पुण्य तिथि पर विशेष-
एजेंसी। बाबू जगजीवन राम का जन्म- 5 अप्रैल 1908 में हुआ। एक दलित के घर में जन्म लेकर राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर छा जाने वाले बाबू जगजीवन राम का जन्म बिहार की उस धरती पर हुआ था जिसकी भारतीय इतिहास और राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। बाबू जगजीवन राम का जन्म बिहार में भोजपुर के चंदवा गांव में हुआ था। उनका नाम जगजीवन राम रखे जाने के पीछे प्रख्यात संत रविदास के एक दोहे – प्रभु जी संगति शरण तिहारी, जगजीवन राम मुरारी, की प्रेरणा थी। इसी दोहे से प्रेरणा लेकर उनके माता पिता ने अपने पुत्र का नाम जगजीवन राम रखा था। उनके पिता शोभा राम एक किसान थे जिन्होंने ब्रिटिश सेना में नौकरी भी की थी।
आधुनिक भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष जिन्हें आदर से ‘बाबूजी’ के नाम से संबोधित किया जाता था। लगभग 50 वर्षो के संसदीय जीवन में राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण और निष्ठा बेमिसाल रहा। उनका संपूर्ण जीवन राजनीतिक, सामाजिक सक्रियता और विशिष्ट उपलब्धियों से भरा हुआ रहा। सदियों से शोषण और उत्पीड़ित दलितों, मज़दूरों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए बाबू जगजीवन द्वारा किए गए क़ानूनी प्रावधान ऐतिहासिक हैं। बाबू जगजीवन का ऐसा व्यक्तित्व था जिसने कभी भी अन्याय से समझौता नहीं किया और दलितों के सम्मान के लिए हमेशा संघर्षरत रहे। विद्यार्थी जीवन से ही उन्होंने अन्याय के प्रति आवाज़ उठायी। बाबू जगजीवन राम का भारत में संसदीय लोकतंत्र के विकास में महती योगदान है।
राजनीती
1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में शामिल होने के बाद वह सत्ता की उच्च सीढ़ियों पर चढ़ते चले गए और तीस साल तक कांग्रेस मंत्रिमंडल में रहे। पांच दशक से अधिक समय तक सक्रिय राजनीति में रहे बाबू जगजीवन राम ने सामाजिक कार्यकर्ता, सांसद और कैबिनेट मंत्री के रूप में देश की सेवा की। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी कि श्रम, कृषि, संचार, रेलवे या रक्षा, जो भी मंत्रालय उन्हें दिया गया उन्होंने उसका प्रशासनिक दक्षता से संचालन किया और उसमें सदैव सफ़ल रहे। किसी भी मंत्रालय में समस्या का समाधान बड़ी कुशलता से किया करते थे। उन्होंने किसी भी मंत्रालय से कभी इस्तीफ़ा नहीं दिया और सभी मंत्रालयों का कार्यकाल पूरा किया।
दूसरा घर
भारत की संसद को बाबू जगजीवन राम अपना दूसरा घर मानते थे। 1952 में उन्हें नेहरू जी ने ‘संचार मंत्री’ बनाया। उस समय संचार मंत्रालय में ही विमानन विभाग भी था। उन्होंने निजी विमानन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया और गांवों में डाकखानों का नेटवर्क विकसित किया। बाद में नेहरू जी ने उन्हें रेल मंत्री बनाया। उस समय उन्होंने रेलवे के आधुनिकीकरण की बुनियाद डाली और रेलवे कर्मचारियों के लिए कल्याणकारी योजनाएं प्रारम्भ की। उन्हीं के प्रयास से आज रेलवे देश का सबसे बड़ा विभाग है। वे सासाराम क्षेत्र से आठ बार चुनकर संसद में गए और भिन्न-भिन्न मंत्रालय के मंत्री के रूप में कार्य किया। वे 1952 से 1984 तक लगातार सांसद चुने गए।
6 जुलाई, 1986 को 78 साल की उम्र में इस महान् राजनीतिज्ञ का निधन हो गया। बाबू जगजीवन राम को भारतीय समाज और राजनीति में दलित वर्ग के मसीहा के रूप में याद किया जाता है। वह स्वतंत्र भारत के उन गिने चुने नेताओं में थे जिन्होंने देश की राजनीति के साथ ही दलित समाज को भी नयी दिशा प्रदान की
ती पर विशेष
संजोग वॉल्टर। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को कलकत्ता में प्रतिष्ठित परिवार में जन्म हुआ था। श्यामा प्रसाद के पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे शिक्षाविद् के रूप में जाने जाते थे। डॉ॰ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक उत्तीर्ण हुए। 1921 में बीए की डिग्री हासिल की। 1923 में विधि की उपाधि पास की। इसके बाद वे विदेश चले गये। 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर उपाथि लेकर स्वदेश लौटे आये।
डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जब 33 वर्ष के थे तब वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। कुलपति पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम उम्र के कुलपति बने थे। इसके बाद मुखर्जी विचारक और शिक्षाविद् के रूप में उनकी ख्याति चारों ओर बढ़ती गयी। डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने लोगों को जागृत करने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया। डॉ॰ मुखर्जी मानवता के उपासक थे। उन्होने कृषक प्रजा पार्टी से मिलकर प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण किया।
इसी समय वे सावरकर के राष्ट्रवाद के प्रति आकर्षित हुए और हिन्दू महासभा में शामिल हुए। डॉ॰ मुखर्जी की यह धारणा थी कि हम सब एक हैं। इसलिए धर्म के आधार पर वे देश के विभाजन का विरोधी किया। उनका मानना था कि विभाजन सम्बन्धी उत्पन्न हालात ऐतिहासिक और सामाजिक थी। वे मानते थे कि हम सब एक हैं। हममें कोई फर्क नहीं है। हम सब एक ही लहू के हैं। हमारी भाषा एक है। हमारी संस्कृति है। हमारी विरासत एक है। यह देखकर लोगों के दिलों में उनके प्रति प्यार बढ़ता ही गया।
इसी दौरान यानी अगस्त, 1946 में कलकत्ता में भयंकर बर्बरतापूर्वक मारकाट हुई। ऐसे समय में डॉ॰ मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की माँग उठाकर प्रस्तावित पाकिस्तान का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा पंजाब खण्डित भारत के लिए बचा लिया।
महात्मा गान्धीजी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वे मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए। उन्हें उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गयी। संविधान सभा और प्रान्तीय संसद के सदस्य और केन्द्रीय मंत्री के नाते उन्होंने शीघ्र ही अपना विशिष्ट स्थान बना लिया। मगर उनके राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से मतभेद बने रहे। इसके चलते उन्होंने राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण मन्त्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया।
इसके बाद डॉ॰ मुखर्जी ने नई पार्टी बनाई, जो उस समय वह सबसे बड़ा विरोधी पक्ष था। इस प्रकार अक्टूबर, 1951 में भारतीय जनसंघ का उदय हुआ। डॉ॰ मुखर्जी हमेशा जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग मानते थे। उस समय जम्मू-कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था।
डॉ॰ मुखर्जी ने संसद में अपने भाषण में धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की थी। उन्होंने अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में अपना यही संकल्प व्यक्त किया था। उन्होंने कहा कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इसके लिए अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। साथ ही तात्कालिन जवाहरलाल नेहरू की सरकार को चुनौती दी।
इसके बाद अपने संकल्प को पूरा करने के लिये डॉ॰मुखर्जी 1953 में बिना किसी अनुमति के जम्मू कश्मीर की ओर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया गया था। डॉ॰मुखर्जी का 23 जून 1953 को संदेहास्पद हालत में निधन हो गया।