जयंती पर विशेष।
स्वप्निल संसार। हुल्लड़ मुरादाबादी हिंदी हास्य कवि थे। इतनी ऊंची मत छोड़ो, क्या करेगी चांदनी, यह अंदर की बात है, तथाकथित भगवानों के नाम जैसी हास्य कविताओं से भरपूर पुस्तकें लिखने वाले हुल्लड़ मुरादाबादी को कलाश्री, अट्टहास सम्मान, हास्य रत्न सम्मान, काका हाथरसी पुरस्कार पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सुशील कुमार चड्ढा उर्फ़ हुल्लड़ मुरादाबादी का जन्म 29 मई 1942 को गुजरावाला, (अब पाकिस्तान) में हुआ था। बंटवारे के दौरान परिवार के साथ मुरादाबाद,आ गए थे।
मुरादाबाद में बुध बाजार से स्टेशन रोड पर सबरवाल बिल्डिंग के पीछे दाहिनी ओर स्थित एक आवास में किराए पर उनका परिवार रहने लगा। बाद में पंचशील कालोनी (सेंट मैरी स्कूल के निकट, सिविल लाइंस) में उन्होंने अपना आवास बना लिया था।
कई साल पहले इस मकान को उन्होंने बेच दिया था और बम्बई (अब मुंबई) में जाकर बस गए थे। परिवार में पत्नी कृष्णा चड्ढा के साथ ही युवा हास्य कवियों में शुमार पुत्र नवनीत हुल्लड़, पुत्री सोनिया एवं मनीषा हैं। मुरादाबाद के केजीके कालेज में शिक्षा ग्रहण करते हुए बीएससी की और हिंदी से एमए की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के दौरान ही वह कालेज में सहपाठी कवियों के साथ कविता पाठ करने लगे थे।
शुरुआत में उन्होंने वीर रस की कविताएं लिखी लेकिन कुछ समय बाद ही हास्य रचनाओं की ओर उनका रुझान हो गया और हुल्लड़ की हास्य रचनाओं से कवि मंच गुलजार होने लगे। १९६२ में उन्होंने ‘सब्र’ उप नाम से हिंदी काव्य मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। बाद में वह हुल्लड़ मुरादाबादी के नाम से देश में पहचाने गए]
फिल्म संतोष एवं बंधनबाहों में भी उन्होंने अभिनय किया था। हिंदी के फिल्मों के भारत कुमार कहे जाने वाले मनोज कुमार के साथ उनके मधुर संबंध रहे हैं।
हुल्लड़ मुरादाबादी ने अपनी रचनाओं में हर छोटी सी बात को अपनी रचनाओं का आधार बनाया। कविताओं के अलावा उनके दोहे सुनकर श्रोता हंसते हंसते लोटपोट होने लगते। हुल्लड़ के कुछ ऐसे ही दोहों पर नजर डालिए- कर्जा देता मित्र को वो मूरख कहलाय महामूर्ख वो यार है
जो पैसे लौटाय पुलिस पर व्यंग्य करते हुए लिखा है- बिना जुर्म के पिटेगा समझाया था तोय पंगा लेकर पुलिस से साबित बचा न कोय
उनका एक दोहा- पूर्ण सफलता के लिए, दो चीजें रख याद, मंत्री की चमचागिरी, पुलिस का आशीर्वाद।’ राजनीति पर उनकी कविता- ‘जिंदगी में मिल गया कुरसियों का प्यार है, अब तो पांच साल तक बहार ही बहार है, कब्र में है पांव पर, फिर भी पहलवान हूं, अभी तो मैं जवान हूं…।’
उन्होंने कविताओं और शेरो शायरी को पैरोडियों में ऐसा पिरोया कि बड़ों से लेकर बच्चे तक उनकी कविताओं में डूबकर मस्ती में झूमते रहते। एचएमवी एवं टीसीरीज से कैसेट्स से ‘हुल्लड़ इन हांगकांग’ सहित रचनाओं का एलबम भी हैं। उन्होंने बैंकाक, नेपाल, हांगकांग, तथा अमेरिका के 18 नगरों में यात्राये भी की।
प्रकाशित पुस्तकें
इतनी ऊंची मत छोड़ो क्या करेगी चांदनी यह अंदर की बात है त्रिवेणी तथाकथित भगवानों के नाम हुल्लड़ का हुल्लड़ हज्जाम की हजामत
बेस्ट ऑफ़ हुल्लड़ मुरादाबादी अच्छा है पर कभी कभी।
सम्मान
कलाश्री अवार्ड ठिठोली अवार्ड टीओवाईपी अवार्ड महाकवि निराला सम्मान अट्टहास शिखर सम्मान काका हाथरसी पुरस्कार
हास्य रत्न अवार्ड
72 साल के हुल्लड़ लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे। वो छह साल से डायबिटीज और थायराइड संबंधी दिक्कतों से पीड़ित थे। 12 जुलाई 2014 को मुंबई स्थित आवास में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था ।
फोटो सोशल मिडिया से ।