शबाहत हुसैन विजेता-वो लखनऊ का अदब था, तहज़ीब था, बड़ों और छोटों के बीच की तमीज़ था, वो दोस्त था, वो भाई था, वो रिश्तों की मज़बूत डोर था, उसका मुकाम बहुत आला था लेकिन ज़मीन को छोड़ना उसकी फितरत में नहीं था। गंगा-जमुनी तहजीब की वह मिसाल था। उसका दर्शन लाजवाब था, वो निर्मलता में डॉक्टरेट था। वह चाहने वालों के दिलों में धड़कन सा धड़कता था। वो अचानक सो गया है, हमेशा के लिए खो गया है।
कवि सम्मेलन और मुशायरे जब आपस में गले मिले और सरस्वती वंदना की ज़िम्मेदारी वाहिद अली वाहिद को मिली तो नात पढ़ने का ज़िम्मा डॉ. निर्मल दर्शन ने उठाया। निर्मल इतनी शानदार उर्दू के साथ रूबरू होते थे कि मौजूदा दौर का मुसलमान शरमा जाए।
पच्चीस-छब्बीस साल पहले निर्मल से मुलाक़ात हुई थी, पहली मुलाकात में ही ऐसा रिश्ता बना कि कभी लगा ही नहीं कि वह सगा भाई नहीं है। कर्बला पर निर्मल को बहुत अच्छी नॉलेज थी। अवधनामा के मोहर्रम नम्बर के लिए निर्मल को फोन किया तो दूसरे दिन ही निर्मल का आर्टिकल सब कुछ है मेरे पास मगर कर्बला नहीं हाज़िर हो गया।
उर्दू शायरी का फन निर्मल को अपने वालिद बेकरां आलमी से मिला था। निर्मल ने अपनी मेहनत से साबित किया था कि ज़बान किसी की बपौती नहीं होती है। बहुत कम उम्र में वह शायरी का सरताज बन गया। हिन्दुस्तान के सभी बड़े मुशायरों की ज़रूरत था निर्मल। कम लोग जानते हैं कि निर्मल अदब का जितना माहिर था उतना ही माहिर म्यूजिक का भी था। उसकी डॉक्टरेट म्यूज़िक में ही थी।
मैं नेशनल वॉइस न्यूज़ चैनल में था तो वहाँ की दो महफिलों में भी निर्मल ने चार चांद लगाए थे। इस बार निर्मल कैंसर से जूझ रहे थे, तो आना जाना कम हो गया था। इस बार की महफ़िल अधूरी-अधूरी सी थी। हालांकि महफ़िल में कई अच्छे साथी थे। पंकज प्रसून, मुकुल महान, मोहम्मद अली साहिल, ज्योति सिन्हा, अशोक झंझटी, अभय निर्भीक। उस कामयाब महफ़िल में सभी ने निर्मल को मिस किया। हम सबने तय किया था कि अगली महफ़िल तभी होगी जब निर्मल कैंसर को हराकर लौटेंगे।
निर्मल से फोन पर बात होती रहती थी, पंकज प्रसून से हालचाल मिलता रहता था। करीब साल भर पहले जब निर्मल की कीमोथेरेपी शुरू हुई थी तब डॉक्टरों ने बड़ी उम्मीद जताई थी। डॉ. कुमार विश्वास ने निर्मल के घर आकर यह कहा था कि इलाज ठीक से कराओ, खर्च की परवाह मत करना। इलाज का पैसा टाइम से मिलेगा। कैंसर की मैराथन जंग से लड़ने के लिए पैसों के इंतजाम में सर्वेश अस्थाना भी लगे थे, ज्योति सिन्हा ने भी हिन्दी संस्थान में कवि सम्मेलन कराकर निर्मल के इलाज के लिए पैसों का इंतजाम किया था, लेकिन कोई नहीं जानता था कि पैसों का एवरेस्ट भी निर्मल को रोक नहीं पायेगा क्योंकि यह मुस्कुराता चेहरा अब अल्लाह के दरबार का शायर बनने वाला है।
मुझे याद है कि जब पहली बार कीमोथेरेपी कराने के लिए निर्मल सर्वेश अस्थाना का हाथ छुड़ाकर मुस्कुराता हुआ डॉक्टर के साथ कीमोथेरेपी रूम में यह कहता हुआ घुसा कि अभी गया और अभी लौटा तो सर्वेश रो पड़े थे। निर्मल लगातार मुस्कुरा-मुस्कुरा कर धोखा देता रहा कि सब ठीक है, कैंसर हार रहा है, मैं जीत रहा हूँ। ज़िन्दगी के सफ़र में अचानक निर्मल का स्टेशन आ गया और जंजीर खींचकर मुसाफिर उतर गया। उसने सबका हाथ झटक दिया, सबकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। आंख बंद करते वक़्त यह भरोसा भी नहीं दिलाया कि अभी गया और अभी लौटा।
लखनऊ को पहले देवल ने रुलाया और अब निर्मल ने। देवल आशीष भी ऐसे ही धोखा देकर गए थे अचानक।
निर्मल की गृहस्थी बहुत कच्ची है। पत्नी मोनिका की उम्र बहुत कम है, बच्ची केसर अभी मासूम ही है। दोस्त, यार, रिश्तेदार चंद दिन आँसू बहाएंगे, फिर अपनी-अपनी ज़िन्दगी में खटने लगेंगे। निर्मल की यादें धुंधली और धुंधली पड़ती जाएंगी लेकिन जिसने निर्मल पर भरोसा कर ज़िन्दगी भर का रिश्ता जोड़ा था, जिस बच्ची को ज़िन्दगी भर की उम्मीदें थीं, वह इस हकीकत को कैसे अपनाएंगे यह बड़ा सवाल है।
पहले दिल को जलाया गया,और फिर मुस्कुराया गया,मौत से आंख क्या मिल गई,सारा अपना पराया गया,पहले मुझको सज़ा दी गई.फिर अदालत में लाया गया
जैसी दिल को छू लेने वाली शायरी आज कांच की दीवार की तरह गिरी है, किरचों की चुभन बर्दाश्त के बाहर है। वह दिल को छू लेने वाली शानदार आवाज़ ज़ेहन का साथ छोड़ने को तैयार नहीं है। मन होता है कि निर्मल को झिंझोड़ कर पूछूं कि चमचमाते तारों भरे आसमान का दरबारी शायर बनने का इतना ही शौक़ था तो फिर हम से रिश्ता जोड़ा ही क्यों था। जब तुम्हें बीच रास्ते में हाथ झटककर साथ छोड़ ही जाना था तो फिर हमारा हाथ पकड़ा ही क्यों था।
निर्मल तुम बहुत बड़े शायर और म्यूज़िक के बहुत बड़े जानकार हो सकते हो लेकिन मेरी निगाह में सिर्फ धोखेबाज थे। तुम्हारी धोखेबाज़ी की सज़ा हमें रहती उम्र तक भुगतनी पड़ेगी। तुम सामने से कितना भी छिप जाओ लेकिन ज़ेहन में तो ऐसे चस्पा हो कि कोई तुम्हें वहाँ से हटा नहीं सकेगा।