स्वप्निल संसार।कारोबार की दुनिया की एक बहुत पुरानी कहावत है की तालाब की बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है इस नज़र से देखा जाय तो भारत की इ कामर्स कम्पनी फ्लिप्कार्ट का अमरेकी कम्पनी वालमार्ट के हाथों बिक जाना कोई अनहोनी बात नहीं है लेकिन यह सवाल ज़रूर उठता है की जब फ्लिप्कार्ट खुद एक बड़ी कम्पनी थी जो भले ही वालमार्ट के लिए खतरा न रही हो लेकिन उसे टक्कर ज़रूर दे रही थी तो उसके बिकने क्या कारण है ?एक बात और सूद तय हो जाने के बाद वालमार्ट का यह कहना की वह फ्लिप्कार्ट को बतौर अलग ब्रांड बरक़रार रखेगी और इसका स्वतंत्र ऑपरेटिंग ढांचा भी बना रहेगा अर्थात फ्लिप्कार्ट न तो घाटे में चल रही थी न ही उसके काम के ढंग में कोई खराबी थी और न ही उसका ब्रांड मार्केट में बदनाम था तो फिर ऐसी कम्पनी को अपने 77 % शेयर क्यों बेचने पड़े । फ्लिप्कार्ट के दोनों नवजवान मालिकों ने जिन्होंने इस कम्पनी एक दो कमरों के फ्लैट में शुरू कर के इसे दुनिया की नम्बर एक कम्पनियों के मुकाबले खड़ा कर दिया था फिर उन्होंने क्यों सोने का अंडा देने वाली इस मुर्गी के अंडे एक ही बार में निकाल लेने का “मूर्खता पूर्ण “ काम क्यों किया ऐसे एंटरप्राईजिंग नवजवानों से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती फिर फ्लिप्कार्ट क्यों बिकी इस पर गौर किया जाना चाहिए एक बात और आश्चर्यचकित करने वाली है होना तो यह चाहिए था की जिस सौदे को वालमार्ट अपनी बहुत बड़ी सफलता कह रहा उस सौदे के बाद उसके शेयर में जबर्दस्त उछाल होना चाहिए था लेकिन हुआ उसके उलट वालमार्ट के सौदे के बाद उस में गिरावट आना ज़ाहिर करता है की मामला कुछ और है यह कुछ और क्या है यह अभी साफ़ नहीं लेकिन समय गुजरने के साथ अगर चौंका देने वाले तथ्य सामने आयें तो चौंकिएगा नहीं । हो सकता है वालमार्ट इस सौदे को अपनी सफलता इस लिए कह रहा है की उसने अपनी प्रतिद्वंद्वी अमेज़न के हाथों यह सौदा नहीं होने दिया क्योंकि भारत की खुदरा मार्केट पर कब्जा करने के लिए इन दोनों कंपनियों में गला काट प्रतिद्वंदता चल रही थी ।
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फिलहाल तो इस प्रतिद्वन्दता का फायदा भारतीय ग्राहकों को मिल रहा है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे और भारत के रिटेल सेक्टर पर इसका क्या प्रभाव पडेगा इसका कोई जायजा अभी नहीं लिया गया है एक दर जो बिलकुल स्वाभाविक और जो कई देशों ने झेला भी है वह यह है की ब्योपार की यह बड़ी मछली सभी छोटी मछलियों खा जाने के बाद कहीं मार्किट पर अपना एकछत्र राज्य न कायम कर ले और उसके बाद अपनी मनमानी करे क्योंकि इतने बड़े बड़े घाटे कोई कम्पनी जन सेवा के लिए तो उठा नहीं रही है उनकी नजर में यह तो पूंजी नवेश (इन्वेस्टमेंट) है जिसका फायदा उन्हें आगे चल कर मिलेगा पाठकों को याद होगा की जब डॉ मनमोहन सिंह की सरकार ने खुदरा बाज़ार में विदेशी पूँजी लाने की बात कही थी तो बीजेपी के नेताओं ने इसका जबर्दस्त विरोध किया था हालांकि मनमोहन सरकार ने केवल 51 % ही विदेशी