अपने पिता की मदद करने के लिए वो फिल्मों में आई, क्यों की उनके परिवार का सब कुछ करांची में छुट गया था साधना एकलौती औलाद थी साधना यह नाम दिया था उनके पिता ने उस दौर में साधना बोस बतौर अभिनेत्री लोगों के दिलो दिमाग पर छाई थी।
1955 “राज कपूर” की फिल्म श्री 420 के गीत ” ईचक दाना बीचक दाना” में एक कोरस लड़की की भूमिका मिली थी साधना को उस वक्त वो 15 साल की थी,दरअसल साधना को वह कुछ ADVT.कपनी ने मौक़ा दिया था अपने उत्पादकों के लिए ।
उन्हें भारत की पहली सिंधी फिल्म अबना, (1958) में काम करने का मौक़ा मिला जिसमें उन्होंने अभिनेत्री शीला रमानी की छोटी बहन की भूमिका निभाई थी और इस फिल्म के लिए उन्हें 1 रुपए की टोकन राशि का भुगतान किया गया था।
इस सिंधी ब्यूटी को सशधर मुखर्जी, ने देखा.जो उस वक्त बहुत बड़े फिल्मकार थे, सशधर मुखर्जी को अपने बेटे जॉय मुखर्जी, के लिए जो उनके साथ हेरोइन का किरदार करे एक नये चेहरे की तलाश थी साल था 1960 ” लव इन शिमला” रिलीज़ हुई, इस फिल्म के डाइरेक्टर थे आर.के. नैयर, और उन्होंने ही साधना को नया लुक दिया “साधना कट” दरअसल साधना का माथा बहुत चौड़ा था उसे कवर किया गया बालों से उस स्टाईल का नाम ही पड़ गया “साधना कट” And from this movie onwrds Sadhna has become most stylish with the special hair cut called “साधना कट” ।
फिल्मालय से उनका तीन साल का अनुबंध था,इसी कड़ी में थी एक मुसाफिर एक हसीना एक और मुज़िकल हिट.जिसके डाइरेक्टर थे राज खोसला. बिमल रॉय ने उन्हें परख में मौक़ा दिया परख को कई अवार्ड भी मिले थे फिल्म में साधना ने साधारण गांव लड़की का किरदार निभाया था.
1961 में एक और “हिट” फिल्म हम दोनों में देव आनंद के साथ थी इस B/W फिल्म को colourized किया गया था और 2011 में फिर से रिलीज़ किया गया था 1962 में वह फिर से निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा असली – नकली में देव आनंद के साथ थी. 1963 में, टेक्नीकलर फिल्म मेरे मेहबूब एच एस रवैल द्वारा निर्देशित उनके फ़िल्मी कैरियर ब्लॉकबस्टर फिल्म थी यह फिल्म 1963 की भी ब्लॉकबस्टर फिल्म थी और 1960 के दशक के शीर्ष 5 फिल्मों में स्थान पर रहीं.मेरे मेहबूब में निम्मी पहले साधना वाला रोल करने जा रही थी न जाने क्या सोच कर निम्मी ने साधना वाला रोल ठुकरा निम्मी ने राजेंद्र कुमार की बहन का रोल किया.साधना के बुर्के वाला सीन इंडियन क्लासिक में दर्ज है.
1964 में उनके डबल रोल की फिल्म रिलीज़ हुई मनोज कुमार हीरो थे “वो कौन थी” सफेद साड़ी पहने महिला भूतनी का यह किरदार हिन्दुस्तानी सिनेमा में अमर हो गया इस फिल्म से हिन्दुस्तानी सिनेमा को नया विलेन भी मिला जिसका नाम था प्रेम चोपड़ा साधना को लाज़वाब एक्टिंग के लिए प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में पहला फिल्मफेयर नामांकन भी मिला था, क्लासिक्स फिल्म वो कौन थी , मदन मोहन के लाज़वाब संगीत और लता मंगेशकर की लाज़वाब गायकी के लिए भी याद की जाती है “नैना बरसे रिमझिम ” का आज भी कोई जवाब नहीं है इस फिल्म के लिए साधना को मोना लिसा की तरह मुस्कान के साथ” शो डाट कहा गया था यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर “हिट” थी.
1964 में साधना का नाम एक हिट से जुड़ा यह फिल्म थी राजकुमार,हीरो थे शम्मी कपूर राज कुमार भी 1964 की ,ब्लॉकबस्टर फिल्म थी. 1965 की मल्टी स्टार कास्ट की फिल्म वक्त रिलीज़ हुई ब्लॉकबस्टर थी इस साल की राज कुमार सुनीलदत्त, शशीकपूर, बलराज साहनी,अचला सचदेव और शर्मिला टैगोर वक्त में थे,वक्त में साधना ने तंग चूड़ीदार- कुर्ता पहना जो इस पहले किसी भी हेरोइन ने नहीं पहना था.
