स्वप्निल संसार। मुमताज़ महल मुग़ल शासक शाहजहाँ की पत्नी थी, मुमताज की ही याद में शाहजहाँ ने आगरा में ताजमहल का निर्माण किया था। मुमताज़ महल /का जन्म अरजुमंद बानू बेगम के नाम से आगरा के पर्शियन परीवार में अब्दुल हसन असफ खान की पुत्री के रूप में हुआ था। अरजुमंद बानू का निक़ाह 10 मई 1613 को 19 साल की आयु में प्रिंस खुर्रम से हुआ जो बाद में मुग़ल शासक शाहजहाँ के नाम से प्रसिद्ध हुए, शाहजहाँ ने उन्हें “मुमताज़ महल” का शीर्षक दिया। 1607 में वह शाहजहाँ की मंगेतर बनी थी, और 1612 में वह उनकी तीसरी पत्नी बनी और शाहजहाँ की सबसे प्यारी पत्नी कहलाने लगी। शाहजहाँ और मुमताज के चौदह बच्चे थे, शाहजहाँ को सबसे ज्यादा प्यार मुमताज़ से था। शाहजहाँ ने दूसरी पत्नियो को कम और मुमताज़ को ज्यादा अधिकार दे रखे थे । मुमताज की सुंदरता को उनके जीवन भर में कई कवियों, लेखको ने अपनी कविताओ और लेख में निखारा । शाहजहाँ अपने मुग़ल साम्राज्य की यात्रा मुमताज़ के साथ ही किया करते थे। शाहजहाँ को मुमताज़ पर इतना भरोसा हो गया था की उन्होंने मुमताज़ को शाही सील, अधिकार भी दे रखे थे। मुमताज़ को अपने साम्राज्य की साधारण महिलाओ से मिलना, उनके साथ खेलना और बाते करना भी काफी पसंद था ।
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मुमताज़ महल की मृत्यु 17 जून 1631 में अपने चौदहवे बच्चे को जन्म देते समय हुई थी। मुमताज़ के शव को उस समय शाहजहाँ के चाचा दानियाल द्वारा तापी नदी के तट पर जैनाबाद में दफनाया गया था। शाहजहाँ को इस बात से काफी दुःख हुआ था,मुमताज़ की मृत्यु के बाद शाहजहाँ एक वर्ष के लिये शोक मानते हुए एकांत में रहने के लिए चले गये। उनके शव को दिसम्बर 1631 में निकला गया और सोने से बनी शव पेटी में आगरा में यमुना नदी के तट पर छोटे घर में उनके शव को रखा गया था।शाहजहाँ ने मुमताज़ की याद में विशाल महल बनाने की योजना बनाई. उनके सपने को साकार होने में पूरे 22 साल लगे, मुमताज़ की याद में बने उस महल को “ताजमहल” के नाम से जाना जाता है।
मुमताज़ की मौत से शाहजहाँ टूट सा गया। शाहजहाँ ने मुमताज़ के शरीर को बुरहानपुर में ही दफ़न कर दिया। अपनी प्यारी बेगम के प्यार को अमर करने के लिए शाहजहाँ ने ताजमहल बनाने का फैसला किया। पहले ताज महल को बुरहानपुर में ही बनाया जाने वाला था। कुछ कारणों से ताजमहल का निर्माण बुरहानपुर की जगह आगरा में बनाया गया। ताजमहल का निर्माण कार्य करीब 22 वर्षों तक चला। इन 22 वर्षों तक बेगम मुमताज़ महल का शरीर बुरहानपुर में ही दफ़न रहा था।
ताजमहल के बनने के बाद मुमताज़ महल के मृत शरीर को आगरा लाकर ताजमहल में एक खूबसूरत मकबरा बनाकर दफना दिया गया। लेकिन प्यार की निशानी ताजमहल में बेगम मुमताज़ महल का शरीर ही आया । उनकी रूह तो बुरहानपुर में ही रह गयी थी। कहा जाता है कि मौत के बाद भी मुमताज़ की रूह अपने संतान मोह की वजह से बुरहानपुर में ही भटकती रही थी। यहाँ तक की उनके शरीर को बुरहानपुर से हटाकर आगरा में दफन करने के बाद भी माँ की रूह उसी महल में रह गयी जहाँ उसकी पुत्री का जन्म हुआ था। आज भी मध्यप्रदेश के बरहामपुर में मुमताज़ का महल है, यहाँ के स्थानीय लोगों की माने तो इस महल से आज भी अजीबोगरीब तरह की आवाजें आती रहती है। रात के समय इस महल में जाने से लोग कतराते है।
दुनिया भर के लोग मुमताज़ की याद में शाहजहाँ द्वारा बनाये ताजमहल को देखने आते है।ताजमहल प्रत्येक वर्ष 20 से 40 लाख दर्शकों को आकर्षित करता है, जिसमें से 200,000 से अधिक विदेशी होते हैं। अधिकतर पर्यटक यहाँ अक्टूबर, नवंबर एवं फरवरी के महीनों में आते हैं। इस स्मारक के आसपास प्रदूषण फैलाते वाहन प्रतिबन्धित हैं। पर्यटक पार्किंग से या तो पैदल जा सकते हैं, या विद्युत चालित बस सेवा द्वारा भी जा सकते हैं। खवासपुरास को पुनर्स्थापित कर नवीन पर्यटक सूचना केन्द्र की तरह प्रयोग किया जाएगा। ताज महल के दक्षिण में स्थित बस्ती को ताजगंज कहते हैं। पहले इसे मुमताजगंज भी कहा जाता थ॥ यह पहले कारवां सराय एवं दैनिक आवश्यकताओं हेतु बसाया गया था। प्रशंसित पर्यटन स्थलों की सूची में ताजमहल सदा ही सर्वोच्च स्थान लेता रहा है। यह सात आश्चर्यों की सूची में भी आता रहा है। अब यह आधुनिक विश्व के सात आश्चर्यों में प्रथम स्थान पाया है। विश्वव्यापी मतदान में ताजमहल को दस करोड़ मत मिले थे।