जयंती पर विशेष।
#चेतनआनंद-हिंदी फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक थे। बॉलीवुड फ़िल्मों को इस स्तर पर पहली बार पहचान दिलाने का श्रेय चेतन आनंद को जाता है। चेतन आनंद सदाबहार अभिनेता देव आनंद के बड़े भाई थे। 3 जनवरी, 1915 को पंजाब के गुरदासपुर में जन्मे चेतन आनंद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। चेतन आनंद ने लाहौर से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद राजनीति में कदम रखा और वह 1930 के दशक में कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने दून स्कूल में शिक्षक के रूप में भी कार्य किया, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। प्रिया राजवंश चेतन आनंद की सहयात्री थीं। दोनों ज़िंदगी भर साथ-साथ रहे। शादी नहीं की और उसकी ज़रूरत भी नहीं समझी।
इतिहास के शिक्षक रहे चेतन ने 1940 के दशक के शुरू में सम्राट अशोक पर एक फ़िल्म की पटकथा लिखी थी। उनका फ़िल्मी सफर 1944 में आई फणी मजूमदार की फ़िल्म ‘राजकुमार’ से शुरू हुआ। उस फ़िल्म में वह मुख्य भूमिका में थे। चेतन ने अभिनय छोड़कर निर्देशन के क्षेत्र में किस्मत आजमाई और जल्द ही उन्होंने इतिहास रच दिया।
1946 में बतौर निर्देशक उनकी पहली फ़िल्म ‘नीचा नगर’ ने कान फ़िल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार हासिल किया। अपने जमाने के सुपरस्टार देवानंद और निर्माता-निर्देशक विजय आनंद के बड़े भाई चेतन की बतौर निर्देशक पहली फ़िल्म ‘नीचा नगर’ ने 1946 में पहले कान फ़िल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का अवार्ड जीता था। वह फ़िल्म अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाली पहली फ़िल्म थी। ख़्वाजा अहमद अब्बास द्वारा लिखित और उमा आनंद, कामिनी कौशल तथा रफ़ीक अहमद के अभिनय से सजी यह फ़िल्म समाज के अमीर और ग़रीब वर्ग के बीच की खाई में झांकती और मानवीय संवेदनाओं को टटोलती है। फ़िल्म समीक्षक ज्योति वेंकटेश ने बताया कि बेहतरीन निर्देशन कौशल की वजह से ‘नीचा नगर’ का शुमार भारतीय सिनेमा की बेहतरीन फ़िल्मों में किया जाता है। उन्होंने कहा कि इस फ़िल्म ने भारतीय सिनेमा में सामाजिक यथार्थवाद के चित्रण की परम्परा शुरू की और समानांतर सिनेमा की फ़िल्मों के अन्य निर्देशकों के लिए सृजन का एक नया रास्ता खोला।
1949 में उन्होंने अपने भाई देव आनन्द के साथ नवकेतन फ़िल्मस् की स्थापना की थी। इस बैनर ने बॉलीवुड को अफसर, टैक्सी ड्राइवर और आंधियां जैसी फ़िल्में दीं। बाद में, चेतन ने हिमालय फ़िल्म्स नाम से अपनी अलग कम्पनी शुरू की। इस बैनर ने हिन्दी सिनेमा को हक़ीक़त, हीर रांझा, हंसते जख्म और हिन्दुस्तान की कसम जैसी अच्छी फ़िल्में दीं। इसके अलावा कालाबाज़ार, किनारे-किनारे, आखिरी खत, कुदरत हाथों की लकीरें फ़िल्मों में चेतन ने विभिन्न भूमिकाओं को अंजाम दिया। उन्होंने वर्ष 1988 में ‘परमवीर चक्र’ नाम से एक धारावाहिक भी बनाया था।हिन्दी फ़िल्म जगत् को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की शुरुआत करने वाले इस कलाकार ने 6 जुलाई 1997 को 82 वर्ष की उम्र में इस दुनिया से विदा ले ली। एजेंसी