स्मृति शेष। काका हाथरसी का अविस्मरणीय योगदान उनकी सदा याद दिलायेगा। काका हाथरसी,(18 सितम्बर 1906 ,18 सितम्बर 1995) में हाथरस में जन्मे ( असली नाम: प्रभुनाथ गर्ग ) हिंदी हास्य कवि थे। उनकी शैली की छाप उनकी पीढ़ी के अन्य कवियों पर तो पड़ी ही, आज भी अनेक लेखक और व्यंग्य कवि काका की रचनाओं की शैली अपनाकर लाखों श्रोताओं और पाठकों का मनोरंजन कर रहे हैं। आपके हिंदी हास्य 42 संग्रह प्रकाशित हुए,1932 के आसपास उन्होंने लिखना शुरू किया था 1935 में, मासिक पत्रिका संगीत का प्रकाशन शुरू कर दिया था। उन्होंने 1985 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया था, हर साल, साहित्यिक क्षेत्र में पुरस्कार उत्कृष्ट योगदान काका हाथरसी के नाम पर “हिंदी अकादमी पुरस्कार” दिल्ली सरकार द्वारा दिए जाते हैं हास्य और व्यंग्य की उनकी शैली ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया था,आकाशवाणी पर मीठी मीठी हसियां के नाम से,कार्यक्रम पेश होता था जो ग्यारह साल तक चला की यह भारत में सबसे लंबे समय तक चलने का कार्यक्रम था.काका हाथरसी का अपने जन्मदिन, 18 सितंबर, 1995 को 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 18 सितंबर को उनकी स्मृति में “हास्य दिवस” घोषित किया गया था और नई दिल्ली में एक पार्क को नाम दिया गया था “काका हाथरसी उद्यान।”
बिना टिकिट के ट्रेन में चले पुत्र बलवीर जहाँ ‘मूड’ आया वहीं, खींच लई ज़ंजीर खींच लई ज़ंजीर, बने गुंडों के नक्कू पकड़ें टी.टी., गार्ड, उन्हें दिखलाते चक्कू गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार बढ़ा दिन-दूना प्रजातंत्र की स्वतंत्रता का देख नमूना राशन की दुकान पर, देख भयंकर भीर काका हाथरसी को यहन भे ‘क्यू’ में धक्का मारकर, पहुँच गये बलवीर पहुँच गये बलवीर, ले लिया नंबर पहिला खड़े रह गये निर्बल, बूढ़े, बच्चे, महिला कहँ ‘काका’ कवि, करके बंद धरम का काँटा लाला बोले – भागो , खत्म हो गया आटा। काका हाथरसी का अविस्मरणीय योगदान उनकी सदा याद दिलायेगा। एजेन्सी।