राजेश कुमार गुप्ता। आज बंगाली और हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध कलाकार पहाड़ी सान्याल को नई पीढ़ी भूल चुकी हो किन्तु सुप्रसिद्ध गायक व अभिनेता कुंदन लाल सहगल के साथी रहे ‘पहाड़ी सान्याल’ को आज भी उस दौर के फ़िल्म दर्शक व श्रोता स्मरण करते हैं। आज उनकी जयंती (22 फरवरी 1906) पर उन्हें विनम्र स्मरणांजलि।
नगेन्द्र नाथ सान्याल का जन्म पश्चिम बंगाल के पर्वतीय नगर दार्जिलिंग में हुआ, किन्तु पहाड़ी क्षेत्र के होने से फिल्मों में नाम ‘पहाड़ी सान्याल’ हो गया । बंगाली और हिंदी सिनेमा क्षेत्र में गीत गाये, अभिनय किया एवं 1933 से 1974 अर्थात मृत्युपर्यन्त सक्रिय रहे। लखनऊ से स्कूली शिक्षा प्राप्त की,बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग के लिए दाखिला लिया,मेधावी छात्र थे। किन्तु ये उनकी रुचि का विषय न होने से मध्य में छोड़ दिया और मोरिस कॉलेज ऑफ म्यूजिक,लखनऊ जो अब भातखंडे म्यूजिक इंस्टीट्यूट डीम्ड यूनिवर्सिटी कहलाता है, में संगीत सीखना शुरू किया। प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गुरु छोटे मुन्ना खान, अहमद खान, नासिर खान, उस्ताद मोहम्मद हुसैन से शिक्षा प्राप्त की। संगीत वाद्य में रुचि हुई सो तबले में पारंगत हुए।
विख्यात पत्रिका ‘देश’ में उन्होंने निरंतर लिखा। 1932 में कलकत्ता पहुंचे, अपने मित्र जाने माने फ़िल्म छायाकार कृष्ण गोपाल के माध्यम से निर्माता पी सी बरुआ से मिले और न्यू थिएटर में 150 रु महीने की नौकरी शुरू की, जो उस समय सम्मानजनक राशि थी। पहली फ़िल्म 1933 में ‘मीरा बाई’ रही । पहाड़ी सान्याल शास्त्रीय संगीत के अद्भुत गायक थे और फिल्मों में गाने वाले अभिनेताओं के अंतिम प्रतिनिधि रहे। चूंकि 1940 के दशक से कलाकारों के लिए प्लेबैक गाने वाले गायक आ चुके थे ।
1950 के दशक में सहायक भूमिकाओं में आना शुरू किया बंगाली चलचित्र देया नेया (1963), जया (1965) और आराधना (1969) में अपनी सशक्त भूमिका से उपस्थिति दर्शाई । फ़िल्म जया के लिए बेस्ट एक्टर इन सपोर्टिंग रोल का अवार्ड भी मिला। इसके अलावा बंगाल फ़िल्म जर्नालिस्ट एसोसिएशन द्वारा 1942 में फ़िल्म प्रतिश्रुति (1941) के लिए बेस्ट एक्टर अवार्ड दिया गया।विश्व विख्यात फ़िल्म निर्माता, निर्देशक सत्यजीत रे की दो फिल्में क्रमशः कंचनजंघा में पक्षी विज्ञानी के रूप में संक्षिप्त अभिनय और अरण्येर दिन रात्रि में चरित्र अभिनेता का शानदार अभिनय किया। चंडीदास (’34), कारवां ए हयात ((’35), बिद्यापति (’37), रजत जयंती (’39), शाप मोचन (’55) और जागते रहो में अपने सहज अभिनय के लिए अभी तक याद किये जाते हैं।
उनका उर्दू, फारसी, हिंदी एवं बंगाली भाषा पर उनका समान अधिकार रहा। बंगाली फिल्मों के अलावा हिंदी फिल्मों में भी सजीव अभिनय किया जिनमें विद्यापति (’34), देवदास (’35) ,अधिकार (’38) ,हारजीत (’39), जागते रहो (’56), आराधना (’69) दोनों बंगाली एवं हिंदी संस्करण, नई रोशनी (’67), साथी (’68) आदि । एक तमिल फिल्म रत्न दीपम (’53) और अंग्रेजी फ़िल्म Householder जिसका निर्माणआइवरी मर्चेंट का द्वारा किया गया था, में अभिनय किया।
आज भी उनके गाये गीत ‘दर्शन हुए तिहारे’ फ़िल्म विद्यापति (’34),’ प्रेम की हो जय जय’ फ़िल्म चंडीदास(’34) के एल सहगल,उमा शशि के साथ,’कोई प्रीत की रीत बात दे ‘ फ़िल्म कारवां ए हयात (’34) के एल सहगल और उमा शशि के साथ, ‘रोशन है तेरे दम से दुनिया का परिखाना’ फ़िल्म देवदास (’35),’छूटे असीर तो बदल हुआ ज़माना था’ फ़िल्म देवदास (’35), ‘जो नौकरी दिला दे’- के एल सहगल के साथ फ़िल्म करोड़पति (’36), ‘ओ दिलरुबा कहाँ तक जुल्मो सितम सहेंगे ‘फ़िल्म करोड़पति (’36) के एल सहगल के साथ ,’सुहाग की रात आयी सजनी’ फ़िल्म अधिकार (’38) ,’मस्त पवन शाखें लहरायें’ फ़िल्म हारजीत (’39) कानन देवी के साथ, जिसे संगीत प्रेमी आज भी गुनगुनाते हैं। कलकत्ता में इस महान गायक,अभिनेता का निधन 67 वर्ष की आयु में 10 फरवरी 1974 में हो गया था।