दीपावली का त्योहार पूरे भारत देश में मनाया गया। विदेशों में जहां भारतीय रह रहे हैं, उन्होंने भी दीपावली मनायी। कई देशों में दीपावली का त्योहार अलग-अलग रूप और नाम से मनाया जाता है। भारत के इस बड़े त्योहार को सम्मान देते हुए विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ह्वाइट हाउस में भारतीयों को आमंत्रित करके दीपावली मनायी, लेकिन इस बार दीपावली से एक दिन पूर्व छोटी दीपावली को भगवान राम की जन्म स्थली अयोध्या में जिस तरह से दीपावली मनायी गयी, उसका कोई जवाब नहीं है। ऐसा नहीं कि अयोध्या ने इससे बेहतर दीपावली नहीं मनायी हो। यह त्योहार ही अयोध्या से जुड़ा है। भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास की 14 वर्ष की अवधि बिताकर जब अयोध्या वापस आये, तब अयोध्यावासियों ने जिस खुशी के साथ दीपावली मनायी, उसका वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास भी अपने को असमर्थ पा रहे थे और जिस तरह लोगों ने अपने-अपने घर-द्वार बनाए, दीपक जलाए, खुशियां मनायीं- इन सबका वर्णन करते हुए भी वे अंत में यही कहते हैं कि इसका वर्णन नहीं किया जा सकता। इसके बाद राजाराम के राज्य में भी दीपावली भव्य रूप में मनायी जाती रही होगी लेकिन कालान्तर में बहुत से बदलाव आये। भारत पर विदेशी शासकों ने कब्जा कर लिया। इसका प्रभाव पर्व-त्योहारों पर भी पड़ा। अयोध्या को भी समझौते करने पड़े। देश को आजादी मिली, तब दूसरी समस्याएं पैदा हुईं। देश का बंटवारा हो चुका था। चीन ने हमला किया। देश में खाद्यान्न का संकट आया। ब्रिटिश हुकूमत ने देश को पूरी तरह कंगाल कर दिया था, इसलिए शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी आदि की समस्याएं दूर की जाती रहीं। धीरे-धीरे सब कुछ संभल गया, तब राजनीति में कुर्सी की लड़ाई शुरू हो गयी। अयोध्या की दीपावली को लोग भूल गये। दीपावली ने जहां जन्म लिया था, उसकी चिंता किसी को नहीं रही।
राजनीति में अयोध्या साम्प्रदायिकता की सूची में आ गयी। उत्तर प्रदेश में जो भी सरकार बनी, उसने अयोध्या को धर्म के आधार पर देखा। नब्बे के दशक में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करके विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जाति की राजनीति को बढ़ाया तो जनसंघ के चोले से बाहर निकलकर भाजपा ने राम मंदिर आंदोलन शुरू कर दिया। भारतीय संस्कृति की धरोहर होते हुए भी अयोध्या सिर्फ कथित बाबरी मस्जिद और रामजन्म भूमि के विवाद में उलझी रही। वहां के पर्व-त्योहार, वहां के विकास आदि की चिंता किसी ने नहीं की। प्रदेश में भाजपा की भी सरकार रही लेकिन अयोध्या का विकास भी करना है, यह उसने नहीं सोचा। अयोध्या पर नजर पड़ी योगी आदित्यनाथ की, जो २०१७ के विधासनसभा चुनाव में भाजपा की प्रचण्ड विजय के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाये गये। श्री योगी ने अयोध्या के गौरव को पुनस्र्थापित करने का बीड़ा उठाया और इसकी पहली कड़ी में छोटी दीपावली के दिन अयोध्या एक बार फिर से उसी तरह जगमगा उठी, मानो आज ही भगवान राम दूसरा वनवास बिता कर लौटे हों। सरयू के घाट पर लगभग एक लाख सत्तासी हजार दीपक जल रहे थे। हेलीकाप्टर से अयोध्या के नगरवासियों पर फूलों की वर्षा हुई। हेलिकाप्टर से ही रामलीला कर रहे कलाकार उतरे तो ऐसा लग रहा था कि भगवान राम, सीता जी और लक्ष्मण के साथ पुष्पक विमान से आये हों। