`First train ran between Roorkee and Piran Kaliyar’ on 22-12-1851
स्वप्निल संसार। रूडकी रेलवे स्टेशन पर (भारतीय रेलवे के 150 साल की पूरे होने की याद में) 2003 में लगे पत्थर पर इस खोज को मान लिया गया है की रूडकी और पिरान कलियर के बीच 22 दिसम्बर 1851 को लोकोमोटिव इंजन “थामसन” दौड़ा था।
बम्बई (मुम्बई) और ठाणे के बीच 1853 में पहली बार भाप इंजन रेल पटरी पर दौड़ा यह तारीख सही नहीं है ।जबकि सच यह है ,रूडकी रेलवे स्टेशन पर लगा शिलालेख और रेलवे स्टेशन परिसर के बाहर खडा इंजन “थामसन” आज भी याद दिलाता है की 1853 में नहीं बल्कि 1851 में “थामसन” दौड़ा था पहली बार भारत में। अब रूडकी से पिरान कलियर के बीच पुराने रेल ट्रैक का नामोनिशान भी नहीं है। लन्दन में बना थामसन 1852 तक दौड़ा आग लगने तक। रूडकी में एशिया का नहीं बल्कि दुनिया के पहले इंजीनियरिंग कालेज की तामीर 25 नवंबर 1847 को हुई थी,जिसका नाम था थामसन इंजीनियरिंग कालेज।
1837-38 में उत्तर पश्चिमी प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) में जबरदस्त सूखा पड़ा था। तब ईस्ट इंडिया कंपनी को राहत कार्यों पर करीब एक करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। ऐसे में तत्कालीन सरकार ने गंगा से नहर निकालने का निर्णय लिया और इसकी जिम्मेदारी कर्नल कॉटले को सौंपी। कर्नल कॉटले के सामने रुड़की के पास बहने वाली सोलानी नदी चुनौती बन गई।
समस्या यह थी कि नहर को नदी के बीच से कैसे लाया जाए? इसका उन्होंने नायाब हल तलाशा। तय किया गया कि नदी के ऊपर पुल बना नहर को गुजारा जाए। पुल निर्माण के लिए नदी में खंभे बनाए जाने थे और इसके लिए खुदाई करनी थी। तय किया गया भारी मात्रा में निकलने वाले मलबे को कलियर के पास डाला जाए।
समस्या यह थी घोड़े और खच्चरों से इस पर भारी लागत आने के साथ ही समय भी ज्यादा लगना था। कर्नल कॉटले ने इसके लिए रेल ट्रैक बनवाने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने लंदन से उपकरण मंगवाए और वहीं के विशेषज्ञों से रुड़की में ही इंजन और चार वैगन तैयार कराईं। इंजन का नामकरण उत्तर पश्चिमी प्रांत के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गर्वनर सर जेम्स थॉमसन के नाम पर किया गया।
हालांकि बाद में इसको बदल स्वीडन की प्रसिद्ध गायिका जेनी लिंड के नाम पर रखा गया। भाप से चलने वाले इस इंजन की सहायता से दो वैगनों में एक बार में 180 से 200 टन मिट्टी ढोई गई। इंजन की रफ्तार थी 6.4 किलोमीटर प्रति घंटा और पूरे एक साल तक यानी दिसंबर 1852 तक यह पटरियों पर दौड़ता रहा। दो साल बाद 1854 में गंगनहर का निर्माण पूरा हो गया। नहर को बनने में 12 साल लगे।
भारतीय रेल के 150 वर्ष पूरे होने पर 2003 में जेनी लिंड इंजन का मॉडल रुड़की रेलवे स्टेशन पर स्थापित किया गया। अमृतसर स्थित रेल कारखाने में तैयार इस मॉडल से कुछ वर्ष पहले तक प्रत्येक शनिवार और रविवार शाम चार से छह बजे तक छुक-छुक आवाज भी सुनी जा सकती थी। लेकिन रखरखाव के अभाव में अब यह शांत खड़ा रहता है।