1965 साधना के लिए एक और कामयाबी लाया था इसी साल रिलीज़ हुई रामनन्द सागर की “आरजू”शंकर जयकिशन का लाजवाब संगीत हसरत जयपुरी का लिखा यह गीत जो गाया था लता जी ने “अजी रूठ कर अब कहाँ जायेगा” “आरजू के खाते में कई अवार्ड आये,
1965 की एक और ब्लॉकबस्टर फिल्म जिसने कई और रिकार्ड भी कायम किये थे. फिल्म “आरजू” में भी साधना ने अपनी स्टाईल को बरकरार रखा. साधना ने रहस्यमयी फ़िल्में मेरा साया (1966)सुनील दत्त और अनीता मनोज कुमार (1967) दोनों की फिल्मों की हेरोइन साधना डबल रोल में थी, संगीतकार एक बार मदन मोहन ही थे,फिल्म मेरा साया का थीम सोंग ” तू जहा जहा चलेगा, मेरा साया साथ होगा” “नैनो में बदरा छाए” जैसे गीत आज भी दिल को छुते है.
अनीता (1967) से सरोज खान को मौक़ा मिला था,सरोज खान उन दिनों के मशहूर डांस मास्टर सोहन लाल की सहायक थी गाना था झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में इस गाने को आवाज़ दी दी थी आशा भोसले ने उस दौर में जब यह यह गाना स्क्रीन पर आता था तो दर्शक दीवाने हो जाते थे,और परदे पर सिक्कों की बौछार शुरू हो जाती थी जिन्हें लुटने के लिए लोग आपस में लड़ जाते थे. इस फिल्म के गीत भी राजा मेंहदी अली खान ने लिखे थे.कहते हैं की साधना को नजर लग गयी थी उन्हें थायरॉयड हो गया था अपने ऊँचे फ़िल्मी कैरियर के बीच वो इलाज़ के लिए अमेरिका के बोस्टन चली गयी अमेरिका से लौटने के बाद, वो फिर फ़िल्मी दुनिया में लौटी और कई कामयाब फ़िल्में उन्होंने की इंतकाम (1969) में अभिनय किया, एक फूल माली इन दोनों फिल्मों के हीरो थे संजय (1969), बीमारी ने साधना का साथ नहीं छोड़ा अपनी बीमारी को छिपाने के लिए उन्होंने अपने गले में पट्टी बंधी अक्सर गले में दुपट्टा बांध लेती थी,यही साधना आइकन बन गया था और उस दौर की लड़कियों ने इसे भी फैशन के रूप में लिया था।
1974 गीता मेरा नाम रिलीज़ हुई जो उनकी आखिरी कमर्शियल हिट थी,इस फिल्म की डाइरेक्टर वो थी इस फिल्म में भी उनका डबल रोल था सुनील दत्त और फ़िरोज़ खान हीरो थे. साधना के कई फ़िल्में बहुत देर से रिलीज़ हुई 1970 के आस पास अमानत को रिलीज़ होना था वो 1975 में रिलीज़ हुई तब बहुत कुछ बदल चुका था 1978 में महफ़िल और 1994 में उल्फत की नयी मंजिलें.
साधना ने 6 मार्च 1966 को निर्देशक आर.के. नैयर, के साथ शादी कर ली जो 1995 में हमेशा के उनका साथ छोड़ गये इस शादी से साधना के पिता खुश नहीं थे,क्यों आर.के. नैयर दमे के मरीज़ थे दमा दम के साथ जता है और आर.के. नैयर के साथ भी यही हुआ साधना के कोई आस औलाद नहीं हुई.कहा जाता है की राज खोसला और आर.के. नैयर साधना की ज़िन्दगी यही दो नाम थे दोनों ही साधना के दीवाने थे राज खोसला और आर.के. नैयर ने साधना के साथ जितनी भी फ़िल्में की उस में पूरी जान इन दोनों ने लगा दी थी,राज खोसला और आर.के. नैयर ने अलग अलग वक्त में साधना के फ़िल्मी सफर को नये मुकाम तक पहुंचाया था.
2010 में साधना एक बार फिर ख़बरों में आई बिल्डर यूसुफ लकड़ावाला ने उनसे उस फलेट को खाली करने को कहा था जिसमें वो रह रही थी.
अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फिल्म अकादमी (आईफा) द्वारा 2002 में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है.कई हिंदी फिल्मों में उनके पिता का रोल उनके सगे चाचा हरी शिवदासानी ने किया था जो अभिनेत्री बबिता के पिता है(नयी उम्र की नयी फसल के लिए,करिश्मा और करीना के नाना) साधना की चचेरी बहन बबिता ने फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा यह बात और है बबिता अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्रभावित थी लिहाजा उन्होंने ने भी साधना स्टाईल को अपनाया बबिता ने फिल्म अभिनेता रंधीर कपूर से शादी कर फिल्मों को अलविदा कह दिया.अपने फ़िल्मी करियर को लेकर साधना बहुत संजीदा थी.She suffered from a disorder of her eyes due to hyperthyroidism .
साधना की पैदाइश 2 सितम्बर, 1941, कराची,(अब पाकिस्तान ) में हुई थी। साधना अपने माता पिता की एकलौती संतान थीं 1947 मे देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार कराची छोड़कर मुंबई आ गया। साधना का निधन 25 दिसंबर 2015 को मुम्बई में हुआ था। लखनऊ। स्वप्निल संसार। संजोग वॉल्टर।