अमेरिका में रहते हुए भारत की आजादी की लड़ाई लड़ीं। बाबा सोहन सिंह भकना अमेरिका में लाला हरदयाल के अहम सहयोगी थे। लाला हरदयाल ने अमेरिका में ‘पैसिफिक कोस्ट हिंदी एसोसिएशन’ का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता सोहन सिंह भकना ने कीं। इस संस्था के द्वारा ‘गदर’ समाचार पत्र निकाला गया और इसी के नाम पर इस संस्था का नाम भी ‘गदर पार्टी’ रखा गया था। बाबा सोहन सिंह भकना को क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण लाहौर षड्यंत्र केस में गिरफ्तार किया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
सोहन सिंह भकना का जन्म 4 जनवरी, 1870 को अमृतसर जिले के खुतराई खुर्द गांव में हुआ था। बाबा सोहन सिंह भकना के पिता का देहांत हुआ तब वह एक वर्ष के थे। उनकी मां ने ही उनका पालन-पोषण किया। उनकी आरंभिक शिक्षा धर्म पर आधारित थी। उन्होंने गांव के गुरुद्वारे में शिक्षा मिली थी। बाद में उनकी शिक्षा उर्दू में प्राइमरी स्कूल में हुई। उनका अधिकतर बचपन भखना गांव में बिता। उन्होंने कम उम्र में पंजाबी भाषा में पढ़ना और लिखना सीख लिया। जब सोहन सिंह दस साल के थे तब उनकी शादी बिशन कौर से कर दी गई, जो जमींदार के बेटी थी। उन्होंने सोलह वर्ष की आयु में स्कूली शिक्षा पूरी की। उन्हें फारसी और उर्दू भाषा का अच्छा ज्ञान था। सोहन सिंह को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नेता लाला लाजपत राय आदि ने प्रेरित किया। वह अपनी आजीविका के लिए 1907 में अमेरिका पहुंचे। वहां पर उन्हें एक मिल में काम करने का मौका मिला। वहां करीब पंजाब के 200 लोग काम करते थे। उनका मेहनताना बहुत कम था और वहां के लोगों उन्हें तिरस्कार की नजरों से देखते थे। उन्होंने वहां पर अंग्रेजों की गुलामी से आजादी पाने के लिए लोगों को संगठित करना शुरू किया।
गदर पार्टी का प्रमुख लक्ष्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत से ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकना था। उसे कांग्रेस की नरम रवैये और संवैधानिक तरीकों में विश्वास नहीं था। गदर पार्टी भारतीय सैनिकों को विद्रोह करने के लिए प्रेरित करना चाहती थी। गदर पार्टी की इस योजना की भनक कुछ देशद्रोहियों से ब्रिटिश सरकार को पता चली तो बाबा सोहन सिंह जहाज से कलकत्ता पहुंचे थे। उन्हें 13 अक्टूबर 1914 को वहीं पर गिरफ्तार का लिया गया। उनसे पूछताछ के लिए लुधियाना भेज दिया गया। बाद में उन्हें मुल्तान की सेंट्रल जेल में भेज दिया गया। बाद में उन पर लाहौर षड़यंत्र केस के तहत मुकदमा चलाया गया। सोहन सिंह को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई और उन्हें अंडमान भेज दिया गया। जहां वह 10 दिसंबर 1915 को पहुंचे। उन्हें वहां से कोयम्बटूर और यरवदा जेल भेजा गया। उस समय यहां महात्मा गाँधी भी कैद थे। फिर वह लाहौर जेल भेजे गए। उन्होंने जेल में 16 साल बिताए और वहीं पर उन्होंने अनशन आरम्भ कर दिया। इससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। यह देखकर अततः अंग्रेज़ी सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया। इसके बाद सोहन सिंह ‘कम्युनिस्ट पार्टी’ से जुड़ गए। द्वितीय विश्व युद्ध आंरभ होने पर सरकार ने उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन 1943 में रिहा कर दिया।
गदर आंदोलन के माध्यम से देश को आजाद कराने की कोशिश करने वाले क्रांतिकारी बाबा सोहन सिंह भकना का 20 दिसम्बर, 1968 को अमृतसर में निधन हो गया। एजेंसी