा है क्योंकि वहां के हालात को देखते हुए कड़क प्रशासक ही राज्यपाल बनाया जाता रहा है। श्री जगमोहन के राज्यपाल रहते कश्मीर में आतंकवाद पर नियंत्रण भी लगा था। वहां के राज्यपाल एनएन वोहरा का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस लेकर राष्ट्रपति शासन लगा दिया है।
राज्यपालों की तैनाती और स्थानांतरण में सामयिक परिस्थितियों को भी ध्यान में रखा गया है। बेवी रानी मौर्य को उत्तराखण्ड और सत्यदेव नारायण आर्य को हरियाणा का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। हरियाणा के मौजूदा राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी को त्रिपुरा का राज्यपाल बनाया गया है और त्रिपुरा के मौजूदा राज्यपाल तथागत राय को मेघालय का राज्यपाल बनाया गया है। मेघालय के मौजूदा राज्यपाल गंगा प्रसाद को सिक्किम भेजा गया है। इन तैनातियों और तबादलों में बिहार के राज्यपाल पद पर लालजी टण्डन की तैनाती और जम्मू-कश्मीर में सत्यपाल मलिक को भेजने के पीछे राजनीतिक मंतव्य भी हैं। जम्मू-कश्मीर में भाजपा एक बार फिर से सरकार को बहाल करना चाहती है और सरकार पीडीपी के साथ ही बनेगी लेकिन उसमें पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती नहीं होंगी। इस प्रकार की खबरें भी कुछ दिन पहले ही आयी थीं कि कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के बिना सरकार बन सकती है। इसी तरह बिहार में जद(यू) के साथ भाजपा सरकार में शामिल हैं। लोकसभा सांसदों के लिहाज से रामविलास पासवान की पार्टी लोकजन शक्ति पार्टी (लोजपा) के पास 6 सांसद है और जद यू के पास सिर्फ दो सांसद। इसी तरह उपेन्द्र कुशवाहा भी लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें चाहते हैं।
इन हालातों के चलते ही जम्मू-कश्मीर में सत्यपाल मलिक और बिहार में लालजी टण्डन को राज्यपाल बनाकर भेजा जा रहा है। श्री लालजी टण्डन अब महामहिम हो गये हैं। उनको अब दलगत राजनीति से अलग हटकर भूमिका निभानी है। लखनऊ जैसे नवाबी शहर में 12 अप्रैल 1935 को जन्मे लालजी टण्डन को आंख खोलते ही स्वाधीनता की लड़ाई दिखाई पड़ी। वह 14 साल की किशोरावस्था में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये। समाज सेवा अपने मोहल्ले चौक से शुरू की। वह 1964 और 1969 में चौक वार्ड से दो बार सभासद रहे। इसके बाद 1978 में उनका राजनीतिक करियर विधान परिषद के सदस्य के रूप में शुरू हुआ। दो बार विधान परिषद के सदस्य बने। इसके बाद 1996 से 209 तक विधानसभा के सदस्य रहे। इस दौरान कल्याण सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और बाद में बसपा के साथ भाजपा की जब सरकार बनी, तब भी श्री टण्डन कैबिनेट मंत्री रहे। सुश्री मायावती को उन्होंने राखी बंध बहन बनाया था। कैबिनेट मंत्री के दौरान एक कुशल प्रशासक की छवि भी लाल टण्डन ने बनायी थी और साझे की सरकार में समन्वय कैसे किया जाता है, इसका अनुभव जितना श्री लालजी टण्डन को है, उतना कम ही नेताओं को होगा। भाजपा की राजनीति भी उस समय ऐसी थी कि तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह अपने सामने किसी को समझते ही नहीं थे और प्रदेश संगठन की कमान संभालने वाले राजनाथ सिंह का उनसे तालमेल नहीं बैठ रहा था। यह समस्या उस समय और गंभीर हो गयी जब अटल जी के प्रयास से सुश्री मायावती को मुख्यमंत्री बनाया गया। श्री राजनाथ सिंह नहीं चाहते थे कि भाजपा सुश्री मायावती को मुख्यमंत्री बनने में मदद करे। लालजी टण्डन ही ऐसे नेता थे जो सेतु का काम करते रहे।
लालजी टंडन ने ली राज्यपाल पद की शपथ
पटना। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालजी टंडन ने बिहार के39 वें राज्यपाल के रूप में शपथ ली। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदगी में यहां राजभवन में पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मुकेश आर शाह ने उन्हें पद की शपथ दिलाई। इस मौके पर उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी समेत अन्य लोग भी मौजूद रहे। टंडन ने सत्य पाल मलिक का स्थान लिया जिन्होंने आज दिन में जम्मू कश्मीर के राज्यपाल के पद की शपथ ली है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी टंडन ने 2009 में लखनऊ लोकसभा सीट जीती। इसी साल पूर्व प्रधानमंत्री ने खराब सेहत के कारण सक्रिय राजनीति से संन्यास की घोषणा की थी। (हिफी)
अब उसी सेतु की जरूरत बिहार में है, जहां अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं। भाजपा को राजग के सभी घटक दलों का इसतरह उपयोग करना है कि ज्यादा से ज्यादा सांसद मिल सकें। राज्यपाल की भूमिका प्रत्यक्ष रूप से राजनीति से परे रहती है और महामहिम लालजी टण्डन भी इस मर्यादा का पालन करेंगे लेकिन भाजपा का हित संरक्षण करना भी उनके दायित्व में शामिल रहेगा। वह नीतीश कुमार की सरकार के राज्यपाल बनाए गये हैं जिसके उपमुख्यमंत्री भाजपा के सुशील मोदी हैं। इसलिए बिहार के राज्यपाल के रूप में लालजी टण्डन की तैनाती सभी दृष्टि से उचितमानी जा रही है। (हिफी)