हमारे देश में कानून ऐसा है कि आम आदमी को न्याय मिलना कठिन काम है। न्यायपालिकायें अपना कार्य कर रही है किन्तु न्यायपालिकाओं के फैसलों में विलम्ब से आम आदमी को न्याय नहीं मिल पा रहा है। लोगों की यह धारणा बन गयी है कि अमीर व पैसे वालों के लिए ही है यह कानून। गरीब व कमजोर तबके का व्यक्ति वकीलों की भारी भरकम फीस नहीं चुका पाता। मुकदमा लड़ते-लड़ते उसकी कमर टूट जाती है। दबंग व माफिया किस्म के लोगों के लिए कानून उनकी मुट्ठी में होता है। भूमाफियाओं ने गरीब किसानों की जमीनों को दबंगई के बल पर औने-पौने दामों में खरीद लिया या उन पर जबरन कब्जा कर लिया। अब गरीब किसान अपनी जमीन छुड़ाने के लिए अदालत जाता है तो उसे धमकी मिलती है। उसे अदालत से इंसाफ मिलने की उम्मीद नहीं होती है। इसलिए वह अदालत जाना फिजूल समझता है। गरीब व अल्पशिक्षित लोगों को यह पता नहीं होता कि उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए विधिक सहायता प्राधिकरण जिला स्तर पर बने हैं। जो मुफ्त कानूनी मदद प्रदान करते है, जहां आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति को अपना केस लड़ने के लिए कोई पैसा खर्ज नहीं करना पड़ता। कोर्ट फीस, कागजों, दस्तावेजों का खच्र, वकील की फीस के लिए उन्हें कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ता। लेकिन अफसोस है कि ग्राम व नगर स्तर पर पात्रों का चयन कर उन्हें मुफ्त कानूनी मदद नहीं मिल पा रही है। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के पैरालीगल बालंटियर मुफ्त विधिक सहायता के लिए जरूरतमंदों को चिन्हित कर उन्हें मुफ्त विधिक परामर्श दिलाने का प्रयास करते है। अफसोस है कि वालंटियर्स के सक्रिय न रहने से सक्षम व्यक्तियों का चयन नहीं हो पाता है। हमें सक्रिय कुशल पैरालीगल वालंटियर्स की जरूरत है जो जरूरतमंदों को निःशुल्क विधिक सेवा हेतु प्रेरित कर सकें। न्यायविदों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है। आज जेलों में बंद तमाम ऐसे कैदी हैं जो विधिक परामर्श न मिलने से जेलों में सड़ रहे है। उन्हें अपने न्यायिक अधिकारों का पता नहीं है। न्यायिक फैसले विलम्ब से होने से कैदियों की संख्या जेलों में बढ़ती रहती है। अदालतों में वाद लंबित होने से कैदियों की संख्या बढ़ती रहती है। अदालतों में वाद लंबित है और फैसले नहीं हो पा रहे है। अदालतों में जजों की संख्या कम है लेकिन कैदियों की भरमार है। वादों का शीघ्र निपटारा करने के लिए जजों की संख्या बढ़ानी होगी। न्यायपालिका को सक्षम व विश्वसनीय बनाने के लिए निष्पक्ष, ईमानदार और कर्मठ जजों की आवश्यकता है। आंकड़ों के अनुसार एक जज को एक वर्ष में 2500 से अधिक केसों का निपटारा करना पड़ता है। जाहिर है कि जजों पर काम का भारी बोझ है।एक कहावत है कि ‘जस्टिस डिलेड, जस्टिस डिनाइड अगर न्याय विलम्ब से मिलता है तो यह अन्याय है। कई बार ऐसा होता है कि किसी अपराध के लिए जितनी सजा होती है कैदी उससे अधिक सजा काट लेता है। यह लंबित न्याय है किसी कैदी को पता नहीं होता है कि उसके साथ न्याय नहीं हो रहा है। यदि केसों के निपटारे में विलम्ब होता है तो यह हमारी न्यायिक व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा दाग है।समस्त नागरिकों को न्याय मिले, इसके लिए जरूरी है कि न्यायिक व्यवस्था को सुगम व सर्वसुलभ बनाया जाय। इसके लिए आवश्यक है कि निरर्थक केसों को समाप्त किया जाय। इस कारण जरूरी मुकदमों पर सुनवाई नहीं हो पा रही है।आंकड़ों के अनुसार अदालतों में भूमि व सम्पत्ति के मुकदमें 66 प्रतिशत है। ऐसे मुकदमों का निस्तारण अदालतों के बाहर समझौतो से हो सकता है। भूमि व सम्पत्ति के मुकदमे सालों साल चलते हैं। विशेष शिविरों में ऐसे केसों का निपटारा किया जा सकता है। अदालतों की लंबी प्रक्रिया में कोई उलझना नहीं चाहता। कई वकील केसों को लंबा खीचते हैं। वकीलों को अपनी जिम्मेदारी भी समझनी होगी। वकीलों पर भी केसों का बोझ बढ़ता है। यह उनके लिए बेहतर होगा कि वे काम के बोझ को साथी वकीलों को स्थानातंरित कर दें। इससे वे अपने वकालत के पेशे के साथ इंसाफ कर सकेंगे।नागरिकों को कानून के प्रति आस्था व विश्वास बनाये रखने के लिए लोकतंत्र के इस महत्वपूर्ण स्तम्भ को सुदृढ़ व व्यवस्थित होना जरूरी है। हमारी अदालतें तमाम समस्याओं से जूझ रही हैं जिनका निस्तारण किया जाना चाहिए। आम केसों के निस्तारण की रफ्तार धीमी है। मुकदमों की तारीखें किसी न किसी वजह से टलती रहती है जिसके कारण वादियों व प्रतिवादियों को परेशानी होती है। न्यायपालिकाओं में आवश्यक सुधार इस कारण नहीं हो पाया है कि न्यायपालिका के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा पाता है। न्यायपालिका को सूचना अधिकार की सीमा के बाहर रखा गया है। ऐसे में कोई इस बारे में टिप्पणी या सुधार की बात कहना भी चाहे तो कैसे करे? इस व्यवस्था में बदलाव जरूरी है। (हिफी)