इमरान खान जाने माने क्रिकेटर रहे हैं। पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान रहे और कई मैचों में जीत दिलाई। फास्ट बाॅलर के रूप में वह अच्छे-अच्छे बल्लेबाजों की गुल्लियां उड़ा देते थे। राजनीति में आकर उन्होंने इस बार नवाज शरीफ का विकेट चटका दिया है। गत 25 जुलाई को हुए संसदीय चुनाव में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ ने सबसे ज्यादा सीटें जीती और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी और स्व. बेनजीर भुट्टो की पार्टी को काफी पीछे छोड़ दिया है। इमरान खान ने क्रिकेट में अपनी बादशाहत कायम करने के बाद 1996 में राजनीति में कदम रखा था। पाकिस्तान तहरीक-ए-इस्लाम पार्टी की स्थापना की। पहली बार उनकी पार्टी को सिर्फ एक ही सीट पर सफलता मिली थी लेकिन पाकिस्तान के हालात कुछ इस तरह से बदले कि इमरान खान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने का मौका मिल गया है और इसी के साथ कयास लगाये जाने लगे हैं कि पाकिस्तान की नयी सरकार के रिश्ते भारत के साथ कैसे रहेंगे। हाफिज की पार्टी को वहां की जनता ने जिस तरह से ठुकराया है, उससे भारत को कुछ उम्मीद बँधी थी। इमरान खान ने कुर्सी पाने से पहले ही विदेश नीति का खुलासा करते हुए जिस तरह चीन को पहले स्थान पर रखा है और भारत को सबसे अंतिम स्थान पर, उससे चिंता हो रही है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि इमरान खान को यहां तक का सफर तय करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी है। इस बीच जनरल परवेज मुशर्रफ पर देश द्रोह का मुकदमा और प्रधानमंत्री के पद पर होते हुए नवाज शरीफ का पनामा पेपर लीक मामले में आरोपित होना भी इमरान खान के राजनीतिक मार्ग को सुगम बनाने में सहायक रहा है। पाकिस्तान की मौजूदा राजनीति में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा साबित हुआ है। नवाज शरीफ, उनकी बेटी और दामाद पर, भ्रष्टाचार के ही गंभीर आरोप लगे। इसके चलते पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने नवाज शरीफ के राजनीतिक सफर को ही रोक दिया। वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे। इमरानखान ने अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान भ्रष्टाचार के मुद्दे को ही प्रमुख रूप से उठाया था। पाकिस्तान की दूसरी मजबूत पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) है जिसका नेतृत्व भुट्टो परिवार कर रहा है। भुट्टो परिवार के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के मामले सामने आये और इमरान खान ने उन्हें भी चुनाव प्रचार में विशेष स्थान दिया था। पनामा पेपर लीक मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी और जेल जाना पड़ा था। भुट्टो के दामाद आसिफ जरदारी पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे थें जबकि इमरान खान पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं था। पाकिस्तान की जनता ने इस बात पर गौर किया और इमरान की पार्टी को सत्ता सौपने का निश्चय किया।
इसके साथ ही इमरान खान जब क्रिकेट खेलते थे, तभी से युवाओं में विशेष लोकप्रिय थे। राजनीति में आने के बाद भी इमरान का युवाओं पर प्रभाव रहा है। इमरान को पाकिस्तान क्रिकेट का आईकान माना जाता है। इमरान खान ने महज 13 साल की उम्र से क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। करीब दो दशक तक शानदार क्रिकेट खेलते हुए उन्होंने पाकिस्तान को विजय श्री दिलवाई। वह 1982 से 1992 तक पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान रहे। इतने लम्बे समय तक कप्तान रहने वाले वे पहले गेंदबाज हैं। इमरान खान ने 1992 में पहली बार क्रिकेट वल्र्ड कप दिलाया था। इसके बाद पाकिस्तान को यह कप नसीब नहीं हो पाया। इसलिए इमरान खान को पाकिस्तान का सबसे सफल क्रिकेट खिलाड़ी माना जाता है। उनकी इस छवि ने चुनाव में भी बड़ी भुमिका निभाई है और देश के युवाओं का प्रबल समर्थन उन्हें मिला है। चुनाव प्रचार के दौरान इमरान खान ने युवाओं को देश के विकास का सपना भी दिखाया था। उन्होंने वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनती है तो पाकिस्तान को भारत से भी आगे ले जाएंगे।
