संजोग वॉल्टर। स्वप्निल संसार। लखनऊ। 130 साल पुरानी इमारत जो अभी 130 साल और जिन्दा रह सकती थी कमीशन के बगैर की बनी थी। ज़मींदोज़ कर दी गयी। इस ऐतहासिक इमारत को बचाया जा सकता था ।
फाइल फोटो
हुआ तो तब कुछ नहीं था जब 100 साल पुरानी हज़रतगंज कोतवाली ज़मींदोज़ हो गयी,ना जाने कितने ऐसे संस्मारक हैं,जहाँ कब्जे हैं,अगर एक इमारत और गिर जाती है तो क्या फर्क पडेगा इस शहर की ज़िन्दगी पर। इमारत होती है तोड़ने के लिए,तारे वाली कोठी,कर्नल दिलकुश की कोठी,सिविल सर्जन आफिस,ज़नरल की कोठी,अब इन सब का ज़िर्क किताबों में ही रह गया है,ना जाने कितने कब्रिस्तान,शमशान लील लिए गये,तालाब घोल कर पी गये,नालों और सड़कों पर मकान,दुकान सीना तान कर खड़े हैं “हिम्मत है तो छु कर दिखाओ, वैसे भी बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर की यह छोटी सी बानगी है। गरीब गुरबों को सस्ता इलाज़ वो भी 5 रूपये में इसी शहर में मिलता था,क्योंकी सरकार की तरफ से सब कुछ यहाँ कॉलरा हॉस्पिटल में मुफ्त मिलता था,डेथ टोल ना के बराबर। सूबे का स्वास्थ्य विभाग न भी ख़ुश हुआ कॉलरा हॉस्पिटल से फुरसत मिली। पत्रकार शहर के बाशिन्दों की सेहत को लेकर कलम रंगते थे। आंत्रशोध -हैजा -की खबरें अक्सर अखबारों की सुर्खियां होती थी।
2003 के आसपास कॉलरा हॉस्पिटल सीएमओ लखनऊ से लेकर मेडिकल कॉलेज को सौंप दिया गया। ना आन्दोलन ना चर्चा,ना रिट हुई,कॉलरा हॉस्पिटल धीरे -धीरे वीरान होता गया । मेडीकल कॉलेज प्रशासन ने इसे चलाने की कोशिश की पर वो कामयाब नहीं रहा।
संयुक्त प्रान्त से लेकर अभिवाजित उत्तर प्रदेश में दो ही संक्रामक रोग चिकित्सालय थे। एक लखनऊ में तो दूसरा हरिद्वार में। बॅटवारे के बाद उत्तर प्रदेश में एक ही संक्रामक रोग चिकित्सालय रह गया था पर उसको भी नहीं बचाया जा सका। कॉलरा हॉस्पिटल सिर्फ एक नाम भर नहीं है ना जाने कितने लोगों की पनाह गाह रहा,मरीज़ भी खुश तीमारदार भी खुश।
कभी यह पुलिस होस्पीटल था और तब नबी उल्लाह रोड का नाम बुलंद बाग़ रोड हुआ करता था। बाद में यह घोड़ा अस्पताल हुआ, और इसकी देख रेख लखनऊ म्युनसपिल (अब नगर निगम) करता था। 1970 के करीब कॉलरा अस्पताल की देखरेख स्वास्थ्य विभाग को दे दी गयी। लखनऊ के बाशिंदे कुत्ते वाला अस्पताल,हैजा अस्पताल, कालरा अस्पताल जैसे नामों से इस अस्पताल को पुकारते थे। अस्पताल ने कॉलरा होस्पीटल” को ” राजकीय संक्रामक रोग चिकित्सालय” का नाम दिया था।
1991 में उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के समय पुराने लखनऊ में बारात में लोग फ़ूड पायजानिग का शिकार हो गये,माहौल था चुनाव का सब दल जुट गये “समाज सेवा” में मरीज़ अस्पताल आने लगे थे पर यहाँ तो ताला पड़ा था,करीब 200 लोग बीमार,आनन् फानन में सब कुछ बदल गया। ” राजकीय संक्रामक रोग चिकित्सालय” की किस्मत भी जाग गयी थी। 2003 में संक्रामक रोग चिकित्सालय मेडिकल कॉलेज में ट्रांसफर कर दिया गया।
उजाड़ संक्रामक रोग चिकित्सालय में मेडिकल कालेज के सरदार पटेल हॉस्टल के सर्वेंट कवार्टर में रहने वालों को यहाँ एक बहुमंज़िला इमारत बनाकर आशियाना दे दिया गया। धीरे -धीरे संक्रामक रोग चिकित्सालय” प्रांगण में बने सभी कवार्टर तोड़ दिए और अब मुख्य इमारत को तोड़ने का काम जारी है।
ऐसे में कई सवाल सामने है
लखनऊ #नगरनिगम को क्या अपनी इस सम्पति की सुध नहीं है ? भारतीय #पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित छेत्र में हो रहे निर्माण पर भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग लखनऊ मौन क्यों हैं ? क्या भारतीय #पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग लखनऊ ने संरक्षित छेत्र में निर्माण की इज़ाजत दे दी है ? मेडीकल विश्वविधालय के कर्ताधर्तों ने इस ऐतहासिक इमारत में लगे प्रतीक चिन्हों को सुरक्षित किया है ? रिट और आरटीआई वाले मौन क्यों ?
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