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भरत की तरह उन कलाकारों का स्वागत किया। उनके साथ में राज्यपाल रामनाइक, दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और डा. दिनेश शर्मा, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पांडेय, पर्यटन मंत्री रीता बहुगुणा जोशी, केन्द्रीय राज्य मंत्री महेश शर्मा की मौजूदगी अयोध्या के लोगों को उसी तरह का आनंद दे रही थी जैसा रामायण काल में आनंद मिला होगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्यावासियों को बताया कि अब यहां पर तीज-त्योहार इसी तरह मनाये जाएंगे। उन्होंने 133 करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास किया। श्री योगी ने कहा कि राम की यह नगरी पूरी दुनिया को मानवता का संदेश देती है लेकिन इस नगरी का न तो विकास हुआ और न इसकी छवि को विस्तार दिया जा सका। यहां की नकारात्मक तस्वीर ही पेश की जाती रही। आज से अयोध्या को नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर ले जाने का अभियान शुरू हुआ है। यह अभियान चार चरणों तक चलेगा। सरकार सभी धार्मिक नगरों और पुरातात्विक स्थलों को विकास से जोड़कर उत्तर प्रदेश को पर्यटन का सबसे बड़ा हब बनाएगी। उन्होंने सुझाव दिया कि अगले साल से अयोध्या के रामायण मेला को विश्व रामायण मेला बना दिया जाए जिसमें दुनिया के कई देशों की रामलीला मंचित हो। श्री योगी ने कहा कि भगवान राम आसुरी शक्तियों का विनाश करने के बाद रामराज्य लाये थे और यहां भी परिवारवाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद जैसी आसुरी शक्तियों का नाश हो चुका है। आसुरी शक्तियां बिजली देने में भेदभाव करती थीं, विकास में भेदभाव करती थीं।
इस दीपावली पर जब जगमगाता सरयू नदी का किनारा, सरकार और संत एक साथ मौजूद थे, तब अयोध्या के लोगों की खुशी की कल्पना ही की जा सकती है। वे सोच रहे होंगे कि अभी तक अयोध्या को किस जुर्म की सजा मिल रही थी? कथित बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि विवाद की सजा अयोध्या को क्यों दी जा रही थी? प्रदेश में गैर भाजपा सरकारें अयोध्या में ठीक से सड़कें भी नहीं बनवा सकीं। मुझे भी कई बार अयोध्या जाने का अवसर मिला है। सड़कें इतनी संकरी हैं कि जाम लग जाता है। बिजली, पानी की भी समस्या रहती है। श्रद्धालु वहां आते हैं लेकिन सुविधाएं न देखकर निराश हो जाते हैं। अयोध्या को सीधे भाजपा से जोड़ दिया गया। यहां पर विकास कार्य इसीलिए नहीं कराये गये कि यह राम की नगरी है। मुख्यमंत्री यहां पर आने से हिचकने लगे थे। स्वतंत्रता से पहले तो अयोध्या में कोई उत्सव मनाने का सवाल ही नहीं पैदा होता। ब्रिटिश शासन से पहले मुगलकाल में भी अयोध्या के उत्सव फीके रहे लेकिन स्वतंत्रता के बाद तो अयोध्या को उसका यह अधिकार मिलना चाहिए था। अयोध्या के लोग 18 अक्टूबर 2017 को अगर ऐसा सोच रहे थे तो क्या गलत कर रहे थे? श्री योगी ने उनकी पीड़ा को समझा। अयोध्या को उसका अधिकार मिला।
दूसरी तरफ संतों का मन भी चहक उठा। उन्हें अब तक राम मंदिर न बन पाने का थोड़ा मलाल था। उन्हें लगता था कि राम मंदिर बनाने में कुछ ढिलाई हो रही है हालांकि यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है और केन्द्र व राज्य दोनों जगह भले ही आज भाजपा की सरकार है लेकिन संविधान ने दोनों सरकारों के हाथ बांध रखे हैं। अब श्री योगी के प्रयास से अयोध्या को नया रूप दिया जा रहा है। राम मंदिर का विरोध करने वाले मुसलमान भी मंदिर निर्माण की वकालत करने लगे हैं। अभी कुछ दिन पहले खबर आयी थी कि वे भगवान राम की प्रतिमा के लिए चांदी के तीर प्रदान करेंगे। इस प्रकार अयोध्या में जिस तरह से योगी आदित्यनाथ ने दीपावली का उत्सव मनाया और वहां पर भव्य आयोजन करने की घोषणा की है, उससे राम मंदिर न बन पाने का रोष भी ठण्डा पड़ रहा है।
अयोध्या इस बात को कभी नहीं भूल सकती कि आजादी के 70 वर्षों में पहली बार कोई मुख्यमंत्री और उसकी पूरी सरकार यहां दीपावली मनाने आयी। (हिफी)