43 वर्ष पूर्व देश में लगा आपात काल यदि नेताओ के लिए कयामत की तारीख थी तो अब भी लोकतंत्र के नाम पर अघोषित आपात काल से कम नही है । नेताओ के नजरिये से आपात काल गलत हो सकता है लेकिन लोकतंत्र के नाम पर ताना शाही अब भी जारी है । जहां तक मीडिया की स्वतंत्रता को दबाने की बात की जाती है तो आज भी मीडिया घराने विपक्ष और जनता की आवाज दबाने में लगे है और सिर्फ सरकार का गुणगान कर करोड़ो रुपये के विज्ञापन डकार रहे है।
तत्कालीन देश की प्रधान मंत्री स्व॔ श्री मती इंदिरा गाँधी ने राजनैतिक, आर्थिक सामाजिक, सांस्कृतिक अव्यवस्था को समाप्त करने के लिए 25 जून 1975 को अपने मंत्रिपरिषद की संस्तुति पर राष्ट्र पति द्वारा आपात काल की घोषणा की थी । आपात काल की उस समय के आम नागरिक आज भी तारीफ करते नही थकते है जब रेल गाड़ी समय से चलने लगीं थी, सरकारी अधिकारी – कर्मचारी समय से कार्यालय पहुँचने लगे थे, लंच का निश्चित समय था, आफिस में बैठ कर गप्पें नही मारी जाती थी, हर काम समय पर होता था, बाजार में सामान की मूल्य लिस्ट टगी रहती थी, स्कूल कालेज समय पर खुलते थे, छात्र संगठनो पर प्रतिबंध था, नकल माफिया भूमिगत थे, देश में धरना प्रदर्शन बन्द थे, घूसखोरी व भ्रष्टाचार से लोग घबडाते थे । पुरे देश में शांतिपूर्ण माहौल था । लेकिन इन सब अच्छाइयों के बाद भी आपात काल में एक सबसे बड़ी भूल हुई थी देश की बढ़ती जनसंख्या पर अंकुश लगाने के लिए नसबंदी के नाम पर बहुत ज्यादतीं हुई थी और सबसे अधिक मुस्लिम समुदाय सरकार से नाराज हो गया था जबकि देश के तमाम विरोधी नेताओ को जेल में बन्द कर दिया गया था जेल में कोई कष्ट नही था एक तरह वहां पिकनिक ही मना रहे थे । आपात काल में विरोधी दल के नेताओ को फायदा ही हुआ था, जेल के बाहर एक दुसरे पर कीचड़ डालते थे और भिड़ंत करते थे लेकिन 19 माह जेल में रहने के बाद उस समय की देश की सशक्त नेता इन्दिरा गाँधी को सत्ता से बेदखल करने के लिए एक जुट होकर जनता दल का गठन किया था । (जैसे आज सभी दल एकजुट होकर मोदी को परास्त करने के लिए भाजपा के अनुसार सांप, नेवला एक साथ आ गये है, वैसे ही उस समय भी कांग्रेस को परास्त करने के लिए एक साथ आ गए थे ) भारतीय जनसंघ ने तो समय का फायदा उठाकर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की नकारात्मक छवि का धब्बा हटाने के लिए पार्टी का नाम तक बदल दिया था ।
आपात काल की समाप्ति के बाद 1977 में आम चुनाव की घोषणा कर दी गई और विरोधी दलो की एक जुटता के कारण चुनाव में कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा । उस समय की जनता दल सरकार ने कांग्रेस को तरह -तरह से परेशान किया लेकिन निडर इन्दिरा गाँधी डरीं नही और जनता दल सरकार का डट कर मुकाबला किया, फिर जनता दल के नेताओ को घी हजम नही हुआ और तीन साल के अंदर ही बंदरो की तरह लड़ कर अपना कुनबा बिखैर दिया । श्रीमती इन्दिरा गाँधी की राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय छबि के आगे देश की जनता को सभी नेता बौने लग रहे थे फलस्वरुप कांग्रेस ने 1980 के चुनाव में जनता पार्टी को धारा साई कर पुनः सत्ता में धमाके दार वापसी की थी ।यदि देश की आम जनता को आपात काल में कोई कष्ट हुआ होता तो पुनः कांग्रेस सत्ता में कैसे आती?
आज देश के कुछ राजनैतिक लोग जो बिना पेंदी के है इन्दिरा गाँधी जैसी सशक्त महिला प्रधानमंत्री की तुलना हिटलर से करते है ।इन्दिरा गाँधी ने जो देश को दिया वह कोई नेता दशको बीत जाने के बाद भी नही दे पायेगा ।
केंद्र का एक मंत्री आपात काल को बच्चो की किताबों में एक अध्याय जोड़कर पढ़ाने की बात करता है वैसे देश के बच्चो को यह भी पढ़ाना जाना चाहिए कि देश में नोटबंदी क्यो की गई थी, देश के लघु एवं मध्यम समाचार पत्रो का मुंह बन्द करने के लिए उन पर जी एस टी क्यो लागू की गई थी , सत्ता के लिए पी डी पी जैसी अलगाव वादी दलो से हाथ क्यो मिलाया गया था , नागालैंड सहित पूर्वोत्तर के राज्यो की सत्ता हासिल करने के लिए वहाँ के आतंकवादी संगठनो से कैसे हाथ मिलाया था और देश के बच्चो को यह भी पढ़ाना जाना चाहिए कि देश की 125 करोड़ जनता से झूठ बोल कर /बेवकूफ बना कर सत्ता में कैसे काबिज हुआ जाता है, बच्चो को यह भी पढ़ाना जाना चाहिए कि देश में कैसे अघोषित एमरजेंसी का माहौल बनाया जाता है? /
नरेश दीक्षित संपादक समर विचार