जयंती पर विशेष ।
स्वप्निल संसार। यशपाल का जन्म 3 दिसम्बर 1903 में फिरोजपुर छावनी के एक खत्री परिवार में हुआ था । हिन्दी साहित्य के प्रेमचंदोत्तर युगीन कथाकार हैं। वे विद्यार्थी जीवन से ही क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा 1970 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उनकी माँ श्रीमती प्रेमदेवी वहाँ अनाथालय के एक स्कूल में अध्यापिका थीं। यशपाल के पिता हीरालाल एक साधारण कारोबारी व्यक्ति थे।यशपाल के विकास में ग़रीबी के प्रति तीखी घृणा आर्य समाज और स्वाधीनता आंदोलन के प्रति उपजे आकर्षण के मूल में उनकी माँ और इस परिवेश की एक निर्णायक भूमिका रही है। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं; उपन्यास: दिव्या, देशद्रोही, झूठा सच, दादा कामरेड, अमिता, मनुष्य के रूप, मेरी तेरी उसकी बात: कहानी संग्रह: पिंजड़े की उड़ान, फूलो का कुर्ता, भस्मावृत चिंगारी, धर्मयुद्ध, सच बोलने की भूल, उत्तनी की मां, चित्र का शीर्षक, तुमने क्यों कहा था मै सुंदर हूं, ज्ञान दान, वो दुनिया; व्यंग्य संग्रह: चक्कर क्लब, कुत्ते की पूंछ।
जेल गये और वहां बरेली जेल में प्रकाशवती से विवाह किया. वे एक सफल कहानीकार, निबंधकार, नाटककार रहे हैं. यशपाल मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित रहे हैं. अतः उनकी रचनाओं पर मार्क्सवाद का प्रभाव हैं. वे एक यथार्थवादी रचनाकार रहे हैं. वे सामाजिक रूढ़ियो, पुरातनपंथी विचारों के घोर विरोधी रहे हैं, वे प्रगतिशील विचारक थे, अतः उनका व्यक्तित्व झलकता हैं.वे निर्भीक वक्ता, स्पष्टवादी और राष्ट्रवादी लेखक थे. अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन करते हुए अनेक बार जेल गये. क्रांतिकारी दल से जुड़े रहने के कारण उनमें थोड़ी उग्रता देखी गई. यशपाल भारतीयता के साथ साथ पाश्चात्य विचारधारा से भी प्रभावित रहे हैं।
पश्चिम के खुलेपन से और व्यक्ति स्वातंत्र्य से भी उनका लगाव रहा हैं. उन्होंने धर्म की रुढिवादिता, अन्धविश्वास, सामाजिक कुरीतियों का सतत विरोध किया हैं, पर समाज के नीचे दर्जे के लोग व मध्यमवर्गीय लोगों के प्रति उनकी पूर्ण सहानुभूति रही है, इसीलिए उनका समग्र लेखन आम इंसान से जुड़ा हुआ हैं।
यशपाल क समर्थ लेखक रहे हैं. 1940 से 1976 तक उनके 16 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं. 17 वाँ संग्रह मृत्युप्रान्त प्रकाश में आया. जिनमें कुल 206 कहानियाँ संग्रहित हैं. आपने तीन एकांकी, 10 निबंध संग्रह, 3 संस्मरण पुस्तकें तथा 8 बड़े व 3 लघु उपन्यास लिखे, जो प्रकाशित हो चुके हैं. सिंहावलोकन नाम से आपने अपनी आत्मकथा लिखी. आपने विप्लव पत्रिका का सम्पादन भी किया। 26 दिसंबर 1976 को इनकी मृत्यु हो गई।