मकर संक्राति का पर्व इकलौता ऐसा पर्व है जो कि लगभग पूरे देश के विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग नामों से अत्यन्त ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे खिचड़ी कहा जाता है, जबकि पंजाब और हरियाणा में इस पर्व को लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। प्रमुख रूप से उड़ीसा में भगवान जगन्नाथ की पूजा-अर्चना के साथ ही इसे ‘मकर चौला के रूप में मनाए जाने की परम्परा रही है। सिख इसे माघी के रूप में मनाते हैं और अपने दसवें गुरू गोविन्द सिंह को बादशाह की सेना के हांथों में पडऩे से बचाते हुए अपना बलिदान दे देने वाले 40 बीर और पराक्रमी सिखों की स्मृति में गुरूद्वारों में जाकर विशेष प्रार्थना सभाओं के माध्यम से पाठ का आयोजन करते हैं। इसके अलावा हमारे तमिल लोग इस दिन अपने थाई माह के प्रारम्भ के अवसर पर इसे बहुत ही उल्लास पूर्ण वातावरण के बीच पोंगल के रूप में मनाते आए हैं। महाराष्ट्र में इसे तिल गुल के रूप में मनाए जाने की प्रथा रही है। बिहार के लोगों में इस पर्व 14 जनवरी को सकरात के रूप में मनाया जाता है, जबकि असम के लोग इसे बिहू के नाम से मनाया जाता है। पौष संक्राति पर्व के रूप में इस दिन को प० बंगाल में तो अपने ईष्ट देवता की पूजा के दिन के रूप में गोवा के लोग भी इस पर्व को पूरी श्रद्धा और विश्वास के मनाते आए हैं। देश के प्रमुख स्थानों में शामिल हरिद्वार, बनारस और इलाहाबाद में स्थित पवित्र नदियों के पवित्र और पापनाशक जल में स्नान करने के लिए जुटने वाली लाखों की भीड़ इस बात की प्रतीक है कि इस दिन विशेष पर धर्मपरायण लोगों की आस्थाएं किस स्तर पर जा पहुंचती है।
14 जनवरी को प्रात: 3 बजे से ही हरिद्वार, बनारस और इलाहाबाद में स्थित पवित्र नदियों के घाटों पर पहुंचकर स्नान और तदुपरांत पूजा-अर्चना के साथ ही दान कर्म से इस दिन का प्रारम्भ किया जाता है। इसके साथ ही इस दिन विशेष पर लगभग पूरे देश में तिल से बनी चीजें बहुतायत में खाने और खिलाने का चलन है। इस दिन सारे देश के विभिन्न अंचलों में लोग अलग-अलग रूपों में तिल, गुड़, उड़द की दाल और चावल से बने हुए सामानों का खूब प्रयोग करते हैं। जबकि हरिद्वार सहित उत्तरांचल के हमारे भाई इस दिन पर मकर संक्राति का पर्व मनाने के दौरान तिल, गुड़ और घी एवं आटे के बने हुए विशेष पकवानों से पक्षियों की क्षुधा शांत करने के बाद ही स्वयं इनका सेवन करते हैं। इस दिन विशेष पर सूर्य देव के दक्षिणायन से उत्तरायण में आने के स्वागत के रूप में सूर्य देव की विशेष पूजा अर्चना का प्राविधान है। मकर संक्राति का पर्व पूरे देश में विभिन्न प्रकार की विविधिताओं से ओत-प्रोत अलग-अलग तौर तरीकों से मनाया जाता है। परन्तु अलग-अलग तौर तरीकों से मनाये जाने वाले इस मकर संक्राति के पर्व के स्वरूप में एक अजब सी सामानता भी देखने को मिलती है और वो है इस पर्व के लिए तैयार किए जाने वाले सभी पकवानों में तिल, गुड़ और घी एवं आटे के अलावा उड़द की दाल और चावल के रूप में प्रयोग की जाने वाली सामग्री लगभग एक सी ही होती है। भले ही पूरे देश के विभिन्न प्रांतो में अलग-अलग नामों से अत्यन्त ही हर्षोल्लास के साथ मनाये जाने वाले इस पर्व के तौर तरीके अलग-अलग हों और इस दिन विशेष पर तैयार किए जाने वाले व्यंजनों में अंतर और विविधिता देखने को मिलती हो। यह हमारे देश की धार्मिक और समरसता पूर्ण वातावरण की जीती-जागती मिसाल है कि अनेक विविधिताओं के बावजूद भी मकर संक्राति के पर्व की मूल भावना, आस्था और श्रद्धा में कहीं भी किसी भी प्रकार का अंतर देखने को नहीं मिलता है। वैसे अगर वास्तविकता को मद्दे नजर रखा जाय तो मकर संक्राति के पर्व पर उड़द की दाल और चावल के रूप में बनाई वाली खिचड़ी और दान में घी, गुड़, तिल, नमक और दक्षिणा के साथ ही दान में दी जाने वाली खिचड़ी को अगर निकाल दिया जाय तो फिर इस पर्व की रंगत कुछ उसी प्रकार से फीकी सी नजर आने लगती है, जैसे कि अगर मकर संक्राति के पर्व पर पतंग को नीले आसमान में उड़ाने वंचित रह जाया जाय। क्योंकि मकर संक्राति पर पतंगों को भी उड़ाने की परम्परा लम्बे समय से चलती चली आ रही है। खिचड़ी का एक स्वरूप लोहिड़ी के रूप में ये भी है शाम हो जाने के बाद एक बहुत बड़ी सी आग के चारों ओर परिवार, रिश्ते नातेदारों और ईष्ट मित्रों के साथ गोल घेरे में बैठ कर ढ़ोलक और भांगड़े की थाप पर नाचते-गाते हुए अत्यन्त ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाय तो फिर एक अलग ही समां सा बंध जाता है। और इस पावन पर्व पर तिल और गुड़ के प्रयोग से बनने वाली तमाम चीजों के प्रयोग के द्वारा ना सिर्फ हम मकर संक्राति के पर्व में मिठास घोल सकते हैं। बल्कि तिल को बहुतायत में प्रयोग करके अपने शरीर को भी काफी हद तक जाड़े में गर्मी प्रदान कर सकते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि मकर संक्राति का पर्व इकलौता ऐसा पर्व है जो कि लगभग पूरे देश के विभिन्न प्रांतो में अलग-अलग नामों से अत्यन्त ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। और इस दिन सारे देश के विभिन्न अंचलों में लोग अलग-अलग रूपों में तिल, गुड़, उड़द की दाल और चावल से बने हुए सामानों का खूब प्रयोग करते हैं। तथा लोग मकर संक्राति पर सूर्य देव के दक्षिणायन से उत्तरायण में आने का परम्परागत तौर-तरीकों से स्वागत और सूर्य देव की विशेष पूजा अर्चना का प्राविधान करने में अपने जीवन को धन्य बना पाने सफलता प्राप्त कर पाते हैं। (हिफी)