निवेश का नियम बनया था जबकि मोदी सरकार ने 100 % का नियम बनाया है वालमार्ट का यह सौदा इसी सिलसिले की कड़ी है मनमोहन सरकार ने यही भी शर्त रखी थी की ऐसे स्टोर अपनी सप्लाई का 30 % सामान भारत में ही खरीदेंगे जिसका सीधा फायदा भारतीय किसानो दस्तकारों और छोटी इकाइयों को होता इसके अलावा कोल्ड स्टोरेज की चेन खोलने की भजी शर्त रखी गयी थी ताकि किसानो की पैदावार सुरक्षित रहे अब वालमार्ट बिना ऐसी किसी शर्त का पाबन्द हुए भारतीय बाज़ार में घुस आया है स्वदेशी जागरण मंच जैसी संघ की एक इकाई इसका विरोध कर रही है लेकिन यह विरोध केवल खाना पूर्ती जैसा है आपको याद होगा की जब इस इशू पर सदन में बहस हो रही थी तो तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष और अब भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने यूरोपी यूनियन का एक घोषणा पात्र पढ़ कर सुनाया था की वालमार्ट अपने स्टाफ को सब से कम तनख्वाह देता है किसानो को सबसे कम मूल्य देता है और अपने क्षेत्र के खुदरा ब्योपरियो की दुकाने बंद करा देता है जब मनमोहन सरकार ने अपना यह फैसला वापस लिया था तो सुषमा जी ने बापू की समाधि पर झूमर डांस किया था वही सुषमा जी पिछले दरवाज़े से वालमार्ट के दाखिले पर बिलकुल खामोश हैं आपको यह भी याद होगा की जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने कहा था की वह वालमार्ट के शो रूमों में आग लगा देंगी देखना है अब वह म्किटने ऐसे शो रूम फून्केंगी ? राज्य सभा में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष और अब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था की सरकार तीस प्रतिशत माल की खरीदारी की जो शर्त लगा रही है उस से भारत का बना माल एक कोने में पडा रहेगा और भारतीय बाजारों में चीन व अन्य देशों से लाया गया माल डंप कर दिया जायगा जिससे भारत के खुदरा ब्योपारी बर्बाद हो जायेगे ।
वालमार्ट को इस तरह बिना शर्तों और भारतीय कानूनों का पाबन्द किये आने देना भारत के रिटेल सेक्टर के लिए एक अभिशाप साबित होगा जो कृषि के बाद आज भी रोज़गार देने वाला दूसरा सबसे बड़ा सेक्टर है मोदी सरकार धीरे धीरे रोज़गार के सभी दरवाज़े बंद करती जा सरकारी नौकरियां नहीं के बराबर हैं छोटी बड़ी सभी मैन्युफैक्चरिंग इकाइयां बंदी के कगार पर हैं बैंकों की हालत खस्ता है रेल अपना रोना रो रही है अर्थात कृषि की हालत किसी से छिपी नहीं है किसान खुदकशी कर रहे हैं ऐसे में वालमार्ट जैसी कम्पनियों का भारतीय मार्किट में प्रवेश एक बड़े खतरे की घंटी है यह सही है की इस कम्पनी कुछ डिलीवरी बॉयज सेल्समेन और फ्लोर मेनेजर की जगह निकलेगी का लेकिन इनकी सेवा शर्त इतनी कठिन होती है की यहाँ जॉब करने वाले लड़के लडकिय अक्सर अवसाद का शिकार हो जाते हैं इस बात की जांच पड़ताल तो होनी ही चाहिए की वालमार्ट को इस प्रकार भारतीय मार्किट में घुसने का मौक़ा कैसे मिला और सरकार इस सौदे पर खामोश तमाशाई क्यों बनी है।
वरिष्ठ पत्रकार ओबैद नासिर जी की फेसबुक वॉल से ।
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