चेन्नै।स्वप्निल संसार। एजेंसी इनपुट के साथ। कांचीपुरम मठ के 82 वर्षीय शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को आखिरकार लंबी प्रक्रिया के बाद उनके गुरु के बगल में महासमाधि दे दी गई। महासमाधि से पहले परंपरागत तरीके से पूजा-पाठ और सभी जरूरी संस्कार किए गए। सरस्वती 69वें शंकराचार्य और कांची कामकोटि पीठके पीठाधिपति थे। देश के सबसे ताकतवर संत शंकराचार्य की महासमाधि की प्रक्रिया गुरुवार सुबह शुरू की गई। इस मौके पर देशभर से नामी संत और मठ के लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित भी शंकराचार्य के दर्शन करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। जनवरी में महीने जयेंद्र सरस्वती को सांस लेने में तकलीफ हुई थी, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। पार्थिव देह को दफनाने की प्रकिया जिसे वृंदावन प्रवेशम कहा जाता है, अभिषेकम के साथ शुरू हुई। अभिषेकम के लिए दूध और शहद जैसे पदार्थों का इस्तेमाल किया गया। अभिषेकम की प्रक्रिया श्री विजयेंद्र सरस्वती तथा परिजन की मौजूदगी में पंडितों के वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मठ के मुख्य प्रांगण में हुई। मठ के अधिकारी ने कहा कि जयेंद्र सरस्वती का पार्थिव शरीर बाद में वृंदावन उपभवन ले जाया गया। वहीं उनके पूर्ववर्ती श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती के अवशेष 1993 में रखे गए थे।
कांची मठ के मैनेजर शंकरारमन की हत्या के आरोप में 11 नवंबबर 2004 को जयेंद्र सरस्वती को गिरफ्तार भी किया गया था। उस समय जयललिता की ही सरकार थी। एक समय ऐसा था जब जयललिता जयेंद्र सरस्वती को अपना आध्यात्मिक गुरु मानती थीं। जिस वक्त जयेंद्र सरस्वती को पुलिस गिरफ्तार करने पहुंची तो वह ‘त्रिकाल संध्या’ कर रहे थे। 27 नवंबर 2013 को शंकररमन मर्डर केस में पुडुचेरी की अदालत ने कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, उनके भाई विजयेंद्र समेत सभी 23 आरोपियों को बरी कर दिया था।
इस मौके पर महासमाधि से पहले किए जाने वाले अनुष्ठान और संस्कार भी मठ के महंतों द्वारा किए गए। कई गणमान्य लोग महासमाधि की प्रक्रिया के दौरान उपस्थित थे और भारी संख्या में भीड़ भी उमड़ पड़ी थी। हिंदू मान्यताओं के अनुसार आदि शंकराचार्य को भगवान शंकर का अवतार माना जाता है। हिंदू धर्म में शंकराचार्य सर्वोच्च पद होता है। महासमाधि की प्रक्रिया पूरी होने के बाद शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती पंचतत्व में विलीन हो गए। तमिलनाडु स्थित कांची पीठ के पीठाधिपति के रूप में जयेंद्र सरस्वती ने राजनीतिक रूप से भी ताकतवर संत का जीवन जीया। जयेंद्र सरस्वती को वेदों का ज्ञाता माना जाता था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी इनके प्रशंसक थे। जयेंद्र सरस्वती ने अयोध्या विवाद के हल के लिए भी पहल की थी। इसके लिएपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनकी काफी प्रशंसा की। हालांकि तब जयेंद्र सरस्वती को आलोचना का भी शिकार होना पड़ा। जयेंद्र सरस्वती ने हिंदुओं के प्रमुख केंद्र कांची कामकोटि मठ को और ताकतवर बनाया। उनके समय में इस केंद्र एनआरआई और राजनीतिक शख्सियतों की गतिविधियां बढ़ीं। कांची मठ कई स्कूल और अस्पताल भी चलाता है। देशभर में मशहूर शंकर नेत्रालय मठ की तरफ से चलाया जाता है।