मुबारक साल गिरह-
प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा हिंदी सिनेमा की प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल में हैं। 3 सितम्बर, 1940 को जन्म हुआ था प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा का। गोरखपुर में प्यारेलाल का बचपन बेहद संघर्ष भरा रहा। उनकी माँ का देहांत छोटी उम्र में ही हो गया था। उनके पिता ‘पंडित रामप्रसाद जी’ ट्रम्पेट बजाते थे और चाहते थे कि प्यारेलाल वायलिन सीखें। पिता के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे, वे घर घर जाते थे जब भी कहीं उन्हें बजाने का मौक़ा मिलता था और साथ में प्यारे को भी ले जाते।
उन्होंने 8 साल की उम्र से ही वायलिन सीखने शुरू कर दिया था और प्रतिदिन 8 से 12 घंटे का अभ्यास किया करते थे। उन्होंने एंथनी गोंजाल्विस से से वायलिन बजाना सीखा। फिल्म अमर अकबर एंथनी ((फिल्म में संगीत लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल का था)।
12 वर्ष की उम्र उनके परिवार की वित्तीय स्थिति काफी खराब हो गयी एवं उन्हें इस उम्र में स्टूडियो में काम करना पड़ा। प्यारेलाल को परिवार के लिए रुपए कमाने के लिए रंजीत स्टूडियो एवं अन्य स्टूडियो में वायलिन बजाना पड़ता था।उनका मासूम चेहरा सबको आकर्षित करता था। एक बार पंडित जी उन्हें लता मंगेशकर के घर लेकर गए। लता जी प्यारे के वायलिन वादन से इतनी खुश हुईं कि उन्होंने प्यारे को 500 रुपए इनाम में दिए जो उस ज़माने में बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। वो घंटों वायलिन का रियाज़ करते।
अपनी मेहनत के दम पर उन्हें बम्बई अब मुंबई के ‘रंजीत स्टूडियो’ के ऑर्केस्ट्रा में नौकरी मिल गई जहाँ उन्हें 85 रुपए मासिक वेतन मिलता था। अब उनके परिवार का पालन इन्हीं रुपए से होने लगा। उन्होंने एक रात्रि स्कूल में सातवें ग्रेड की पढ़ाई के लिए दाख़िला लिया पर 3 रुपये की मासिक फीस उठा पाने की असमर्थता के चलते उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा। मुश्किल हालातों ने भी उनके हौसले कम नहीं किए, वो बहुत महत्त्वाकांक्षी थे, अपने संगीत के दम पर अपने लिए नाम कमाना और देश विदेश की यात्रा करना उनका सपना था।
“मैंने संगीत सीखने के लिए एक संगीत ग्रुप जॉइन किया, पर वहां मुझे हिंदू होने के कारण स्टेज आदि पर परफोर्म करने का मौक़ा नहीं मिलता था। वो लोग पारसी और ईसाई वादकों को अधिक बढ़ावा देते थे। पर मुझे सीखना था तो मैं सब कुछ सह कर भी टिका रहा। पर मेरे पिता ये सब अधिक बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। उन्होंने ख़ुद गरीब बच्चों को मुफ़्त में सिखाने का ज़िम्मा उठाया और वो उन्हें संगीतकार नौशाद साहब के घर भी ले जाया करते थे। क़रीब 1500 बच्चों को मेरे पिता ने तालीम दी”
लक्ष्मीकांत से मुलाकात
“उन दिनों लक्ष्मीकांत ‘पंडित हुस्नलाल भगतराम’ के साथ काम करते थे, वो मुझसे 3 साल बड़े थे उम्र में, धीरे धीरे हम एक दूसरे के घर आने जाने लगे। साथ बजाते और कभी कभी क्रिकेट खेलते और संगीत पर लम्बी चर्चाएँ करते। हमारे शौक़ और सपने एक जैसे होने के कारण हम बहुत जल्दी अच्छे दोस्त बन गए।” “सी. रामचंद्र जी ने एक बार मुझे बुला कर कहा कि मैं तुम्हें एक बड़ा काम देने वाला हूँ। वो लक्ष्मी से पहले ही इस बारे में बात कर चुके थे। चेन्नई में हमने ढ़ाई साल साथ काम किया फ़िल्म थी “देवता” कलाकार थे जेमिनी गणेशन, वैजयंती माला, और सावित्री, जिसके हमें 6000 रुपए मिले थे। ये पहली बार था जब मैंने इतने पैसे एक साथ देखे। मैंने इन पैसों से अपने पिता के लिए एक सोने की अंगूठी ख़रीदी जिसकी कीमत 1200 रुपए थी।”
कुछ प्रसिद्ध गीत
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने हिन्दी सिनेमा को बेहतरीन गीत दिये हैं।
सावन का महीना… (फ़िल्म- मिलन) दिल विल प्यार व्यार… (फ़िल्म- शागिर्द) बिन्दिया चमकेगी… (फ़िल्म- दो रास्ते) मंहगाई मार गई… (फ़िल्म- रोटी कपड़ा और मकान) डफली वाले… (फ़िल्म- सरगम) तू मेरा हीरो है… (फ़िल्म- हीरो ) यशोदा का नन्दलाला… (फ़िल्म- संजोग) चिट्ठी आई है… (फ़िल्म- नाम)
एक दो तीन… (फ़िल्म- तेज़ाब) चोली के पीछे क्या है… (फ़िल्म- खलनायक)एजेन्सी