पुण्य तिथि पर विशेष- स्वप्निल संसार। इन्द्र कुमार गुजराल भारत के बारहवें प्रधानमंत्री थे। यह उस समय प्रधानमंत्री बने जब कांग्रेस की समर्थन वापसी के भय से संयुक्त मोर्चा सरकार ने नेतृत्व परिवर्तन की उसकी मांग स्वीकार कर ली। तब एच. डी. देवगौड़ा को 10 माह के पश्चात् प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ा। उन्होंने 21 अप्रैल, 1997 को अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और इसी दिन इन्द्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त हो गए। लेकिन यह भी ज़्यादा समय तक प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित नहीं कर सके। 19 मार्च, 1998 को कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के बाद उन्हें भी पद छोड़ना पड़ा। इस प्रकार इन्द्र कुमार गुजराल लगभग एक वर्ष तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।
इन्द्र कुमार गुजराल का जन्म 4 दिसम्बर, 1919 को झेलम में हुआ था, जो उस समय पंजाब प्रान्त का अविभाजित हिस्सा था। इनके पिता का नाम अवतार नारायण गुजराल तथा माता का नाम श्रीमती पुष्पा गुजराल था। इन्द्र कुमार गुजराल का विवाह 26 मई, 1946 को शीला देवी के साथ सम्पन्न हुआ। इनके पिता अवतार नारायण गुजराल ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लिया था। श्री इन्द्र कुमार गुजराल स्वयं 12 वर्ष की उम्र में ही स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लगे थे। 1931 में इन्हें ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। युवा बच्चों को शासन के विरुद्ध भड़काने के आरोप में पुलिस ने उन्हें बुरी तरह से पीटा। यह सब झेलम में ही हुआ था। फिर 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय 23 वर्ष की उम्र में इन्हें जेल भी जाना पड़ा। गुजराल ने बी. कॉम., एम. ए., पी. एच. डी. एवं डी. लिट्. की उपाधियाँ प्राप्त की हैं। वह धारा प्रवाह उर्दू बोलते हैं और उर्दू काव्य में भी उनका योगदान रहा। इनके भाई सतीश गुजराल विख्यात पेंटर और शिल्पकार हैं। इनकी पत्नी शीला देवी कवयित्री एवं लेखिका हैं। इनके दो पुत्र नरेश एवं विशाल हैं। इनकी दो पौत्रियाँ दीक्षा और दिव्या तथा एक पौत्र अनिध्य गुजराल हैं।
प्रधानमंत्री पद पर पहुँचने से पूर्व श्री गुजराल को केन्द्र में राज्यमंत्री के तौर पर विभिन्न मंत्रालयों को सम्भालने का मौक़ा भी प्राप्त हुआ। इन्होंने संचार एवं संसदीय कार्य मंत्रालय, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, सड़क एवं भवन मंत्रालय तथा योजना एवं विदेश मंत्रालय के कार्य भी सम्भाले थे। बाद में इन्होंने राजनयिक रूप में इंदिरा गांधी को अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। इन्द्र कुमार गुजराल कांग्रेस पार्टी के साथ लम्बे समय तक जुड़े रहे। इन्हें इनकी योग्यता के अनुरूप कांग्रेस में सम्मान भी प्राप्त हुआ। लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी के जीवित रहते ही इन्हें कांग्रेस पार्टी की उपेक्षा का शिकार भी होना पड़ा। लेकिन जब 1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या हुई और राजीव गांधी प्रधानमंत्री तो स्थितियाँ इनके प्रतिकूल हो गईं। राजीव गांधी का झुकाव युवाओं की ओर ज़्यादा था। जब श्री गुजराल को लगा कि कांग्रेस पार्टी में उनके लिए कोई स्थान नहीं रह गया है तो उन्होंने कांग्रेस पार्टी का त्याग करके जनता दल में स्थान ग्रहण कर लिया।
समाजवादी विचारधारा से पोषित जनता दल में आने के बाद इन्द्र कुमार गुजराल का प्रबल भाग्योदय हुआ। इन्होंने एच डी देवगौड़ा के मंत्रिमंडल में विदेश मंत्रालय का कार्यभार देखा। जब काँग्रेस इं ने स्पष्ट कर दिया कि वह देवगौड़ा के प्रधानमंत्री रहते हुए संयुक्त मोर्चे को समर्थन जारी नहीं रखेगी, तो इन्द्र कुमार गुजराल के नाम पर सहमति बनी और वह प्रधानमंत्री बन गए। देवगौड़ा के व्यक्तित्व में क़रिश्माई तेवर नहीं थे और न ही उनके पास पर्याप्त अनुभव था। लेकिन इन्द्र कुमार गुजराल के पास प्रशासनिक कार्यों के अलावा शासन का पूर्व अनुभव भी था। वह विचार सम्प्रेषण कला में भी माहिर थे। इसके अलावा राजनीति में इनका पहला घर कांग्रेस ही था, जहाँ इन्होंने स्वयं को साबित भी किया था। क्लांत आभा वाले देवगौड़ा की तुलना में गुजराल का व्यक्तित्व निश्चय ही आकर्षक कहा जाना चाहिए।
राजनीतिक समीक्षकों की राय थी कि इन्द्र कुमार गुजराल योग्य, सक्षम और अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी भी इनके साथ राजनयिक चर्चाएँ करती थीं। यह मास्को में भारत के राजदूत भी रह चुके हैं। कांग्रेस में इनकी छवि योग्य और ईमानदार व्यक्ति की थी। लेकिन राजनीतिज्ञों ने इनके प्रधानमंत्री बनते ही यह कहना आरम्भ कर दिया कि गुजराल भी ज़्यादा समय तक प्रधानमंत्री के पद पर नहीं रहेंगे, क्योंकि कांग्रेस लम्बे समय तक फ़ील्डिंग नहीं करना चाहेगी। इन्द्र कुमार गुजराल 21 अप्रैल, 1997 से 19 मार्च, 1998 तक भारत के प्रधानमंत्री पद पर रहे, क्योंकि कांग्रेस ने एन. डी. ए. से अपना समर्थन वापस ले लिया था। लेकिन गुजराल प्रधानमंत्री के रूप में अधिक सक्रिय रहे। इनके प्रधानमंत्री काल की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ लम्बे समय से सम्बन्धों में तनाव था। गुजराल विदेश नीति के विशेषज्ञ थे, इस कारण इन्होंने पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारने के कूटनीतिक प्रयास किए। गुजराल के कार्यकाल में वित्तीय संकट था। आर्थिक विकास दर गिरावट की ओर अग्रसर थी। इन्होंने आर्थिक विकास के लिए सकारात्मक योजनाएँ बनाईं। लेकिन देश में पड़े अकाल ने अर्थव्यवस्था का गणित अधिक बिगाड़ दिया। फिर यह ज़्यादा समय तक प्रधानमंत्री नहीं रहे। लेकिन इनके प्रयास असरदार होने के अतिरिक्त ईमानदाराना भी थे। केन्द्रीय सरकार के अस्थिर होने के कारण नौकरशाही का भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुँच गया था। अधिकारीगण निरकुंश हो गए थे और सरकारी कामकाज़ बुरी तरह प्रभावित हो रहा था। गुजराल ने प्रशासनिक रूप से नौकरशाही पर अंकुश लगाने का कार्य किया।
पूर्व प्रधानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल का 92 साल की उम्र में 30 नवम्बर 2012 को निधन हो गया। गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में भर्ती रहे गुजराल की फेफड़े में संक्रमण की वजह से मौत हुई।भारत कोष से