स्वप्निल संसार। सी एफ एंड्रयूज का जन्म 12 फरवरी 1871 को इंग्लैंड में हुआ था। वे मिशनरी, शिक्षक और में समाज सुधारक थे। आरंभिक काल में उन्होंने ब्रिटेन में सामाजिक कार्यो में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
भारत में आने के बाद इन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। इसी समय दीनबंधु भारतीय समाज सुधारकों एवं स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी नेताओं दादाभाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय, टीवी सप्रू तथा रविन्द्रनाथ टैगोर इत्यादि के संपर्क में आए।
दीनबंधु गांधीजी के अभिन्न मित्र थे एवं शायद वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो गाँधीजी को ‘मोहन’ कहकर संबोधित करते थे।
देखते ही देखते सी एफ एंड्रयूज भारतीय संस्कृति में समाहित हो गए। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को ना केवल समर्थन दिया बल्कि ब्रिटिश नीतियों का भी जमकर विरोध किया। उन्होंने जलियांवाला बाग कांड के लिए ब्रिटिश सरकार को दोषी ठहराते हुए जरनल ओ डायर के कुकृत्य को “जानबूझ कर किया गया जघन्य हत्याकांड” बतलाया।
सी एफ एंड्रयूज ने भारतीय नेताओं के द्वारा चलाए गए कई आंदोलनों में भाग लिया। उदाहरण के लिए 1918 में मद्रास में सूती उद्योग बुनकरों द्वारा किये गये हड़ताल, 1919 में चांदपुर में चाय बागान के बेरोजगार मजदूरों के लिए राहत कार्य, प्रिंसली स्टेट अब राजस्थान व शिमला के मजदूरों के साथ-साथ 1921-22 में टूंडला के रेलवे कर्मचारियों का हड़ताल इत्यादि।
1925 व 1927 में सीएफ एंड्रयूज ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष भी चुने गये। सीएफ एंड्रयूज ने डॉ बी आर अंबेडकर के साथ 1933 में हरिजनों के मांगों का समर्थन किया एवं अछूतों के उद्धार के लिए चल रहे आंदोलन में उनके सक्रिय योगदान दिया।
सीएफ एंड्रयूज ने विदेशों में रह रहे लोगों के अधिकारों एवं मांगों का खुलकर समर्थन किया। उन्होंने कई बार अफ्रीका की यात्रा की एवं ब्रिटिश साम्राज्यवाद के द्वारा किए जा रहे असमानता व अन्यायपूर्ण व्यवहार के विरुद्ध अपने विरोध को प्रखर किया। उन्होंने ‘फीज़ी गिरमिटिया श्रम रिपोर्ट’ में अपना सक्रिय योगदान दिया जिससे भारतीय मजदूरों की कठिनाइयों को उठाया गया।
गरीबों व असहायों के प्रति उनकी संवेदना के कारण दीनबंधु के संबोधन से अलंकृत किया गया था। इन्होंने शांतिनिकेतन में ‘हिंदी भवन’ की स्थापना की।
5 अप्रैल 1940 को #कलकत्ता #कोलकाता में सी एफ एंड्रयूज का निधन हो गया था।