नीरज का 94 साल की उम्र में निधन
नई दिल्ली- पद्मभूषण से सम्मानित हिंदी के वरिष्ठ कवि और गीतकार गोपाल दास नीरज का 94 साल की उम्र में गुरुवार को दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। उनके बेटे शशांक प्रभाकर ने बताया कि उनके पार्थिव शरीर को पहले आगरा में लोगों के अंतिम दर्शनार्थ रखा जाएगा और उसके बाद पार्थिव देह को अलीगढ़ ले जाया जाएगा जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
वे पहले व्यक्ति थे जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से। यही नहीं, फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला।। यश भारती पुरस्कार भी मिला था । फिल्म अभिनेता राजकपूर और गोपाल दास नीरज की जोड़ी फिल्म इंडस्ट्री में हिट थी. उन्होंने राजकपूर की सुपरहिट फिल्में ‘मेरा नाम जोकर’ और ‘कल आज और कल’ के गीत लिखे।
गोपालदास सक्सेना ‘नीरज काफी लंबे वक्त से बीमार थे। उनका जन्म चार जनवरी 1925 को संयुक्त प्रान्त अब उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहाँ हुआ था। 6 वर्ष की आयु में पिता गुजर गये। 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। लम्बी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहाँ से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डी०ए०वी कॉलेज में क्लर्की की। फिर बाल्कट ब्रदर्स में (प्राइवेट कम्पनी में) पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया। नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ देकर 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में बी०ए० और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम०ए० किया।
मेरठ कॉलेज मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया किन्तु कॉलेज प्रशासन द्वारा उन पर कक्षाएँ न लेने व रोमांस करने के आरोप लगाये गये जिससे कुपित होकर नीरज ने स्वयं ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।
कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा। किन्तु बम्बई की ज़िन्दगी से भी उनका जी बहुत जल्द उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये।
गोपाल दास नीरज के चर्चित फिल्मी गीत
वो हम न थे, वो तुम न थे,शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब,आज मदहोश हुआ जाए रे,स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से,लिखे जो खत तुझे ऐ भाई! जरा देख के चलो,दिल आज शायर है,जीवन की बगिया महकेगी,मेघा छाए आधी रात,खिलते हैं गुल यहां,फ़ूलों के रंग से रंगीला रे! तेरे रंग में । एजेन्सी।