जेनी लिंड जिन्हें स्वीडिश नाइटिंगेल के नाम से जाना जाता है, 19वीं सदी की एक प्रसिद्ध स्वीडिश ओपेरा गायिका थीं। उनका जन्म 6 अक्टूबर, 1820 को स्टॉकहोम, स्वीडन में हुआ था और उनकी मृत्यु 2 नवंबर, 1887 को हुई। उनकी मधुर आवाज और मंच पर आकर्षक व्यक्तित्व ने उन्हें अपने समय की सबसे लोकप्रिय और सम्मानित गायिकाओं में से एक बना दिया।
जेनी लिंड का जन्म जोहाना मारिया लिंड के रूप में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनकी मां, अन्ना मैरी फेलबोर्ग, शिक्षिका थीं, और उनके पिता, निकलास जोनास लिंड, एक लेखाकार थे। जेनी लिंड ने कम उम्र में ही अपनी गायन प्रतिभा दिखानी शुरू कर दी थी। नौ साल की उम्र में, उन्हें स्टॉकहोम के रॉयल ड्रामेटिक थिएटर में एक शिक्षक ने सुना, और उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें संगीत और अभिनय की औपचारिक शिक्षा दी गई।
1838 में, 18 साल की उम्र में, जेनी ने कार्ल मारिया वॉन वेबर के ओपेरा डेर फ्रीशुट्ज में अपनी पहली बड़ी भूमिका निभाई। उनकी आवाज और अभिनय ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
1840 के दशक में, जेनी ने यूरोप के प्रमुख शहरों जैसे पेरिस, बर्लिन, और लंदन में प्रदर्शन किया। उनकी आवाज की शुद्धता और भावनात्मक गहराई ने उन्हें व्यापक प्रसिद्धि दिलाई।
1850 में, अमेरिकी प्रचारक पी. टी. बार्नम ने जेनी को अमेरिका में प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया। बार्नम ने उनके दौरे को भव्य तरीके से प्रचारित किया, जिससे जेनी की लोकप्रियता और भी बढ़ गई। उनके संगीत समारोहों में भारी भीड़ उमड़ती थी, और उनकी कमाई उस समय के लिए अभूतपूर्व थी।
जेनी की गायन शैली में मधुर स्वर, तकनीकी निपुणता, और भावनात्मक अभिव्यक्ति का अनूठा मिश्रण था। वह विशेष रूप से बेल कैंटो शैली में माहिर थीं।
1852 में, जेनी लिंड ने जर्मन पियानोवादक और संगीतकार ओटो गोल्डश्मिट से शादी की। शादी के बाद, उन्होंने अपने प्रदर्शन को कुछ हद तक सीमित कर दिया और परिवार पर ध्यान केंद्रित किया। उनके तीन बच्चे थे।
जेनी लिंड अपनी उदारता के लिए भी जानी जाती थीं। उन्होंने अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा दान में दिया, खासकर स्वीडन में शिक्षा और कला के लिए।
1850 के दशक के मध्य में, जेनी लिंड ने ओपेरा प्रदर्शन से संन्यास ले लिया और कॉन्सर्ट गायन पर ध्यान केंद्रित किया। बाद में, वह अपने पति के साथ इंग्लैंड चली गईं और वहां संगीत शिक्षा में योगदान दिया। उन्होंने लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ म्यूजिक में गायन की प्रोफेसर के रूप में भी काम किया।विरासतजेनी लिंड को उनके समय की सबसे प्रभावशाली गायिकाओं में से एक माना जाता है। उनकी आवाज और व्यक्तित्व ने न केवल ओपेरा की दुनिया को प्रभावित किया, बल्कि उन्होंने महिलाओं के लिए सार्वजनिक जीवन में एक नया मानदंड स्थापित किया। उनके नाम पर कई स्कूल, अस्पताल, और स्मारक स्थापित किए गए हैं। उनकी कहानी आज भी प्रेरणादायक बनी हुई है।
जेनी लिंड के सम्मान में कई जहाजों, रेलगाड़ियों, और यहां तक कि एक द्वीप का नाम रखा गया।
उनके अमेरिकी दौरे को लिंडमेनिया कहा गया, जो उनकी अपार लोकप्रियता को दर्शाता है।
वह अपनी सादगी और विनम्रता के लिए भी जानी जाती थीं, जो उस समय के विपरीत थी जब कलाकार अक्सर आडंबरपूर्ण जीवन जीते थे।
जेनी लिंड की वैश्विक प्रसिद्धि के कारण उनके नाम पर दुनिया भर में कई जगहें, वस्तुएं और संरचनाएं नामित की गईं। भारत में उनकी लोकप्रियता मुख्य रूप से 19वीं शताब्दी में रेलवे के प्रारंभिक विकास से जुड़ी हुई है, जब ब्रिटिश उपनिवेश काल में उनके नाम पर एक प्रसिद्ध लोकोमोटिव डिज़ाइन का उपयोग किया गया।
भारत का पहला रेलवे लोकोमोटिव, जो 1851 में रोकी रेलवे (सोलानी नहर निर्माण के लिए) पर चला। यह ई.बी. विल्सन एंड कंपनी (लीड्स, इंग्लैंड) द्वारा निर्मित जेनी लिंड प्रकार का 2-2-2 स्टीम इंजन था। इसका नाम जेनी लिंड के सम्मान में रखा गया था। यह लोकोमोटिव कुछ महीनों बाद बॉयलर विस्फोट में नष्ट हो गया, लेकिन इसने भारत में रेलवे युग की शुरुआत की।
रुड़की (उत्तराखंड) – मूल रेल पथ अभी भी मौजूद हैं।
जेनी लिंड लोकोमोटिव की रेप्लिका
मूल लोकोमोटिव की प्रतिकृति, जो रुड़की रेलवे स्टेशन के सामने प्रदर्शित है। इसे हर शुक्रवार और रविवार को चलाया जाता है, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
जेनी लिंड डिज़ाइन के आधार पर भारत में कई लोकोमोटिव बनाए गए या आयात किए गए, जो 1850-60 के दशक में ईस्ट इंडियन रेलवे और अन्य लाइनों पर उपयोग हुए। कुल 10 से अधिक ऐसे इंजन भारत आए। विभिन्न रेल मार्ग, जैसे कोलकाता से दिल्ली तक।
जेनी लिंड के नाम पर नामित यह लोकोमोटिव डिज़ाइन इतना सफल था कि भारत सहित ब्रिटिश साम्राज्य में व्यापक रूप से अपनाया गया। 22 दिसंबर 1851 को रुड़की से पिरान कलियर (16 किमी) तक पहली ट्रेन इसी से चली, जो भारत की पहली रेल यात्रा मानी जाती है (मुंबई-थाणे से 16 महीने पहले)।