जयन्ती पर विशेष। –मैडम तुसाद के म्यूजियम में मोम की मूर्तियां बनती है और रखी जाती हैं उनका पूरा नाम मैडम मेरी गोज़ोल्स तुसाद था। इनका जन्म 1 दिसंबर 1761 को स्ट्रासबर्ग में हुआ था। मैडम तुसाद के पिता सिपाही थे जो उनके जन्म के दो महीने पहले ही सेवन डेज वार में मारे गए। मैडम तुषाद को उनकी मां ने पाला। पिता की मौत के बाद उनकी मां ने डॉक्टर फिलिप कर्टियस के घर काम करना शुरू किया।
डॉ. कार्टियस को मोम की मूर्तियां बनाने में महारत हासिल थी। ये वो समय था जब हॉस्पिटलों में प्रैक्टिस के लिए मोम की मूर्तियों का प्रयोग किया जाता था। उस समय मोम की मूर्तियों की काफी मांग थी ये बिल्कुल इंसान की तरह ही दिखती थी जैसी अभी मैडम तुसाद म्यूजियम में रखी होती हैं। इन सभी के अलावा मोम की मूर्तियों की मांग स्थानीय चर्च तथा ऊंचें तबके के लोगों में भी, जो अपने शारीरिक विकार को मोम के अंगों से ढका करते थे।
डॉ. कार्टियस का ये काम अच्छा ही चल रहा था कि उनके दोस्त ने सलाह दी कि वे अमीर लोगों के लिए उनकी मोम की मूर्ति बनाए। इसके बाद उन्होंने अमीर लोगों की मोम की मूर्तियां बनानी शुरू की। उन्होंने अपनी मूर्तियों को सलोन डे सायर के नाम से प्रदर्शित किया, जिसे लोगों ने हाथों-हाथ खरीद लिया।
मेरी गोजोल्स की मां उस समय डॉ. कार्टियस के घर में ही काम करती थी और मेरी का भी उनके घर आना जाना था। डॉ. कार्टियस पर जब काम का लोड ज़्यादा हुआ तो उन्होंने यह विधा मेरी गोजोल्स को सिखाने का निश्चय किया ताकि वो उनके काम में थोड़ा हाथ बटा सके। मेरी को भी मोम निर्माण में काफी रूचि थी उसने भी बचपन से उन्हें देखा था तो धीरे-धीरे मेरी गोजोल्स में भी ये हुनर आ गया। इस तरह डॉ. कार्टियस को एक बेहतर उत्तराधिकारी मिल गया जो उनके जाने के बाद उनकी कला को, उनकी विधा को और भी नई ऊंचाईयों पर ले जाने वाला था।
मेरी ने अपनी लाइफ का सबसे पहला पोट्रेट फ्रेंकोइस मेरे अरोट अमीर व्यक्ति का बनाया था। इसके अलावा उन्हें बेंजमिन फ्रेंकलिन का भी पोट्रेट बनाया था। डॉ. कार्टियस की लोकप्रियता के कारण मेरी को फ्रांस के राजमहल में लुई सोलहवे की बहन की निजी शिक्षक के रूप में नौकरी मिली। मेरी को राजघराने की बेटी को मूर्तिकला में पारंगत करना था। राजघराने से निकटता के कारण मेरी को फ्रांस क्रांति के दौरान गिरफ्तार कर लिया था लेकिन मोम मूर्तिकला की जानकारी ने उनके प्राणों की रक्षा कर ली थी। 1794 में डॉ. कार्टियस का निधन हो गया, उन्होंने जाने से पहले अपना सारा काम तथा अपना संग्रह मेरी के नाम कर दिया था।
1795 में मेरी ने एक इंजीनियर फ्रेंकोइस तुसाद से शादी की थी और इस तरह मेरी गोजोल्स मैडम मेरी तुसाद बन गई। मैडम तुसाद की शादी लगभग आठ साल चली, उनके दो पुत्र हुए। बाद में मेरी की महत्वकांक्षा और सफलता की चाह ने उसे अपने पति से अलग किया। मेरी अपने एक पुत्र के साथ फ्रांस छोड़कर ब्रिटेन आ गई।
ब्रिटेन में शुरूआती दिनों में मेरी विभिन्न शहरों के चक्कर लगाती रही और अपने कार्यों की प्रदर्शनी लगाती रही। 1835 में लंदन की बेकर स्ट्रीट में मैडम तुसाद ने पहली बार अपना स्थाई स्टूडियो खोला। इस स्टूडियो अथावा संग्रहालय का मुख्य आर्कषण था, चेंबर ऑफ होरर जिसमें फ्रेंव क्रांति के दौरान मारे गए लोगों की मूर्तियों के अलावा अन्य कई नामी-गिरामी अपराधियों की कृतियां प्रदर्शित की जाती थी।
1884 में मैडम तुसाद संग्रहालय का स्थान परिवर्तन हुआ और वह मेरिलबोन रोड़ पर खोला गया, जहां वह आज भी है। मैडम तुसाद ने 1842 में अपना खुद का पोट्रेट बनाया जो आज लंदन के मैडम तुसाद संग्रहालय के मुख्य द्वार पर आगंतुकों का स्वागत करता हे। मैडम तुसाद का निधन 16 अप्रैल 1850 में हुआ था। अपनी 88 साल की आयु में मैडम तुसाद ने कई चुनौतियों का डटकर सामना किया था। उन्होंने अपने जीवन में वो स्थान हासिल किया जो बहुत कम लोग कर पाते हैं।
विश्व प्रसिद्ध इस म्यूजियम में धीरे-धीरे भारतीयों ने भी अपनी मौजूदगी दिखानी शुरू कर दी। सबसे पहले इस म्यूजियम में जगह बनाई राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसके बाद इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सचिन तेंदुलकर ने। मैडम तुसाद संग्रहालय में बॉलीवुड की हस्तियां भी पीछे नहीं रही। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, रजनीकांत, ऐश्वर्या राय, शाहरुख खान, ऋतिक रोशन, करीना कपूर और अब सलमान खान इस म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहे हैं। लंदन के बाद अब न्यूयॉर्क के मैडम तुसाद म्यूजियम में कैटरीना कैफ ने अपनी जगह बना ली है। मोम के पुतलों के लिए मशहूर मैडम तुसाद म्यूजियम राजधानी दिल्ली में भी खुल गया है।मैडम तुसाद में जाने के लिए आपको प्रति व्यक्ति टिकट खरीदना होगा, जिसमें एडल्ट के लिए 960 रुपए देने होंगे, वहीं बच्चों के लिए करीब 700 रुपए खर्च करने होंगे।एजेन्सी।