राकेश अचल। खुशी की बात है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी को चार साल पुराने एक बयान के मामले में सूरत की सेशन कोर्ट ने मानहानि का दोषी पाया है और दो साल की सजा सुनाई है.ये खुशी दोगुनी हो सकती है बशर्ते कि ये सजा देश के सभी बड़बोलों के लिए भी ये सजा नजीर बने। कहने को कोर्ट ने राहुल को जमानत दे दी है। लेकिन उनकी लोकसभा की सदस्यता पर खतरा मंडरा रहा है। राहुल विरोधी इससे खुश हैं, यद्यपि सब जानते हैं कि ‘ कौओं के कोसने से ढोर नहीं मरते ‘ । राहुल ने मोदी उपनाम को लेकर टिप्पणी की थी। कोर्ट के फैसले के बाद राजनीतिक माहौल भी गरमा गया है। कोर्ट में शिकायकर्ता का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बावजूद राहुल गांधी ने विवादित बयान दिया। शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट में आरोपी राहुल गांधी ने लिखित माफी मांगी थी और उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि भविष्य में ऐसी बातें दोबारा ना कहीं जाएं। अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि राहुल गांधी सांसद हैं और इस तरह का आचरण अच्छा नहीं है।
इस पर सेशन कोर्ट की तरफ से टिप्पणी की गई, कोर्ट ने कहा- हालांकि आरोपी को सुप्रीम कोर्ट ने सतर्क रहने की सलाह दी थी, लेकिन उनके आचरण में कोई बदलाव नहीं आया है। आरोपी सांसद हैं और जनता को संबोधित करने का तरीका गंभीर है। इसका बहुत व्यापक प्रभाव है और अपराध में बहुत गंभीरता है। यदि अभियुक्त को कम दण्ड दिया जाता है तो इससे जनता में गलत संदेश भी जाता है और मानहानि का उद्देश्य प्राप्त नहीं होगा, इसलिए सभी तथ्यों पर विचार करते हुए दोषी को दो साल की सजा सुनाई जाती। माननीय अदालत का फैसला पहला और अंतिम नहीं है, लेकिन फैसला तो फैसला है।जब तक अपील, दलील के रास्ते बंद नहीं हो जाते तब तक फैसले का सम्मान किया जाएगा। दरअसल देश में मानहानि करना नेताओं के लिए बाएं हाथ का काम है। नेता भाषाविद नहीं होते, इसलिए उनकी जुबान का कोई खाड़ा नहीं होता।वे किसी भद्र महिला को ‘जर्सी गाय’कह सकते हैं तो किसी को ‘डेढ करोड़ की कालगर्ल ‘.नेता संसद के बाहर ही नहीं बल्कि संसद में ही किसी महिला की हंसी को आसुरी कह सकते हैं किंतु इन्हें मानहानि नहीं माना जाता।
भगवान करे कि राहुल की सजा की पुष्टि देश की सबसे बड़ी अदालत से भी हो। राहुल जेल भी जाएं।उनकी लोकसभा की सदस्यता भी जाए। ताकि सत्तारूढ़ दल का अखंड राज करने का सपना तो पूरा हो।विपक्ष को नेस्तनाबूद करने के लिए अब अंतिम औजार अदालतों में लड़ी जाने वाली लड़ी है। अदालतों में ये काम हो भी रहा है। अदालतों पर कानून मंत्री को छोड़ और कोई टिप्पणी कर नहीं सकता। राजधानी से लेकर राज्य के विभिन्न न्यायालयों में मानहानि के सैकड़ों प्रकरण लंबित हैं। कुछ सालों पुराने तो कुछ हाल में दाखिल किए गए हैं। अपवादों को छोड़ कर मानहानि के मामले में किसी को न तो सजा हुई और न ही मुआवजा मिला। अलबत्ता यह सिर्फ नेताओं का राजनीतिक पैंतरा बनकर रह गया है। वे सुर्खियां बटोरने के लिए हो-हल्ला कर केस दर्ज करवाते हैं और कुछ दिनों बाद गुप-चुप तरीके से सुलह कर लेते हैं। राहुल ने भी माफी मांगी ही थी।
किसी के मान-सम्मान को ठेस पहुंचाने पर भारतीय दंड संहिता में सजा या मुआवजे का प्रावधान है। मानहानि के ज्यादातर प्रकरण चर्चित हस्तियों द्वारा लगाए जाते हैं। इनमें भी राजनीतिक लोग सबसे आगे हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा 499 में मानहानि को परिभाषित किया गया। इसके अनुसार- जो कोई बोले गए या पढ़े जाने के लिए शब्दों द्वारा, संकेतों द्वारा या दृश्य निरुपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में लांछन, इस आशय से लगाता है या प्रकाशित करता है कि इससे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाएगी। यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी, अपवादों को छोड़कर यह कहा जाएगा कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है। देश में सुर्खियां पाने वाले प्रकरणों में दिग्विजय सिंह (कांग्रेस) विरुद्ध उमा भारती (भाजपा), जे. जयललिता (एआईएडीएमके) विरुद्ध विजयकांत (डीएमडीके), शीला दीक्षित (कांग्रेस) विरुद्ध अरविंद केजरीवाल (आम आदमी पार्टी) संजय सिंह (जेडीयू) विरुद्ध लालू प्रसाद यादव (आरजेडी),शीला दीक्षित (कांग्रेस) विरुद्ध विजेंदर गुप्ता (भाजपा) शिवराज सिंह व साधना सिंह (भाजपा) विरुद्ध अजय सिंह (कांग्रेस), जे. जयललिता (एआईएडीएमके) विरुद्ध एम. करुणानिधि (द्रमुक) प्रमुख हैं, लेकिन सजा किसी ने नहीं भोगी। देश के बाहर मार्च 2012 में लंदन हाईकोर्ट ने ललित मोदी के खिलाफ मानहानि के मामले में उन पर 90 हजार पाउंड का जुर्माना जरूर लगाया था। मोदी ने न्यूजीलैंड के क्रिकेटर क्रिस कैंस पर मैच फिक्सिंग व स्पॉट फिक्सिंग का आरोप लगाया था। इसके खिलाफ कैंस ने लंदन हाईकोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर किया था। नौ दिन की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट जस्टिस डेविड बीन ने क्रिस कैंस के पक्ष में फैसला सुनाया। बहरहाल देखते हैं कि राहुल गांधी का क्या होता है,वे जेल जाते हैं या नहीं। वैसे कामयाब नेता को जीवन में एक न एक जेल यात्रा जरूर करना चाहिए। हमारे मित्र रमाशंकर सिंह बताते हैं कि आजाद भारत में विपक्षी नेता के रूप में डॉ राममनोहर लोहिया ने 11 जेल यात्राएं की थी लेकिन मानहानि के मामले में वे कभी नहीं उलझे।
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