यहीं से इमरान खान की पाकिस्तान में सरकार बनने के बाद भारत से रिश्तों पर बहस भी छिड़ गयी है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान में भारत के विरोध की राजनीति ही चलती है। वहां पर उदारवादी नेताओं को आगे बढ़ने नहीं दिया जाता। इमरान खान ने भले ही अपने देश के विकास की बात कही लेकिन तुलना उन्होंने भारत से की थी। इमरान ने यह नहीं कहा था कि वह पाकिस्तान को अमेरिका और जापान से भी आगे ले जाएंगे। भारत से आगे ले जाने की बात उस दुर्भावना से जुड़ी है जो पाकिस्तान की जनता के मन में भारत के प्रति नफरत पैदा करने के लिए भरी जाती है। कट्टर पंथी और सेना इसी नीति का समर्थन करते हैं।
इसीलिए इमरान खान को चुनाव में सेना और कट्टरपंथियों का भी समर्थन मिला है। इमरान ने अपनी छवि एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में बनायी। नवाज शरीफ और बिलावल भुट्टो के भ्रष्टाचार की जमकर निंदा की। देश हित से जुड़े मुद्दों पर उन्होंने खुलकर बात की, खासकर भारत के खिलाफ बयानबाजी का उन्होंने कोई अवसर नहीं छोड़ा था। अपने प्रतिद्वन्दी नेताओं नवाज शरीफ और बिलावल भुट्टो को भारत का चहेता तक बताने में उन्होंने हिचक नहीं दिखाई थी जबकि नवाज शरीफ की सरकार ने भारत को उन आतंकवादियों को सौंपने से साफ इंकार किया था जिनका संबंध मुंबई आतंकी हमले से था। इमरान खान ने देशभक्ति के मामले में नवाज शरीफ को जमकर घेरा था और सेना व कट्टर पंथी उनसे इसलिए खुश हो गये कि इमरान ने भारत के विरोध में खुलकर बयानबाजी की थी।
भारत के लिए सुकून भरी खबर यह है कि आतंकवादी हाफिज सईद की पार्टी को वहां की जनता ने पूरी तरह ठुकरा दिया है। इसका मतलब है कि जनता में अभी अमन के प्रति लगाव है। कट्टर पंथियों के भय से लोग भले ही नहीं बोल पाते लेकिन चुनाव में मताधिकार के माध्यम से उन्होंने यही जाहिर किया है कि जनता लोकतंत्र में विश्वास करती है और हिंसा खून खराबे को पसंद नहीं करती है। इस सुकून के साथ भारत को इमरान खान की नीतियों पर भी नजर रखनी होगी क्योंकि उनको कट्टरपंथियों और सेना ने समर्थन दिया है। कट्टरपंथियों और सेना को शायद यह अनुमान था कि जनता नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल (एन) और बिलावल भुट्टो की पार्टी पीपीपी को सरकार बनाने के लिए सांसद नहीं देगी। इसलिए साफ सुथरी छवि वाले इमरान खान पर सेना ने इस बार दांव खेला है ताकि उन्हें अपने तरीके से सेना अपना यह एहसान याद दिलाती रहे। सत्ता पर सेना अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहती है।
पाकिस्तान में जनता ने इस बार वंशवाद का भी विरोध किया है। पीपीपी और पीएम एल (एन) में दोनों परिवार ही सत्ता को अपने पास रखे हुए थे। पाकिस्तान के प्रसिद्ध अखबार डाॅन ने अपने सम्पादकीय में पहले ही लिख दिया कि नयी सरकार भारत और दक्षिण एशिया में नये समीकरण बनाएगी। चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में भी इमरान खान और नवाज शरीफ की पार्टियों के बीच ही टक्कर बतायी गयी थी लेकिन नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल(एन) काफी पीछे रह गयी है। (हिफी)