जोधपुर में जन्मे मणि कौल 14 की उम्र में घर से भागकर बम्बई अब मुंबई पहुंचे थे। बहुत कम लोग ही जानते होंगे, मणि कौल ने ही शाहरुख खान को अपनी फिल्म में ब्रेक दिया था। मणि कौल अपनी फिल्मों में कम जाने-पहचाने या अनजाने चेहरे लिया करते थे। शाहरुख का नाम तब रोशनी में आने लगा था, लेकिन मणि कौल ने भी अपनी इस शर्त को तोड़ दिया। – ‘इडियट’ फिल्म रूसी राइटर फ्योदोर दोस्तोवस्की के नॉवेल पर बन रही थी। ये शाहरुख की पहली फिल्म थी, जिसमें मीता वशिष्ठ उनकी हीरोइन थीं। यह 1991 में चार किश्तों में दूरदर्शन दिखाई दी थी। 1992 में यह न्यूयार्क फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीन की गई, लेकिन कमर्शियली कहीं रिलीज नहीं हुई। – बाद में मणि कौल ने इसे ‘अहमक’ के नाम बनाई, जो कहीं रिलीज नहीं हुई।
मणि कौल कश्मीरी पंडित थे, लेकिन उनका जन्म 25 दिसम्बर, 1944 को जोधुपर में हुआ। उनका असल नाम रबीन्द्र नाथ कौल था। – उनके पिता उन्हें आईएएस अफसर बनाना चाहते थे, लेकिन वे 17 साल की उम्र में ही भाग कर मुंबई पहुंच गए, जहां वे अपने फिल्म डायरेक्टर चाचा महेश कौल के पास रहे। – तब यादों को ताजा करते हुए उन्होंने बताया था कि बम्बई अब मुंबई जाने के बाद ही मैंने पहली बार समुद्र और डबल डेकर बसें देखीं। इसके बाद उन्होंने पूना के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट़यूटट ऑफ इंडिया से डायरेक्शन की ट्रेनिंग ली, जहां ऋत्विक घटक उनके टीचर थे। बाद में उन्होंने इसी इंस्टीट़यूटट के साथ ही विदेशों के हावर्ड और बर्कले यूनिवर्सिटी में पढ़ाया।
सिनेमा में यह नई लहर थी। इसमें फिल्म केवल इंटरटेनमेंट का जरिया नहीं रह गई थी, बल्कि समाज की असलियत को खोलकर दिखा रही थी। – मणि कौल ने ज्यादातर फिल्में मशहूर साहित्यकारों की कहानियों या नाटकों को लेकर बनाई। उनकी पहली फिल्म थी- ‘उसकी रोटी’, जो मोहन राकेश की इसी टाइटल से लिखी गई कहानी पर बेस्ड थी। – इसे बेस्ट फिल्म का फिल्मफेयर क्रिटिक अवाॅर्ड मिला। मोहन राकेश के ही नाटक पर बनाई गई फिल्म ‘आषाढ़ का एक दिन’ (1971), विजयदान देथा की कहानी पर बनी फिल्म ‘दुविधा’ (1973) और दोस्तोवस्की के नॉवेल पर बनी फिल्म ‘इडियट’ को भी बेस्ट फिल्म का फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवाॅर्ड मिला। ‘दुविधा’ ठुमरी सिंगर सिद्धेश्वरी देवी पर बनाई गई डॅाक्यूमेंट्री को नेशनल फिल्म अवाॅर्ड भी मिला।
मणि कौल बनाते ही ऐसी फिल्मे थे। फिल्मों की मेनस्ट्रीम से हटकर उन्होंने फिल्म प्रॉडक्शन की नई ग्रामर रची। पॉपुलर फॉर्मूलों के सभी पुराने ढांचे उन्होंने तोड़ दिए और वे उस स्ट्रीम के फिल्मकार बने, जिसे पेरेलल सिनेमा कहा गया। 6 जुलाई, 2011 को गुड़गांव में कैंसर के कारण उनका 66 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्हें इंडियन सिनेमा के महान डायरेक्टर के तौर पर हमेशा याद किया जाएगा।साभार