अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस पूरे विश्व में प्रतिवर्ष 23 जून को मनाया जाता है।4 करोड़ विधवाएं भारत में और 15000 विधवाएं वृंदावन की सड़कों पर अकेले रहती हैं। यह दिवस विधवा महिलाओं की समस्याओं की प्रति जागरुकता फ़ैलाने के लिए मनाया जाता है। यह दिवस विधवाओं की स्थिति पर प्रकाश डालता है, जिससे पता चलता है कि उन्हें समाज में किस प्रकार की उपेक्षा एवं दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ज्यादातर नागरिक समाज संगठन भी समाज के इस उपेक्षित वर्ग की अनदेखी करते हैं। दुनिया भर में विधवाओं को समुदायों और समाजों में और ज़्यादा अहमियतन और मान-सम्मान दिए जाने की ज़रूरत है।
कुछ समुदायों और समाजों में उन महिलाओं को बिल्कुल नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है जिनके पतियों की मौत हो जाती है।बहुत से समाजों में विधवाओं को सामान्य जीवन जीने की इजाज़त नहीं दी जाती और कुछ समाजों में तो विधवाओं की मौजूदगी को अशुभ और दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है। दुनिया भर में क़रीब 26 करोड़ विधवा महिलाएँ हैं जिनमें से इन विधवाओं की क़रीब आधी संख्या बहुत ग़रीबी में जीवन जी रही हैं।इसके अलावा उन्हें अपनी ज़िन्दगी आर्थिक रूप से बेहतर बनाने के लिए बहुत कम मौक़े मौजूद हैं।यहाँ तक कि विकसित देशों में भी महिलाओं को मिलने वाली पेंशन की क़ीमत पुरुषों को मिलने वाली पेंशन से क़रीब 40 फ़ीसदी कम होती है।अक्सर विधवाएँ अपने परिवारों और स्थानीय समुदायों द्वारा सताई और परेशान की जाती हैं।विधवाओं को महिला होने के नाते बहुत भेदभाव का सामना करना पड़ता है और उनमें से बहुत को उम्र आधारित भेदभाव भी सहना पड़ता है।बहुत सी विधवाओं को शारीरिक और यौन दुर्व्यवहार का भी सामना करना पड़ता है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2010 में अन्तरराष्ट्रीय विधवा दिवस मनाना शुरू किया था ताकि तमाम समुदायों, समाजों, देशों और संस्कृतियों में हर उम्र की विधवाओं के हालात को बेहतर बनाया जा सके।एजेंसी
